अपराध के चरण (Stages of a Crime)

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अपराध के चरण (Stages of a Crime) को एक प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है, जिसमें यह कुछ निश्चित चरणों से गुजरता है। किसी भी अपराध को पूर्ण माना जाने से पहले उसके कुछ मुख्य चरण होते हैं। ये चरण अपराध करने के इरादे से शुरू होकर उसके प्रयास और अंततः उसके पूरा होने तक पहुंचते हैं।


1. दोषपूर्ण नीयत – केवल नीयत दंडनीय नहीं (Guilty Intention – Mere Intention Not Punishable)

  • परिभाषा:
    दोषपूर्ण नीयत का मतलब है कि व्यक्ति के मन में अपराध करने का इरादा हो। लेकिन केवल इरादा रखना अपराध नहीं माना जाता, जब तक कि यह इरादा किसी कार्य में परिवर्तित न हो।
  • कानूनी स्थिति:
    • केवल अपराध के बारे में सोचना या उसकी योजना बनाना दंडनीय नहीं होता।
    • कानून केवल उन्हीं कृत्यों को दंडित करता है, जो समाज को वास्तविक रूप से नुकसान पहुंचाते हैं।
  • उदाहरण:
    • यदि कोई व्यक्ति किसी को मारने की सोचता है, लेकिन इस सोच को कार्य में परिवर्तित नहीं करता, तो उसे दंडित नहीं किया जा सकता।

2. तैयारी (Preparation)

  • परिभाषा:
    अपराध करने के लिए कोई योजना बनाना या आवश्यक साधन जुटाना “तैयारी” कहलाता है। यह अपराध के इरादे को अमल में लाने का दूसरा चरण है।
  • महत्व:
    • तैयारी दंडनीय नहीं होती जब तक कि यह किसी विशिष्ट अपराध से स्पष्ट रूप से जुड़ी न हो।
    • कुछ विशिष्ट अपराधों (जैसे युद्ध छेड़ने की तैयारी) में तैयारी को भी दंडनीय माना गया है।
  • उदाहरण:
    • किसी को मारने के लिए हथियार खरीदना।
    • चोरी के लिए मास्टर चाबी बनाना।
  • दंडनीयता का अपवाद:
    भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत कुछ विशेष मामलों में, केवल तैयारी भी दंडनीय होती है, जैसे:
    • युद्ध छेड़ने की तैयारी (धारा 122)।
    • नकली मुद्रा छापने की तैयारी।

3. प्रयास (Attempt)

  • परिभाषा:
    अपराध को पूरा करने के लिए कोई वास्तविक कार्य करना, लेकिन उसे पूरी तरह अंजाम न दे पाना “प्रयास” कहलाता है। प्रयास अपराध का तीसरा और अंतिम चरण होता है, जब तक कि वह अपराध पूर्ण न हो जाए।
  • महत्व:
    • प्रयास को दंडनीय माना जाता है क्योंकि यह अपराध को अंजाम देने का वास्तविक संकेत देता है।
    • कानून के अनुसार, प्रयास और पूर्ण अपराध के बीच बहुत कम अंतर होता है।
  • उदाहरण:
    • किसी को मारने के लिए गोली चलाना, लेकिन गोली चूक जाना।
    • चोरी करने के लिए घर में प्रवेश करना लेकिन पकड़े जाना।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC):
    • धारा 511: किसी भी अपराध के प्रयास के लिए दंड का प्रावधान करती है।
    • दंड: प्रयास करने पर दंड, पूर्ण अपराध के लिए निर्धारित दंड का आधा होता है।

अपराध का पूर्ण होना (Completion of Crime)

  • अपराध का चौथा चरण:
    जब अपराध पूरी तरह से अंजाम दिया जाता है, तो इसे पूर्ण अपराध माना जाता है।
  • उदाहरण:
    • हत्या के प्रयास के बाद वास्तव में हत्या कर देना।
    • चोरी के लिए घर में घुसने के बाद सामान चुरा लेना।

निष्कर्ष:

अपराध के चरण इस बात को स्पष्ट करते हैं कि कानून का उद्देश्य अपराध को रोकना है, न कि केवल उसे दंडित करना।

  1. दोषपूर्ण नीयत और तैयारी को केवल कुछ विशिष्ट मामलों में दंडनीय माना जाता है।
  2. प्रयास को अपराध के समान ही गंभीरता से लिया जाता है क्योंकि यह अपराध को पूरा करने की दिशा में एक वास्तविक कदम है।
  3. पूर्ण अपराध दंडनीयता का अंतिम स्तर है, और इसे गंभीरता से लिया जाता है।

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सामूहिक दायित्व (Group Liability)

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सामूहिक दायित्व (Group Liability) का अर्थ है कि जब एक से अधिक व्यक्ति मिलकर अपराध करते हैं, तो सभी को सामूहिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है। भारतीय कानून के तहत, यदि किसी समूह ने अपराध को अंजाम देने में भाग लिया है, तो प्रत्येक सदस्य को समान रूप से दोषी माना जाता है।


1. सामान्य नीयत (Common Intention)

  • परिभाषा:
    सामान्य नीयत का तात्पर्य है कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों ने एक समान उद्देश्य या अपराध को अंजाम देने के लिए आपसी सहमति और योजना बनाई।
  • महत्व:
    यदि अपराध को अंजाम देने में सभी ने सक्रिय भाग लिया हो, तो हर व्यक्ति को समान रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है, चाहे किसी ने प्रत्यक्ष रूप से अपराध किया हो या नहीं।
  • उदाहरण:
    • दो लोग मिलकर चोरी करने की योजना बनाते हैं। यदि केवल एक व्यक्ति ने चोरी की, तो दूसरा व्यक्ति भी उतना ही दोषी होगा।
    • यदि एक व्यक्ति ने किसी को पकड़े रखा और दूसरे ने हत्या की, तो दोनों को हत्या का दोषी माना जाएगा।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 34:
    यह धारा सामूहिक नीयत के लिए जिम्मेदारी तय करती है।

2. अभिप्रेरण (Abetment)

  • परिभाषा:
    अपराध करने के लिए किसी को उकसाना, सहायता देना या उसे प्रोत्साहित करना “अभिप्रेरण” कहलाता है।
  • अभिप्रेरण के प्रकार:
    • उकसाना (Instigation): किसी को अपराध करने के लिए प्रेरित करना।
    • सहायता देना (Aid): अपराध करने में किसी प्रकार की सहायता प्रदान करना।
    • षड्यंत्र (Conspiracy): अपराध को अंजाम देने के लिए योजना बनाना।
  • महत्व:
    यदि कोई व्यक्ति अपराध के लिए प्रेरित करता है, तो उसे भी उसी प्रकार का दोषी माना जाएगा, जैसे अपराध को करने वाला।
  • उदाहरण:
    • किसी को हत्या के लिए हथियार देना।
    • किसी को चोरी करने के लिए प्रोत्साहित करना।

3. अवैध जमावड़ा (Unlawful Assembly)

  • परिभाषा:
    यदि पांच या अधिक लोग किसी गैरकानूनी उद्देश्य के लिए इकट्ठा होते हैं, तो इसे “अवैध जमावड़ा” कहा जाता है।
  • गैरकानूनी उद्देश्य:
    • किसी को डराना, धमकाना।
    • कानून और व्यवस्था को तोड़ना।
    • दूसरों को चोट पहुंचाना।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 141:
    यह धारा अवैध जमावड़े को परिभाषित करती है।
  • उदाहरण:
    • यदि पांच लोग मिलकर किसी को मारने की योजना बनाते हैं और हथियार लेकर उसके घर जाते हैं।
    • दंगे के उद्देश्य से इकट्ठा होना।

4. आपराधिक साजिश (Criminal Conspiracy)

  • परिभाषा:
    दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा किसी अपराध को अंजाम देने के लिए योजना बनाना “आपराधिक साजिश” कहलाता है।
  • महत्व:
    साजिश करने वाले सभी व्यक्तियों को दोषी माना जाता है, भले ही उन्होंने अपराध में सक्रिय भाग नहीं लिया हो।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120B:
    यह धारा आपराधिक साजिश के लिए दंड का प्रावधान करती है।
  • उदाहरण:
    • बैंक लूटने की योजना बनाना।
    • किसी को जान से मारने की योजना बनाना।

5. दंगा – एक विशिष्ट अपराध के रूप में (Rioting as a Specific Offence)

  • परिभाषा:
    यदि अवैध जमावड़े में शामिल लोग हिंसा करते हैं या सार्वजनिक शांति भंग करते हैं, तो इसे “दंगा” कहा जाता है।
  • महत्व:
    जो भी व्यक्ति इस जमावड़े का हिस्सा होगा, उसे दंगे का दोषी माना जाएगा, भले ही उसने प्रत्यक्ष रूप से हिंसा न की हो।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 146 और 147:
    ये धाराएँ दंगे और उससे जुड़े अपराधों को परिभाषित करती हैं।
  • उदाहरण:
    • भीड़ द्वारा किसी दुकान को लूटना।
    • सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना।

निष्कर्ष:

सामूहिक दायित्व के तहत, यदि कोई व्यक्ति अपराध करने वाले समूह का हिस्सा है, तो वह उसी प्रकार से जिम्मेदार ठहराया जाएगा जैसे अपराध को प्रत्यक्ष रूप से करने वाले व्यक्ति। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि कानून समूह के प्रभाव और एकता से किए गए अपराधों को रोक सके।

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अपराधिक दायित्व के तत्व (Elements of Criminal Liability)

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1. अपराध का कर्ता – प्राकृतिक और विधिक व्यक्ति (Author of Crime – Natural and Legal Person)

  • प्राकृतिक व्यक्ति (Natural Person):
    अपराध का कर्ता एक प्राकृतिक व्यक्ति हो सकता है, जैसे कोई पुरुष, महिला या अन्य व्यक्ति। यह वह व्यक्ति होता है जो शारीरिक रूप से अपराध करता है।
    उदाहरण: किसी व्यक्ति द्वारा चोरी करना, हत्या करना।
  • विधिक व्यक्ति (Legal Person):
    कभी-कभी अपराध का कर्ता कोई विधिक व्यक्ति (जैसे कंपनी, संगठन या संस्था) भी हो सकता है। यदि कंपनी के किसी निर्णय या लापरवाही से कानून का उल्लंघन होता है, तो कंपनी या उसके प्रतिनिधियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
    उदाहरण: किसी कंपनी द्वारा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना या कर चोरी करना।

2. मेन्स रिया – बुरी नीयत (Mens Rea – Evil Intention)

  • परिभाषा:
    मेन्स रिया का अर्थ है “दोषपूर्ण मानसिक स्थिति” या अपराध करने का बुरा इरादा।
  • महत्व:
    अपराध को अपराध तभी माना जाता है जब अपराधी के मन में अपराध करने का इरादा हो।
    उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी को चोट पहुंचाने के इरादे से हमला करता है, तो यह अपराध होगा। लेकिन यदि वही कार्य गलती से हुआ, तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा।
  • बिना मेन्स रिया:
    कुछ मामलों में, जहां कानून स्पष्ट रूप से मेन्स रिया को अनिवार्य नहीं मानता, वहां दोषपूर्ण मानसिक स्थिति के बिना भी दायित्व बनता है।
    उदाहरण: यातायात नियमों का उल्लंघन।

3. मेन्स रिया का महत्व (Importance of Mens Rea)

  • क्यों जरूरी है?
    मेन्स रिया यह साबित करने में मदद करता है कि व्यक्ति ने जानबूझकर अपराध किया और यह गलती या दुर्घटना नहीं थी।
  • अदालती निर्णय:
    अदालतें यह देखती हैं कि अपराधी ने कार्य किस उद्देश्य से किया। यदि बुरी नीयत नहीं है, तो व्यक्ति को दोषमुक्त किया जा सकता है।
    उदाहरण: यदि किसी डॉक्टर ने ऑपरेशन करते समय गलती से किसी की जान ले ली, तो इसे हत्या नहीं माना जाएगा क्योंकि बुरी नीयत नहीं थी।

4. दोषपूर्ण नीयत के उद्देश्य से किया गया कार्य (Act in Furtherance of Guilty Intent)

  • परिभाषा:
    अपराधी के मन में दोषपूर्ण इरादा होने के साथ-साथ उस इरादे को पूरा करने के लिए किया गया कार्य भी अपराध का हिस्सा है।
  • महत्व:
    केवल सोचने या योजना बनाने से अपराध नहीं बनता; अपराध को साबित करने के लिए दोषपूर्ण इरादे के साथ किसी कार्य का होना आवश्यक है।
    उदाहरण:
    • किसी को मारने का इरादा रखने वाला व्यक्ति जब हथियार खरीदता है, तो यह “दोषपूर्ण कार्य” का संकेत है।
    • यदि वह हमला करता है, तो यह अपराध का पूरा होना कहलाता है।

5. लोप (Omission)

  • परिभाषा:
    किसी ऐसे कार्य को न करना, जिसे कानून या कर्तव्य के तहत करना अनिवार्य हो, लोप (Omission) कहलाता है।
  • उदाहरण:
    • माता-पिता का अपने बच्चों को भोजन न देना।
    • किसी व्यक्ति को डूबते हुए देखना और बचाव न करना, जबकि आप ऐसा कर सकते थे।
  • दायित्व:
    लोप भी अपराध हो सकता है, जब व्यक्ति पर उस कार्य को करने का कानूनी दायित्व हो।

6. दूसरे को चोट पहुंचाना (Injury to Another)

  • परिभाषा:
    किसी अन्य व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक या आर्थिक नुकसान पहुंचाना अपराध का महत्वपूर्ण तत्व है।
  • प्रकार:
    • शारीरिक चोट: किसी को मारपीट कर घायल करना।
    • मानसिक चोट: धमकी देकर डराना या मानसिक तनाव देना।
    • आर्थिक नुकसान: चोरी, धोखाधड़ी, या संपत्ति का नुकसान।
  • उदाहरण:
    • किसी को जानबूझकर गाड़ी से टक्कर मारना।
    • किसी के पैसे धोखाधड़ी से छीनना।

निष्कर्ष:
अपराध को साबित करने के लिए ऊपर बताए गए सभी तत्वों का होना आवश्यक है। मेन्स रिया (दोषपूर्ण मानसिक स्थिति) और एक्टस रियस (दोषपूर्ण कार्य) अपराध के सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं। इनके बिना अपराध का सिद्ध होना मुश्किल है।https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/09/general-principle-of-crime-and-specific-offences/

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General Principle of Tort and Specific Wrong

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General Principle of Tort and Specific Wrong , Branch: II (Torts and Crime),Semester: Third,Paper:

1. Concept of Tortious Liability

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/concept-of-tortious-liability/

a. Definition of Tort
b. Distinction from contractual liability
c. Distinction from criminal liability
d. Damnum Sine Injuria
e. Injuria Sine Damno

2. Strict Liability

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/strict-liability-कठोर-उत्तरदायित्व-2/

a. Dangerous things – Escape – Non-natural use of land
b. The Rule in Rylands v. Fletcher.

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/rylands-v-fletcher-के-बचाव-defences/
c. Defences to the Rule

3. The Rule of Absolute Liability –

https://advocatesandhyarathore.com/2024/12/28/absolute-liability-पूर्ण-उत्तरदायित्व/

The Rule in M.C. Mehta vs. Union of India

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/m-c-mehta-v-union-of-india-1987-absolute-liability-principle/

4. Statutory Liability.

https://advocatesandhyarathore.com/2024/12/28/statutory-liability-वैधानिक-उत्तरदायित्व/

5. Vicarious Liability.

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/vicarious-liability-प्रतिनिधिक-उत्तरदायि/

a. Master and Servant
b. Who is a Servant?
c. Lending a Servant
d. What is the course of employment – Carelessness of servant – Mistake of servant – Willful wrong of servant
e. Mutual rights and obligations of Master and Servant and Independent Contractor

6. Negligence as a Tort

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/negligence-as-a-tort/

a. Duty to take care
b. Breach of duty
c. Consequent damage
d. Contributory negligence

7. Liability of State.

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/liability-of-the-state-राज्य-की-जिम्मेदारी/

8. Defences to Actions.

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/किसी-कार्यवाही-के-विरुद्/

a. Consent – Volenti Non-Fit Injuria
b. Public Policy
c. Mistake
d. Inevitable Accident
e. Act of God – Private Defence
f. Necessity
g. Statutory Authority

सेमेस्टर: तीसरा (LLM)

शाखा: II (टॉर्ट्स और अपराध)

पेपर: I

पाठ्यक्रम का शीर्षक: टॉर्ट के सामान्य सिद्धांत और विशिष्ट गलतियाँ


1. टॉरटस दायित्व की अवधारणा (Concept of Tortious Liability)

http://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/concept-of-tortious-liability/↗

a. टॉर्ट की परिभाषा
b. अनुबंधीय उत्तरदायित्व से अंतर
c. आपराधिक उत्तरदायित्व से अंतर
d. Damnum Sine Injuria (हानि बिना अधिकार हानि)
e. Injuria Sine Damno (अधिकार हानि बिना वास्तविक हानि)


2. सख्त उत्तरदायित्व (Strict Liability).

http://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/strict-liability-कठोर-उत्तरदायित्व-2/↗

a. खतरनाक वस्तुएं – बचाव – भूमि का गैर-प्राकृतिक उपयोग
b. Rylands v. Fletcher का नियम

http://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/rylands-v-fletcher-के-बचाव-defences/↗
c. इस नियम के विरुद्ध बचाव


3. पूर्ण उत्तरदायित्व का नियम (The Rule of Absolute Liability)

https://advocatesandhyarathore.com/2024/12/28/absolute-liability-पूर्ण-उत्तरदायित्व/


4. वैधानिक उत्तरदायित्व (Statutory Liability)

http://advocatesandhyarathore.com/2024/12/28/statutory-liability-वैधानिक-उत्तरदायित्व/↗


5. प्रतिनिधिक उत्तरदायित्व (Vicarious Liability)

http://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/vicarious-liability-प्रतिनिधिक-उत्तरदायि/↗

a. मालिक और सेवक (Master and Servant)
b. सेवक कौन है?
c. सेवक को उधार देना (Lending a Servant)
d. कार्य क्षेत्र में गलती:

  • सेवक की लापरवाही
  • सेवक की गलती
  • सेवक की जानबूझकर की गई गलती मालिक और सेवक के पारस्परिक अधिकार और दायित्व
  • स्वतंत्र ठेकेदार के साथ अंतर।

6. टॉर्ट के रूप में लापरवाही (Negligence as a Tort)

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/negligence-as-a-tort/

a. सावधानी बरतने का कर्तव्य
b. कर्तव्य का उल्लंघन
c. परिणामी हानि
d. सहायक लापरवाही (Contributory Negligence)


7. राज्य की उत्तरदायित्व (Liability of State).

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/liability-of-the-state-राज्य-की-जिम्मेदारी/


8. कार्यवाही के विरुद्ध बचाव (Defences to Actions)

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/04/किसी-कार्यवाही-के-विरुद्/

a. सहमति (Volenti Non-Fit Injuria)
b. सार्वजनिक नीति (Public Policy)
c. गलती (Mistake)
d. अनिवार्य दुर्घटना (Inevitable Accident)
e. ईश्वर का कार्य (Act of God) और निजी बचाव (Private Defence)
f. आवश्यकता (Necessity)
g. वैधानिक प्राधिकरण (Statutory Authority)

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किसी कार्यवाही के विरुद्ध बचाव (Defences to Actions)

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किसी कार्यवाही के विरुद्ध बचाव (Defences to Actions) किसी व्यक्ति के खिलाफ दायर मुकदमों में, प्रतिवादी (Defendant) के पास कुछ वैध बचाव होते हैं। ये बचाव यह साबित करने में मदद करते हैं कि प्रतिवादी द्वारा किया गया कार्य अवैध नहीं था, या वह कुछ परिस्थितियों के तहत उचित था। नीचे दी गई प्रत्येक रक्षा को विस्तार से समझाया गया है:


1. सहमति (Consent) या Volenti Non-Fit Injuria

सिद्धांत:

  • इस सिद्धांत का अर्थ है, “जिसे जोखिम का ज्ञान हो और जो स्वेच्छा से उसे स्वीकार करे, उसे हानि का दावा करने का अधिकार नहीं।”
  • यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किसी जोखिम में शामिल होता है, तो वह किसी चोट या हानि के लिए जिम्मेदार पक्ष से मुआवजे का दावा नहीं कर सकता।

उदाहरण:

  • एक व्यक्ति खेल के मैदान में स्वेच्छा से प्रवेश करता है और खेल के दौरान उसे चोट लगती है। वह चोट के लिए आयोजकों पर मुकदमा नहीं कर सकता।

2. सार्वजनिक नीति (Public Policy)

सिद्धांत:

  • सार्वजनिक नीति के तहत, कुछ कार्य या दावे इस आधार पर रद्द किए जा सकते हैं कि वे समाज के हित के खिलाफ हैं।
  • यदि किसी कार्रवाई से समाज का सामूहिक नुकसान हो सकता है, तो इसे बचाव के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

उदाहरण:

  • किसी व्यक्ति ने यह अनुबंध किया कि वह समाज विरोधी कार्य करेगा। यह अनुबंध सार्वजनिक नीति के खिलाफ होगा और अवैध माना जाएगा।

3. गलती (Mistake)

सिद्धांत:

  • गलती, चाहे तथ्य की हो या कानून की, एक बचाव के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है।
  • हालांकि, कानून की गलती अक्सर स्वीकार्य नहीं होती। केवल तथ्य की गलती पर बचाव किया जा सकता है।

उदाहरण:

  • यदि किसी ने किसी और की संपत्ति को गलती से अपनी संपत्ति समझकर उपयोग किया, तो यह एक तथ्य की गलती हो सकती है।

4. अनिवार्य दुर्घटना (Inevitable Accident)

सिद्धांत:

  • यदि किसी दुर्घटना को रोकने के लिए सभी सावधानियों का पालन किया गया था और फिर भी दुर्घटना हुई, तो यह “अनिवार्य दुर्घटना” कहलाएगी।
  • इसमें प्रतिवादी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

उदाहरण:

  • एक ड्राइवर ने सभी यातायात नियमों का पालन किया, फिर भी अचानक ब्रेक फेल हो गया और दुर्घटना हो गई। यह अनिवार्य दुर्घटना होगी।

5. ईश्वर का कार्य (Act of God)

सिद्धांत:

  • यदि कोई घटना प्राकृतिक कारणों जैसे भूकंप, बाढ़, तूफान आदि के कारण होती है और उस पर मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं होता, तो इसे “ईश्वर का कार्य” माना जाता है।
  • ऐसे मामलों में प्रतिवादी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

उदाहरण:

  • भारी बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ से किसी की संपत्ति को नुकसान पहुंचा। यह ईश्वर का कार्य माना जाएगा।

6. निजी बचाव (Private Defence)

सिद्धांत:

  • यदि किसी व्यक्ति ने अपने या अपने परिवार की रक्षा के लिए किसी पर हमला किया या हानि पहुंचाई, तो इसे बचाव के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • यह बचाव तभी वैध है जब कोई व्यक्ति आवश्यक सीमा तक ही बल का प्रयोग करे।

उदाहरण:

  • यदि कोई चोर रात में घर में घुसने की कोशिश करता है और घर के मालिक ने उसकी पिटाई की, तो यह निजी बचाव होगा।

7. आवश्यकता (Necessity)

सिद्धांत:

  • यदि किसी कार्य को किसी बड़े नुकसान को रोकने के लिए किया गया हो, तो इसे “आवश्यकता” के तहत वैध माना जा सकता है।
  • इसमें यह साबित करना जरूरी है कि कार्य करना अनिवार्य था।

उदाहरण:

  • यदि डॉक्टर ने मरीज की जान बचाने के लिए बिना अनुमति के सर्जरी की, तो यह आवश्यकता के तहत उचित होगा।

8. वैधानिक अधिकार (Statutory Authority)

सिद्धांत:

  • यदि कोई व्यक्ति वैधानिक प्राधिकरण (Statutory Authority) के तहत कार्य कर रहा हो और इसके कारण किसी को नुकसान हो, तो इसे बचाव के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • इसमें कार्य करने वाला व्यक्ति कानून के अनुसार कार्य कर रहा होता है।

उदाहरण:

  • यदि नगरपालिका ने ड्रेनेज सिस्टम के लिए खुदाई की, जिससे किसी की संपत्ति को अस्थायी नुकसान हुआ, तो यह वैधानिक अधिकार के तहत होगा।

निष्कर्ष (Conclusion):

उपरोक्त बचाव यह साबित करते हैं कि हर परिस्थिति में प्रतिवादी को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है। इनमें से प्रत्येक बचाव उस विशेष परिस्थिति पर निर्भर करता है, जिसमें कार्य किया गया हो। यह कानून का महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि दोष तभी तय किया जाए जब उचित प्रक्रिया और बचाव पर विचार कर लिया जाए।

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Liability of the State (राज्य की जिम्मेदारी )

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Liability of the State (राज्य की जिम्मेदारी ) एक कानूनी सिद्धांत है, जो यह तय करता है कि क्या और कब राज्य अपने कृत्यों और कार्यों के लिए जिम्मेदार है। सामान्यत: राज्य के खिलाफ कानूनी मामले लाने में कठिनाई होती है, क्योंकि राज्य को “sovereign immunity” (राज्य की असुरक्षा) के सिद्धांत से सुरक्षा प्राप्त होती है, यानी राज्य को सामान्यतः नागरिकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से छूट होती है। फिर भी, आधुनिक कानूनी व्यवस्था में यह सिद्धांत बदला है और कुछ परिस्थितियों में राज्य को उसकी लापरवाही, गैरकानूनी कृत्य, या संवैधानिक कर्तव्यों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

राज्य की जिम्मेदारी का निर्धारण इस आधार पर किया जाता है कि क्या राज्य का कृत्य एक व्यक्तिगत कर्तव्य का उल्लंघन है, क्या यह उसके शासनात्मक कार्यों से संबंधित है, और क्या यह किसी व्यक्ति की मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है।


राज्य की जिम्मेदारी के प्रमुख सिद्धांत (Principles of State Liability)

  1. राज्य की सार्वभौमिक असुरक्षा (Sovereign Immunity):
    • पहले राज्य को उसकी शक्तियों और कृत्यों के लिए “sovereign immunity” का संरक्षण प्राप्त था। इसका मतलब था कि राज्य को कानूनी कार्रवाई से मुक्त रखा गया था, क्योंकि राज्य का कृत्य स्वयं कानून का रूप था।
    • लेकिन समय के साथ यह सिद्धांत बदल गया और अब राज्य को कई मामलों में जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, विशेषकर यदि उसका कृत्य संविधान या कानून का उल्लंघन करता है।
  2. संविधान और कानून के तहत जिम्मेदारी:
    • संविधान में राज्य की जिम्मेदारी को विशेष रूप से निर्धारित किया गया है। उदाहरण के लिए, भारतीय संविधान में कुछ अधिकारों और कर्तव्यों की व्याख्या की गई है, जिनके उल्लंघन के परिणामस्वरूप राज्य जिम्मेदार हो सकता है।
    • धारा 32 (संविधान के तहत मौलिक अधिकारों की सुरक्षा) के तहत, यदि राज्य किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो वह उस नागरिक के खिलाफ जिम्मेदार होगा।

राज्य की जिम्मेदारी के प्रकार (Types of State Liability)

  1. संवैधानिक कृत्यों के लिए जिम्मेदारी (Liability for Constitutional Acts):
    • जब राज्य संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करता है, लेकिन अगर वह इन कर्तव्यों का उल्लंघन करता है, तो राज्य जिम्मेदार हो सकता है। उदाहरण के लिए, यदि राज्य किसी नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो संविधान के तहत राज्य को कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  2. न्यायिक कृत्यों के लिए जिम्मेदारी (Liability for Judicial Acts):
    • राज्य के न्यायिक कार्यों (जैसे अदालतों के फैसले) के लिए राज्य जिम्मेदार नहीं होगा, यदि न्यायिक अधिकारियों ने निर्णय लेने में कोई गलती की है, जब तक वह निर्णय कानून के अंतर्गत किया गया हो।
    • हालांकि, अगर न्यायिक अधिकारी ने जानबूझकर किसी गलत निर्णय दिया, तो राज्य को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  3. प्रशासनिक कृत्यों के लिए जिम्मेदारी (Liability for Administrative Acts):
    • राज्य के प्रशासनिक कृत्य, जैसे कि पुलिस द्वारा किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी या बिना कारण उत्पीड़न, राज्य को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए, अगर पुलिस द्वारा किसी व्यक्ति को अवैध रूप से गिरफ्तार किया जाता है, तो राज्य को उसकी गलत गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
  4. नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन (Violation of Fundamental Rights):
    • यदि राज्य किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो उस व्यक्ति को राज्य के खिलाफ न्यायालय में शिकायत करने का अधिकार होता है।
    • उदाहरण के लिए, यदि राज्य के कृत्यों से किसी नागरिक के जीवन, स्वतंत्रता, या संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन होता है, तो वह राज्य के खिलाफ मुकदमा दायर कर सकता है।

राज्य की जिम्मेदारी पर कुछ प्रमुख मामलों के उदाहरण (Examples of Cases Regarding State Liability)

  1. State of Rajasthan v. Vidyawati (1962):
    • इस मामले में, एक सरकारी वाहन द्वारा एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी। राज्य ने अपने वाहन चालक के कृत्य के लिए जिम्मेदारी से इंकार किया। कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि राज्य को अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए, क्योंकि सरकार अपने प्रशासनिक कार्यों के दौरान कृत्य के लिए जिम्मेदार है।
  2. K.K. Verma v. Union of India (1954):
    • इस मामले में, एक व्यक्ति ने भारतीय रेल द्वारा उसे हुए नुकसान के लिए राज्य के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। अदालत ने फैसला सुनाया कि भारतीय रेल को उसके कृत्य के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  3. Bajaj Auto Ltd. v. Union of India (2004):
    • इस मामले में राज्य की जिम्मेदारी का सवाल था कि क्या सरकार को अपने फैसलों में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है। कोर्ट ने निर्णय दिया कि राज्य को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए कार्रवाई करनी चाहिए।

राज्य की जिम्मेदारी के मामलों में बचाव (Defenses in Cases of State Liability)

राज्य के खिलाफ कानूनी कार्रवाई में कुछ परिस्थितियाँ होती हैं जब राज्य अपनी जिम्मेदारी से बच सकता है:

  1. कानूनी कार्यों के तहत (Acts in Good Faith):
    • यदि राज्य ने कोई कृत्य ईमानदारी से और कानून के तहत किया है, तो उसे जिम्मेदारी से मुक्त किया जा सकता है।
  2. सशस्त्र बलों द्वारा किए गए कार्य (Acts by Armed Forces):
    • अगर कोई कृत्य सशस्त्र बलों द्वारा किया जाता है, तो राज्य को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, जब तक यह कृत्य असंवैधानिक या गैरकानूनी न हो।
  3. सार्वजनिक नीति (Public Policy):
    • कभी-कभी राज्य अपनी जिम्मेदारी से बच सकता है यदि उसके कार्य सार्वजनिक नीति के अनुरूप हैं और यह सरकार के व्यापक लक्ष्यों को पूरा करता है।

निष्कर्ष (Conclusion):

राज्य की जिम्मेदारी एक महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत है, जो यह सुनिश्चित करता है कि राज्य अपने नागरिकों के खिलाफ अपनी जिम्मेदारियों का पालन करे। हालांकि, राज्य को कुछ परिस्थितियों में कानूनी छूट प्राप्त होती है, फिर भी यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन होने पर राज्य को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। राज्य की जिम्मेदारी पर विभिन्न मामलों के माध्यम से यह सिद्धांत विकसित हुआ है और यह आज भी लगातार लागू होता है।

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Negligence as a Tort(लापरवाही)

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Negligence as a Tort (लापरवाही) एक ऐसा कानूनी सिद्धांत है जिसके तहत यह माना जाता है कि एक व्यक्ति ने अपनी जिम्मेदारी का पालन ठीक से नहीं किया और उसके कारण दूसरे व्यक्ति को हानि पहुँचती है। यह एक civil wrong (नागरिक अपराध) है, जिसे किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने के कारण उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। Negligence के तहत कानूनी प्रक्रिया में चार प्रमुख तत्व होते हैं:

  1. Duty to Take Care (सावधानी रखने का कर्तव्य)
  2. Breach of Duty (कर्तव्य का उल्लंघन)
  3. Consequent Damage (नुकसान का परिणाम)
  4. Contributory Negligence (योगदानपूर्ण लापरवाही)

1. Duty to Take Care (सावधानी रखने का कर्तव्य)

किसी व्यक्ति के खिलाफ लापरवाही का दावा करने के लिए, यह साबित करना आवश्यक है कि उस व्यक्ति के पास दूसरे व्यक्ति के प्रति सावधानी रखने का कानूनी कर्तव्य था।

  • सावधानी रखने का कर्तव्य तब उत्पन्न होता है जब एक व्यक्ति अपने कार्यों या व्यवहार के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति की सुरक्षा या भलाई के लिए जिम्मेदार होता है।
  • उदाहरण के लिए, एक ड्राइवर का कर्तव्य है कि वह सड़क पर चलने वाले पैदल यात्री को नुकसान न पहुँचाए। इसी तरह, एक डॉक्टर का कर्तव्य है कि वह अपने मरीजों को उचित देखभाल प्रदान करें।
  • कर्तव्य का निर्धारण आमतौर पर यह देख कर किया जाता है कि क्या यह संबंधी व्यक्ति के कार्यों से किसी अन्य व्यक्ति को संभावित रूप से नुकसान हो सकता है।

उदाहरण:

  • यदि एक दुकानदार किसी गीली जगह पर सामान रखते हैं, तो ग्राहकों के गिरने और चोटिल होने का खतरा हो सकता है, इसलिए दुकानदार का कर्तव्य है कि वह सावधानी बरते और दुकान में किसी प्रकार की खतरनाक स्थिति उत्पन्न न होने दे।

2. Breach of Duty (कर्तव्य का उल्लंघन)

जब एक व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है, तो उसे breach of duty (कर्तव्य का उल्लंघन) कहा जाता है।

  • Breach तब होता है जब कोई व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को ठीक से पूरा नहीं करता और उसके कार्यों या लापरवाही से दूसरे व्यक्ति को नुकसान पहुँचता है।
  • कर्तव्य का उल्लंघन तब साबित होता है जब यह दिखाया जाता है कि व्यक्ति ने सावधानी की अपेक्षित मानक को पूरा नहीं किया।
  • यह मानक आमतौर पर उस व्यक्ति की पेशेवर या सामान्य जिम्मेदारी के आधार पर निर्धारित किया जाता है।

उदाहरण:

  • अगर एक डॉक्टर ने अपने मरीज की सर्जरी करते समय उपयुक्त सावधानी नहीं बरती और इससे मरीज को नुकसान हुआ, तो इसे कर्तव्य का उल्लंघन माना जाएगा।
  • अगर एक ड्राइवर सिग्नल का उल्लंघन करता है और दुर्घटना कर देता है, तो यह कर्तव्य का उल्लंघन होगा।

3. Consequent Damage (नुकसान का परिणाम)

लापरवाही का एक और तत्व यह है कि उस कर्तव्य के उल्लंघन से वास्तविक नुकसान (damages) हुआ हो।

  • सिर्फ कर्तव्य का उल्लंघन ही पर्याप्त नहीं है; यह भी साबित करना आवश्यक है कि उल्लंघन के परिणामस्वरूप नुकसान हुआ।
  • इस नुकसान को actual damage (वास्तविक हानि) कहा जाता है और यह शारीरिक चोट, संपत्ति की हानि, मानसिक तनाव या वित्तीय नुकसान हो सकता है।
  • कृत्य और नुकसान के बीच का संबंध साबित करने के लिए यह दिखाना पड़ता है कि उल्लंघन के कारण हानि हुई।

उदाहरण:

  • यदि एक दुकानदार ने अपनी दुकान में पानी फैलाया और ग्राहक गिरकर घायल हो गया, तो ग्राहक को चिकित्सा बिल और दर्द का सामना करना पड़ सकता है, जो नुकसान (damage) के रूप में साबित होता है।

4. Contributory Negligence (योगदानपूर्ण लापरवाही)

कभी-कभी हानि केवल एक व्यक्ति के कारण नहीं होती, बल्कि दोनों पक्षों के लापरवाह व्यवहार के कारण होती है।

  • Contributory negligence तब लागू होता है जब पीड़ित व्यक्ति ने खुद भी किसी तरह की लापरवाही की हो, जिससे नुकसान और बढ़ गया हो।
  • अगर अदालत यह मानती है कि पीड़ित ने अपनी सुरक्षा में कोई योगदानपूर्ण लापरवाही की है, तो इस वजह से उसकी हानि को कम किया जा सकता है, और उसकी क्षतिपूर्ति में कमी हो सकती है।

उदाहरण:

  • अगर एक पैदल यात्री सड़कों पर चलते समय अपने फोन पर ध्यान दे रहा था और एक कार उससे टकरा गई, तो पैदल यात्री की अपनी लापरवाही को “contributory negligence” माना जा सकता है।
  • अगर किसी व्यक्ति ने बिना सुरक्षा गियर के बाइक चलाई और दुर्घटना हुई, तो उसकी लापरवाही को contributory negligence माना जाएगा।

निष्कर्ष (Conclusion):

नेग्लिजेंस एक tort है, जिसमें यह सिद्ध करना होता है कि एक व्यक्ति ने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया और दूसरे व्यक्ति को वास्तविक नुकसान हुआ। इसका निर्धारण चार प्रमुख तत्वों के आधार पर किया जाता है:

  1. Duty to take care – सावधानी रखने का कर्तव्य।
  2. Breach of duty – कर्तव्य का उल्लंघन।
  3. Consequent damage – नुकसान का परिणाम।
  4. Contributory negligence – योगदानपूर्ण लापरवाही (अगर पीड़ित की भी कोई लापरवाही हो)।

लापरवाही का मामला तब成立 होता है जब इन तत्वों का सही तरीके से पालन किया जाता है और जब यह साबित होता है कि किसी के लापरवाही भरे कृत्य से दूसरा व्यक्ति नुकसान पहुँचाता है।

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Vicarious Liability (प्रतिनिधिक उत्तरदायित्व)

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परिभाषा (Definition): Vicarious Liability (प्रतिनिधिक उत्तरदायित्व) एक कानूनी सिद्धांत है जिसके तहत एक व्यक्ति (Master/नियोक्ता) दूसरे व्यक्ति (Servant/कर्मचारी) के कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है, यदि वे कार्य उसके आदेश या रोजगार की सीमाओं के भीतर किए गए हों।


Master and Servant (मालिक और नौकर)

Master (मालिक):

  • मालिक वह व्यक्ति है जो सेवक को कार्य पर रखता है और कार्य के तरीके को नियंत्रित करता है।
  • वह सेवक द्वारा रोजगार की अवधि में किए गए कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है।

Servant (नौकर):

  • सेवक वह व्यक्ति है जो मालिक के लिए कार्य करता है और उसके आदेशों का पालन करता है।
  • सेवक का कार्य मालिक के नियंत्रण और पर्यवेक्षण के अधीन होता है।
  • उदाहरण: किसी कंपनी में काम करने वाला कर्मचारी, ड्राइवर, या फैक्ट्री का कर्मचारी।

Lending a Servant (सेवक का उधार देना)

मूल सिद्धांत (Principle):

जब एक मालिक अपने सेवक को अस्थायी रूप से किसी अन्य व्यक्ति (Borrower) के पास भेजता है, तो यह निर्धारित किया जाता है कि सेवक किसके नियंत्रण में काम कर रहा था।

  • Control Test (नियंत्रण परीक्षण):
    यह देखा जाता है कि सेवक को कौन नियंत्रित कर रहा था। यदि अस्थायी मालिक सेवक के कार्यों को नियंत्रित कर रहा है, तो वह Vicarious Liability के लिए जिम्मेदार होगा।

महत्वपूर्ण मामला:

  • Mersey Docks and Harbour Board v. Coggins & Griffiths (1947):
    • एक क्रेन ड्राइवर को अस्थायी रूप से किराए पर दिया गया था।
    • कोर्ट ने तय किया कि जब तक अस्थायी मालिक सेवक के कार्यों पर पूर्ण नियंत्रण नहीं करता, मूल मालिक उत्तरदायी होगा।

Course of Employment (रोजगार की अवधि)

सिद्धांत:

Vicarious Liability तभी लागू होती है जब सेवक का कार्य रोजगार की अवधि और दायरे के भीतर किया गया हो।

रोजगार के दौरान होने वाले कृत्य (Acts in the Course of Employment):

  1. Carelessness of Servant (सेवक की लापरवाही):
    यदि सेवक की लापरवाही से नुकसान होता है, तो मालिक उत्तरदायी होगा।
  2. Mistake of Servant (सेवक की भूल):
    यदि सेवक ईमानदारी से कार्य करता है लेकिन गलती कर बैठता है, तो मालिक उत्तरदायी होगा।
    • उदाहरण: डॉक्टर द्वारा इलाज के दौरान अनजाने में हुई गलती।
  3. Willful Wrong of Servant (सेवक का जानबूझकर गलत कार्य):
    यदि सेवक जानबूझकर गलत कार्य करता है, लेकिन यह कार्य रोजगार के दायरे में आता है, तो मालिक उत्तरदायी होगा।
    • मामला:Limpus v. London General Omnibus Co. (1862)
      • बस ड्राइवर ने जानबूझकर प्रतिस्पर्धी बस को नुकसान पहुँचाया।
      • मालिक को उत्तरदायी ठहराया गया।

रोजगार के दायरे से बाहर के कार्य (Acts Outside the Course of Employment):

  1. यदि सेवक निजी कार्य कर रहा हो, तो मालिक उत्तरदायी नहीं होगा।
  2. मामला:Beard v. London General Omnibus Co. (1900)
    • एक कंडक्टर ने बस चलाने की कोशिश की, जिससे दुर्घटना हुई।
    • मालिक को उत्तरदायी नहीं ठहराया गया।

Mutual Rights and Obligations (पारस्परिक अधिकार और दायित्व)

मालिक के दायित्व (Duties of the Master):

  1. उचित पर्यवेक्षण (Proper Supervision):
    सेवक के कार्यों की निगरानी करना।
  2. सुरक्षित कार्य वातावरण (Safe Working Environment):
    सेवकों को सुरक्षित उपकरण और स्थान प्रदान करना।
  3. वेतन भुगतान (Payment of Wages):
    सेवक को नियमानुसार वेतन प्रदान करना।

सेवक के दायित्व (Duties of the Servant):

  1. ईमानदारी से कार्य करना (Work with Honesty):
    मालिक के आदेशों का पालन करना।
  2. कार्य की गुणवत्ता बनाए रखना (Maintain Quality of Work):
    अपने कर्तव्यों को सही तरीके से निभाना।
  3. गोपनीयता (Confidentiality):
    मालिक के व्यापारिक रहस्यों को सुरक्षित रखना।

Independent Contractor और Master-Servant में अंतर (Distinction Between Independent Contractor and Servant)

पैरामीटरServant (नौकर)Independent Contractor (स्वतंत्र ठेकेदार)
परिभाषामालिक के आदेश और नियंत्रण में काम करता है।अपने काम के तरीके और तरीके पर नियंत्रण रखता है।
काम का तरीकामालिक द्वारा निर्देशित।खुद तय करता है।
उत्तरदायित्वमालिक, सेवक के कार्यों के लिए उत्तरदायी है।मालिक, ठेकेदार के कार्यों के लिए उत्तरदायी नहीं है।
उदाहरणबस ड्राइवर, फैक्ट्री कर्मचारी।निर्माण ठेकेदार, वकील।
मामलाLimpus v. London General Omnibus Co.Independent Contractor के केस में कोई Vicarious Liability नहीं।

निष्कर्ष (Conclusion):

Vicarious Liability का सिद्धांत मालिक और सेवक के बीच के संबंध और उनके अधिकारों और कर्तव्यों को नियंत्रित करता है। यह सिद्धांत न केवल न्याय प्रदान करता है बल्कि सेवकों के कार्यों के लिए मालिकों को सावधानी बरतने के लिए प्रेरित करता है। Master और Servant का यह संबंध कानूनी, सामाजिक और व्यावसायिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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Strict Liability (कठोर उत्तरदायित्व)

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परिभाषा (Definition): Strict Liability (कठोर उत्तरदायित्व) एक कानूनी सिद्धांत है जिसके तहत यदि कोई व्यक्ति किसी खतरनाक वस्तु को अपने नियंत्रण में रखता है और वह वस्तु दूसरों को नुकसान पहुंचाती है, तो उसे हर्जाना देना होगा, भले ही उसने लापरवाही (negligence) न की हो।

महत्वपूर्ण विशेषताएँ (Key Features):

  1. लापरवाही का सबूत आवश्यक नहीं (No Need to Prove Negligence):
    उत्तरदायी व्यक्ति को नुकसान के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा, भले ही उसने पर्याप्त सावधानी बरती हो।
  2. खतरनाक चीज़ें (Dangerous Things):
    खतरनाक वस्तुओं का नियंत्रण रखने वाला व्यक्ति विशेष सावधानी बरतने का उत्तरदायी होता है।
  3. अप्राकृतिक उपयोग (Non-Natural Use of Land):
    यदि भूमि का उपयोग असामान्य या अप्राकृतिक तरीके से किया गया हो और इससे नुकसान हो, तो strict liability लागू होती है।

खतरनाक चीजें, पलायन, और भूमि का अप्राकृतिक उपयोग (Dangerous Things, Escape, and Non-Natural Use of Land)

  1. खतरनाक चीजें (Dangerous Things):
    ऐसी वस्तुएं जो स्वभाव से ही खतरनाक होती हैं, जैसे:
    • विस्फोटक सामग्री।
    • जहरीली गैस।
    • पानी के बड़े जलाशय।
  2. पलायन (Escape):
    यदि खतरनाक चीज़ किसी व्यक्ति की जमीन से निकलकर दूसरों की संपत्ति या शरीर को नुकसान पहुंचाती है, तो strict liability लागू होती है।
    • उदाहरण: यदि जलाशय से पानी लीक होकर पड़ोसी की जमीन को बर्बाद कर देता है।
  3. भूमि का अप्राकृतिक उपयोग (Non-Natural Use of Land):
    भूमि का ऐसा उपयोग जो सामान्य रूप से न किया जाए, जैसे:
    • बड़े पैमाने पर पानी जमा करना।
    • रासायनिक पदार्थों का भंडारण।

The Rule in Rylands v. Fletcher (1868)

मामले का सार (Case Summary):

  • पृष्ठभूमि:
    इस मामले में, Rylands ने एक जलाशय बनवाया। निर्माण के दौरान पानी रिसने लगा और पास की खदान (Fletcher) को नुकसान पहुंचा।
  • न्यायालय का निर्णय:
    Rylands को उत्तरदायी ठहराया गया, भले ही उसने जानबूझकर कोई गलती न की हो।

नियम (Rule):

यदि कोई व्यक्ति अपनी भूमि पर किसी खतरनाक चीज़ का अप्राकृतिक उपयोग करता है और वह चीज़ दूसरों को नुकसान पहुंचाती है, तो उसे उत्तरदायी ठहराया जाएगा।


Strict Liability के लिए आवश्यक तत्व (Essentials of Strict Liability)

  1. खतरनाक वस्तु (Dangerous Thing):
    वस्तु ऐसी होनी चाहिए जो स्वभाव से खतरनाक हो।
  2. पलायन (Escape):
    खतरनाक वस्तु उत्तरदायी व्यक्ति की भूमि से बाहर निकलकर नुकसान पहुंचाए।
  3. अप्राकृतिक उपयोग (Non-Natural Use):
    भूमि का ऐसा उपयोग जो सामान्य परिस्थितियों में अपेक्षित न हो।

Strict Liability के अपवाद (Defences to the Rule)

  1. पीड़ित की सहमति (Consent of the Plaintiff):
    यदि पीड़ित ने खतरनाक चीज़ के जोखिम को अपनी मर्जी से स्वीकार किया हो।
    • उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति खतरनाक फैक्ट्री के पास रहने के लिए सहमत हो।
  2. अप्राकृतिक कारण (Act of God):
    यदि नुकसान प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, भूकंप, या तूफान के कारण हुआ हो।
  3. तीसरे पक्ष का कार्य (Act of Third Party):
    यदि नुकसान किसी तीसरे व्यक्ति की गलती से हुआ हो, जो उत्तरदायी व्यक्ति के नियंत्रण में न हो।
  4. पीड़ित की गलती (Plaintiff’s Own Fault):
    यदि नुकसान स्वयं पीड़ित की गलती से हुआ हो।
    • उदाहरण: यदि पीड़ित जानबूझकर खतरनाक वस्तु के संपर्क में आया हो।
  5. वैधानिक प्राधिकरण (Statutory Authority):
    यदि कार्य सरकार या किसी कानूनी प्राधिकरण के निर्देश पर किया गया हो।
    • उदाहरण: रेलवे ट्रैक के लिए विस्फोटक का उपयोग।

Strict Liability का महत्व (Importance of Strict Liability)

  1. सावधानी को बढ़ावा:
    लोग खतरनाक चीज़ों का उपयोग करते समय अधिक सावधानी बरतते हैं।
  2. न्याय का सिद्धांत:
    जिसने नुकसान किया है, उसे मुआवजा देना चाहिए।
  3. पीड़ित को संरक्षण:
    यह कानून पीड़ित के हितों की रक्षा करता है, खासकर जब नुकसान अप्रत्याशित हो।

Strict Liability और Absolute Liability में अंतर

पैरामीटरStrict LiabilityAbsolute Liability
दायित्वकुछ अपवाद स्वीकार्य हैं।कोई अपवाद स्वीकार्य नहीं है।
शर्तेंखतरनाक चीज, पलायन, अप्राकृतिक उपयोग आवश्यक।केवल खतरनाक चीज का उपयोग पर्याप्त है।
मामलाRylands v. Fletcher।M.C. Mehta v. Union of India (Bhopal Gas)।

M.C. Mehta v. Union of India (1987): Absolute Liability Principle

मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)

  • स्थान: दिल्ली, भारत।
  • संभवित कारण:
    श्रमिकों और जनता के जीवन को खतरे में डालने वाली एक उद्योगिक गतिविधि।

इस मामले में, श्री M.C. Mehta ने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया, जिसमें श्रीराम फूड एंड फर्टिलाइज़र इंडस्ट्रीज़ से गैस रिसाव के कारण हुई दुर्घटनाओं और नुकसान के लिए उत्तरदायित्व तय करने की माँग की गई थी।


मामले का मुख्य मुद्दा (Key Issues)

  1. सार्वजनिक सुरक्षा का उल्लंघन (Violation of Public Safety):
    उद्योग द्वारा की गई गतिविधियाँ सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा थीं।
  2. उत्तरदायित्व का दायरा (Scope of Liability):
    क्या उद्योग केवल “Strict Liability” के सिद्धांत के तहत जिम्मेदार होगा या इसे “Absolute Liability” के तहत उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए?

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Judgment by Supreme Court)

  1. Absolute Liability का सिद्धांत (Principle of Absolute Liability):
    सुप्रीम कोर्ट ने “Strict Liability” के पुराने सिद्धांत को बदलते हुए Absolute Liability का नया सिद्धांत लागू किया।
    • सिद्धांत का मुख्य आधार:
      यदि कोई उद्योग खतरनाक और खतरनाक गतिविधियों में लिप्त है, तो वह बिना किसी अपवाद के हुए नुकसान के लिए पूरी तरह उत्तरदायी होगा।
    • कोई अपवाद नहीं:
      Act of God, तृतीय पक्ष की गलती (Act of Third Party), या पीड़ित की सहमति जैसे बचाव (defences) स्वीकार्य नहीं होंगे।
  2. मुआवजा (Compensation):
    पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाना चाहिए ताकि उनके जीवन में स्थिरता वापस लाई जा सके।
  3. सार्वजनिक सुरक्षा (Public Welfare):
    कोर्ट ने कहा कि खतरनाक गतिविधियों में लिप्त उद्योगों को उच्चतम स्तर की सावधानी और सुरक्षा उपाय अपनाने होंगे।

Absolute Liability के सिद्धांत की मुख्य विशेषताएँ

  1. बिना अपवाद के उत्तरदायित्व (No Exceptions):
    उत्तरदायित्व के लिए “Act of God,” “Plaintiff’s Fault,” और “Third Party’s Act” जैसे किसी भी बचाव का दावा नहीं किया जा सकता।
  2. खतरनाक उद्योगों का उत्तरदायित्व (Liability of Hazardous Industries):
    खतरनाक गतिविधियों में शामिल किसी भी कंपनी को हुए नुकसान के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
  3. पार्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय (Environmental Protection and Social Justice):
    यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

Bhopal Gas Tragedy (1984): Absolute Liability का व्यावहारिक उपयोग

मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)

  • स्थान: भोपाल, मध्य प्रदेश।
  • दिनांक: 2-3 दिसंबर 1984।
  • घटना:
    यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (Union Carbide India Limited) के संयंत्र से 40 टन जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ।
  • पीड़ितों की संख्या:
    • 3,000 से अधिक लोगों की तत्काल मौत।
    • लाखों लोग प्रभावित हुए, जिनमें स्थायी विकलांगता, कैंसर, और अन्य बीमारियाँ शामिल हैं।

घटना के प्रमुख बिंदु (Key Issues in Bhopal Gas Tragedy)

  1. कंपनी की लापरवाही (Negligence of the Company):
    • सुरक्षा उपायों की कमी।
    • रिसाव को रोकने के लिए आवश्यक उपकरणों की अनुपस्थिति।
  2. प्रभावित लोगों का बड़ा पैमाना (Large-Scale Impact):
    घटना के कारण लोगों की मृत्यु, विकलांगता और आजीविका का नुकसान।

भोपाल गैस त्रासदी के लिए उत्तरदायित्व (Liability in Bhopal Gas Tragedy)

  1. Absolute Liability का सिद्धांत लागू हुआ:
    भोपाल गैस त्रासदी ने दिखाया कि पुराने “Strict Liability” के नियम पर्याप्त नहीं थे। इस त्रासदी के बाद Absolute Liability को अपनाया गया।
  2. कंपनी की पूर्ण जिम्मेदारी:
    • यूनियन कार्बाइड को घटना के लिए पूरी तरह उत्तरदायी ठहराया गया।
    • कोई भी बचाव (defence) स्वीकार्य नहीं था।

भोपाल गैस त्रासदी और M.C. Mehta केस के प्रभाव (Impact of Bhopal Gas Tragedy and M.C. Mehta Case)

  1. पर्यावरण कानूनों में सुधार (Reformation in Environmental Laws):
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 लागू हुआ।
  2. Absolute Liability का सिद्धांत:
    खतरनाक उद्योगों को सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी निभाने का बाध्य बनाया गया।
  3. सार्वजनिक सुरक्षा का महत्व (Public Safety Emphasized):
    उद्योगों को सुरक्षा उपायों का पालन करने की सख्त आवश्यकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

M.C. Mehta बनाम Union of India और भोपाल गैस त्रासदी दोनों मामलों ने भारत में Absolute Liability का सिद्धांत स्थापित किया। यह सिद्धांत सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक क्रांतिकारी कदम है। यह खतरनाक उद्योगों को अधिक उत्तरदायी बनाता है और पीड़ितों को न्याय दिलाने में सहायक होता है।

Rylands v. Fletcher के बचाव (Defences)

परिचय (Introduction)

Rylands v. Fletcher (1868) का निर्णय “Strict Liability” के सिद्धांत की स्थापना करता है। इसके तहत यदि कोई खतरनाक वस्तु अप्राकृतिक उपयोग के कारण किसी की संपत्ति या व्यक्ति को नुकसान पहुँचाती है, तो उत्तरदायी व्यक्ति को मुआवजा देना पड़ता है। हालांकि, इस सिद्धांत में कुछ बचाव (Defences) भी उपलब्ध हैं, जिनकी मदद से उत्तरदायी व्यक्ति खुद को दायित्व से मुक्त कर सकता है।


Rylands v. Fletcher के तहत बचाव (Defences under Rylands v. Fletcher)

  1. पीड़ित की सहमति (Consent of the Plaintiff)
    यदि नुकसान पीड़ित की सहमति या मर्जी से हुआ हो, तो उत्तरदायी व्यक्ति को दायित्व से मुक्त किया जा सकता है।
    • उदाहरण:
      यदि पीड़ित खुद खतरनाक गतिविधियों के जोखिम को स्वीकार करता है और जानबूझकर उसमें शामिल होता है।
  2. अप्राकृतिक घटना (Act of God)
    यदि नुकसान प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, भूकंप, तूफान आदि के कारण हुआ हो, जिसे कोई भी व्यक्ति रोक नहीं सकता था, तो यह बचाव स्वीकार्य होगा।
    • उदाहरण:
      यदि जलाशय की दीवारें भारी बारिश (जो अप्रत्याशित हो) के कारण टूट गईं और नुकसान हुआ।
  3. तीसरे पक्ष का कार्य (Act of Third Party)
    यदि नुकसान किसी तीसरे व्यक्ति के कार्य के कारण हुआ हो, जो उत्तरदायी व्यक्ति के नियंत्रण में नहीं था, तो यह एक बचाव होगा।
    • उदाहरण:
      किसी अजनबी ने जानबूझकर जलाशय को तोड़ दिया, जिससे पानी रिसने लगा और नुकसान हुआ।
  4. पीड़ित की गलती (Plaintiff’s Own Fault)
    यदि नुकसान पीड़ित की अपनी गलती के कारण हुआ हो, तो उत्तरदायी व्यक्ति को हर्जाना नहीं देना होगा।
    • उदाहरण:
      यदि पीड़ित ने खुद जलाशय में छेड़छाड़ की और इससे रिसाव हुआ।
  5. वैधानिक प्राधिकरण (Statutory Authority)
    यदि कार्य सरकार या किसी वैधानिक प्राधिकरण द्वारा किया गया हो और नुकसान हुआ हो, तो उत्तरदायित्व लागू नहीं होगा।
    • उदाहरण:
      यदि सरकार ने जलाशय बनाने का आदेश दिया था और किसी तकनीकी कारण से नुकसान हुआ।
  6. अप्राकृतिक उपयोग का अभाव (No Non-Natural Use of Land)
    यदि यह साबित हो जाए कि भूमि का उपयोग स्वाभाविक और सामान्य था, तो उत्तरदायित्व लागू नहीं होगा।
    • उदाहरण:
      यदि जलाशय छोटा था और उसका उपयोग घरेलू उद्देश्यों के लिए किया गया था।

Rylands v. Fletcher के महत्वपूर्ण उदाहरण (Illustrations of Defences)

1. Nichols v. Marsland (1876)

  • मामला:
    जलाशय भारी बारिश के कारण टूट गया और आसपास के क्षेत्रों को नुकसान हुआ।
  • निर्णय:
    यह “Act of God” का मामला था, इसलिए उत्तरदायी व्यक्ति मुक्त कर दिया गया।

2. Box v. Jubb (1879)

  • मामला:
    तीसरे व्यक्ति ने अपने जलाशय का पानी निकालकर दूसरे के जलाशय को भर दिया, जिससे पानी रिसने लगा और नुकसान हुआ।
  • निर्णय:
    यह “Act of Third Party” था, इसलिए उत्तरदायित्व लागू नहीं हुआ।

3. Ponting v. Noakes (1894)

  • मामला:
    एक घोड़ा दूसरे की जमीन पर घुसकर जहरीले पौधे खा गया और मर गया।
  • निर्णय:
    यह “Plaintiff’s Own Fault” था, इसलिए उत्तरदायित्व नहीं लगाया गया।

निष्कर्ष (Conclusion)

Rylands v. Fletcher ने “Strict Liability”https://advocatesandhyarathore.com/2024/12/28/strict-liability-कठोर-उत्तरदायित्व/ का सिद्धांत स्थापित किया, लेकिन इसके तहत उत्तरदायित्व से बचने के लिए कुछ बचाव भी उपलब्ध हैं। ये बचाव न्याय को संतुलित करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी निर्दोष व्यक्ति पर अनुचित दायित्व न डाला जाए।

निष्कर्ष (Conclusion)

Strict liability का नियम सामाजिक सुरक्षा और न्याय के लिए महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि जिन लोगों ने खतरनाक चीज़ों का उपयोग किया है, वे किसी भी नुकसान के लिए जिम्मेदार हों। Rylands v. Fletcher का निर्णय इस सिद्धांत का आधार बनाता है और इसे आधुनिक कानून का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है।

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Concept of tortious liability

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Concept of tortious liability टोर्ट (Tort) का अवधारणा – टोर्ट एक ऐसा नागरिक गलत (civil wrong) है जो किसी व्यक्ति को बिना किसी कानूनी अधिकार के हानि पहुँचाता है और इसके लिए हर्जाना दिया जा सकता है। टोर्ट कानून का मुख्य उद्देश्य पीड़ित को मुआवजा दिलाना है, न कि अपराधी को दंडित करना।

टोर्ट की परिभाषा (Definition of Tort)

सैल्मंड के अनुसार:
“टोर्ट वह नागरिक गलत है जो कानूनी कर्तव्य के उल्लंघन के कारण किसी अन्य व्यक्ति को हानि पहुँचाता है।”

फ्रेजर के अनुसार:
“टोर्ट एक ऐसा नागरिक गलत है जिसके लिए मुआवजा कानूनी प्रक्रिया के तहत दिया जाता है।”

टोर्ट का विस्तृत विवरण (Concept of Tort in Detail)

टोर्ट का उद्देश्य (Objective of Tort)

  1. पीड़ित को मुआवजा दिलाना:
    टोर्ट कानून का प्राथमिक उद्देश्य पीड़ित व्यक्ति को हुए नुकसान की भरपाई करना है।
  2. सामाजिक व्यवस्था बनाए रखना:
    यह कानून समाज में जिम्मेदारियों को स्पष्ट करता है ताकि लोग दूसरों के अधिकारों का सम्मान करें।
  3. निवारणात्मक प्रभाव (Deterrence):
    यह सुनिश्चित करता है कि लोग गैर-जिम्मेदाराना कार्य करने से बचें।

टोर्ट की विशेषताएँ (Characteristics of Tort)

  1. सिविल गलत (Civil Wrong):
    टोर्ट एक सिविल मामला है, जिसमें पीड़ित को नुकसान का हर्जाना दिया जाता है।
  2. कोई पूर्व अनुबंध आवश्यक नहीं (No Prior Contract Required):
    टोर्ट में कोई पूर्व संविदात्मक संबंध आवश्यक नहीं है।
  3. कानूनी कर्तव्य का उल्लंघन (Breach of Legal Duty):
    यह तभी लागू होता है जब किसी का कानूनी अधिकार प्रभावित होता है।
  4. मुआवजा (Compensation):
    टोर्ट का मुख्य उद्देश्य पीड़ित को उचित मुआवजा दिलाना है।

टोर्ट और अन्य प्रकार के उत्तरदायित्वों में अंतर (Distinction from Other Liabilities)

1. टोर्ट और संविदात्मक उत्तरदायित्व (Contractual Liability) में अंतर

पैरामीटरटोर्टसंविदात्मक उत्तरदायित्व
कानूनी आधारकानूनी कर्तव्य का उल्लंघन।अनुबंध के प्रावधानों का उल्लंघन।
संबंधपार्टियों के बीच कोई पूर्व संबंध आवश्यक नहीं।अनुबंध पर आधारित संबंध।
उद्देश्यपीड़ित को नुकसान का हर्जाना देना।अनुबंध को लागू करना और मुआवजा दिलाना।
मुआवजाकेवल वास्तविक नुकसान के लिए।अनुबंध के उल्लंघन से हुए नुकसान की भरपाई।

2. टोर्ट और आपराधिक उत्तरदायित्व (Criminal Liability) में अंतर

पैरामीटरटोर्टआपराधिक उत्तरदायित्व
प्रकृतिसिविल गलत।अपराध या सामाजिक बुराई।
पक्षकारपीड़ित और प्रतिवादी।राज्य बनाम अभियुक्त।
उद्देश्यमुआवजा दिलाना।अपराधी को सजा देना।
उदाहरणकिसी की संपत्ति को नुकसान पहुँचाना।चोरी, हत्या, धोखाधड़ी।

डैम्नम साइन इंजूरिया (Damnum Sine Injuria)

अर्थ: नुकसान बिना कानूनी चोट
इसका मतलब है कि यदि किसी व्यक्ति को नुकसान हुआ है लेकिन उसका कोई कानूनी अधिकार नहीं टूटा है, तो टोर्ट का दावा नहीं किया जा सकता।

उदाहरण: एक व्यापारी ने अपने प्रतिस्पर्धी की दुकान के पास अपनी दुकान खोल ली, जिससे प्रतिस्पर्धी को आर्थिक नुकसान हुआ। यह नुकसान “डैम्नम साइन इंजूरिया” है क्योंकि कोई कानूनी अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ।

परिभाषा (Definition):

डैम्नम साइन इंजूरिया का अर्थ है नुकसान बिना कानूनी चोट के

  • यदि किसी व्यक्ति को आर्थिक या अन्य प्रकार का नुकसान हुआ है, लेकिन यह कानूनी अधिकार का उल्लंघन नहीं करता, तो मुआवजा नहीं मिलेगा।

उदाहरण (Example):

  1. व्यापारी का नुकसान:
    एक व्यापारी ने अपने प्रतिस्पर्धी की दुकान के पास दुकान खोल ली। इससे प्रतिस्पर्धी को आर्थिक नुकसान हुआ, लेकिन यह कानूनी अधिकार का उल्लंघन नहीं है।
  2. शैक्षणिक प्रतिस्पर्धा:
    एक छात्र ने अन्य छात्रों को पीछे छोड़कर प्रथम स्थान प्राप्त किया। यह अन्य छात्रों के लिए नुकसान है, लेकिन यह “डैम्नम साइन इंजूरिया” है।

इंजूरिया साइन डैम्नम (Injuria Sine Damno)

अर्थ: कानूनी चोट बिना नुकसान
इसका मतलब है कि यदि किसी व्यक्ति का कानूनी अधिकार टूटा है, तो नुकसान चाहे हुआ हो या नहीं, वह मुआवजे का दावा कर सकता है।

उदाहरण: किसी व्यक्ति को वोट देने से रोका गया, भले ही उसका वोट परिणाम को प्रभावित नहीं करता। यह “इंजूरिया साइन डैम्नम” का मामला है।

परिभाषा (Definition):

इंजूरिया साइन डैम्नम का अर्थ है कानूनी चोट बिना नुकसान के

  • यदि किसी व्यक्ति का कानूनी अधिकार का उल्लंघन हुआ है, भले ही कोई वास्तविक नुकसान न हुआ हो, तो मुआवजा मिलेगा।

उदाहरण (Example):

  1. मतदान के अधिकार का उल्लंघन:
    यदि किसी व्यक्ति को गलत तरीके से वोट डालने से रोका गया, तो यह “इंजूरिया साइन डैम्नम” है।
  2. संपत्ति में प्रवेश (Trespass):
    यदि कोई व्यक्ति बिना अनुमति के किसी की जमीन पर प्रवेश करता है, तो यह “इंजूरिया साइन डैम्नम” है, भले ही जमीन को कोई नुकसान न हुआ हो।

टोर्ट के प्रकार (Types of Tort)

  1. संपत्ति से संबंधित टोर्ट (Torts Related to Property):
    • उदाहरण: भूमि पर अनधिकृत प्रवेश (Trespass)।
  2. व्यक्तिगत हानि (Personal Injuries):
    • उदाहरण: शारीरिक चोट, झूठा आरोप (Defamation)।
  3. अन्य प्रकार के टोर्ट (Miscellaneous Torts):
    • उदाहरण: व्यावसायिक नुकसान, धोखाधड़ी।

निष्कर्ष (Conclusion)

  • टोर्ट: यह नागरिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित कानून है।
  • डैम्नम साइन इंजूरिया: नुकसान हुआ लेकिन कोई कानूनी अधिकार नहीं टूटा।
  • इंजूरिया साइन डैम्नम: कानूनी अधिकार टूटा, चाहे नुकसान हुआ हो या नहीं।

टोर्ट कानून का उद्देश्य समाज में संतुलन बनाए रखना और व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना है।

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