Comparative Criminal Procedure

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Comparative Criminal Procedur Course Code: LLM233B
Branch: II (Torts and Crime)
Paper III: Comparative Criminal Procedure


UNIT – I

Organization of Courts and Prosecuting Agencies:

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/10/अदालतों-और-अभियोजन-एजेंस/

  • Hierarchy of criminal courts and their jurisdiction
  • Organization of prosecuting agencies
  • Withdrawal of prosecution

UNIT – II

Pre-Trial Procedure:

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/11/प्री-ट्रायल-प्रक्रिया-pre-trial-procedure/

  • Arrest and questioning of the accused
  • Rights of the accused
  • Evidentiary value of statements or articles collected by police
  • Role of prosecutor and judicial officer in investigation

Trial Procedure

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/11/ट्रायल-प्रक्रिया-trial-procedure/

  • The accusatory system of trial and the inquisitorial system
  • Role of judge, prosecutor, and defense attorney in the trial
  • Main features of session trials, warrant trials, summons trials, summary trials, and plea bargaining

UNIT – III

Appeals

:https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/11/अपील-appeals/

  • Reference and revisions
  • Inherent powers of the High Court
  • Transfer of criminal cases

UNIT – IV

Provisions as to Bails and Bail Bonds:

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/11/जमानत-और-जमानत-बांड-से-संब/

  • Maintenance of wife, children, and parents
  • Irregularity in proceedings

UNIT – V

Correction and After-Care Services:

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/11/सुधार-और-पश्चात-देखभाल-से/

  • Institutional correction of offenders
  • Role of court in correctional programs
  • Furlough, parole, and probation

सेमेस्टर: तीसरा

कोर्स कोड: LLM233B
शाखा: II (टॉर्ट्स और अपराध)
पत्र III: तुलनात्मक आपराधिक प्रक्रिया


इकाई – I

अदालतों और अभियोजन एजेंसियों का संगठन:

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/10/अदालतों-और-अभियोजन-एजेंस/

  • आपराधिक न्यायालयों की संरचना और उनका क्षेत्राधिकार
  • अभियोजन एजेंसियों का संगठन
  • अभियोजन की वापसी

इकाई – II

पूर्व-परीक्षण प्रक्रिया:

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/11/प्री-ट्रायल-प्रक्रिया-pre-trial-procedure/

  • आरोपी की गिरफ्तारी और पूछताछ
  • आरोपी के अधिकार
  • पुलिस द्वारा एकत्र किए गए बयान या वस्तुओं का साक्ष्यात्मक मूल्य
  • अभियोजक और न्यायिक अधिकारी की जांच में भूमिका

परीक्षण प्रक्रिया

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/11/ट्रायल-प्रक्रिया-trial-procedure/

  • अभियोजन प्रणाली और जांच प्रणाली
  • न्यायाधीश, अभियोजक और बचाव पक्ष के वकील की भूमिका
  • सेशन ट्रायल, वारंट ट्रायल, समन ट्रायल, संक्षिप्त ट्रायल और प्ली बार्गेनिंग की मुख्य विशेषताएं

इकाई – III

अपील:

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/11/अपील-appeals/

  • संदर्भ और पुनरीक्षण
  • उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियां
  • आपराधिक मामलों का स्थानांतरण

इकाई – IV

जमानत और जमानत बॉन्ड से संबंधित प्रावधान:

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/11/जमानत-और-जमानत-बांड-से-संब/

  • पत्नी, बच्चों और माता-पिता का भरण-पोषण
  • प्रक्रिया में अनियमितता

इकाई – V

सुधार और देखभाल पश्चात सेवाएं:

https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/11/सुधार-और-पश्चात-देखभाल-से/

  • अपराधियों का संस्थागत सुधार
  • सुधारात्मक कार्यक्रमों में न्यायालय की भूमिका
  • फरलो, पैरोल और प्रोबेशन

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प्री-ट्रायल प्रक्रिया (Pre-Trial Procedure)

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प्री-ट्रायल प्रक्रिया (Pre-Trial Procedure)प्री-ट्रायल प्रक्रिया का अर्थ है, मुकदमे के आरंभ होने से पहले की जाने वाली कानूनी प्रक्रिया। इसका उद्देश्य है अपराध के संबंध में सबूत जुटाना, आरोपी को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करना, और यह सुनिश्चित करना कि न्यायिक प्रक्रिया सुचारु रूप से आगे बढ़ सके। भारतीय कानून के तहत, यह प्रक्रिया पुलिस, अभियोजन पक्ष, और न्यायिक अधिकारियों के बीच संतुलित ढंग से संपन्न की जाती है।


1. आरोपी की गिरफ्तारी और पूछताछ (Arrest and Questioning of the Accused)

(a) गिरफ्तारी (Arrest):

  • अर्थ: गिरफ्तारी का मतलब है आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अस्थायी रूप से सीमित करना ताकि कानून के अनुसार जांच और न्यायिक प्रक्रिया संपन्न हो सके।
  • कानूनी प्रावधान:
    • गिरफ्तारी का अधिकार भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 41 से 60 में वर्णित है।
    • पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है यदि अपराध संज्ञेय (Cognizable Offense) हो।
  • गिरफ्तारी की प्रक्रिया:
    • आरोपी को उसकी गिरफ्तारी का कारण बताया जाना चाहिए।
    • आरोपी को उसके अधिकारों की जानकारी देना पुलिस की जिम्मेदारी है।

(b) पूछताछ (Questioning):

  • पुलिस आरोपी से पूछताछ कर सकती है ताकि अपराध के साक्ष्य प्राप्त हो सकें।
  • पूछताछ के दौरान किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक यातना का इस्तेमाल प्रतिबंधित है।

(c) महत्वपूर्ण प्रावधान:

  • धारा 50: गिरफ्तारी के समय आरोपी को उसके अधिकारों के बारे में सूचित करना।
  • धारा 54: आरोपी की मेडिकल जांच का अधिकार।
  • धारा 57: आरोपी को 24 घंटे के भीतर न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना।

2. आरोपी के अधिकार (Rights of the Accused)

आरोपी को प्री-ट्रायल प्रक्रिया के दौरान कुछ महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं ताकि उसके साथ न्याय हो सके और किसी भी प्रकार के दुरुपयोग को रोका जा सके।

(a) गिरफ्तारी के समय अधिकार:

  • गिरफ्तारी का कारण जानने का अधिकार (CrPC की धारा 50)।
  • किसी वकील से संपर्क करने का अधिकार।
  • गिरफ्तारी के तुरंत बाद परिवार को सूचित करने का अधिकार।

(b) पूछताछ के समय अधिकार:

  • चुप रहने का अधिकार (Right to Silence)।
  • स्वयं के खिलाफ साक्ष्य न देने का अधिकार (भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 20)।

(c) मेडिकल जांच का अधिकार:

  • आरोपी को पुलिस हिरासत के दौरान किसी प्रकार की यातना से बचाने के लिए यह अधिकार दिया गया है।

(d) न्यायिक प्रक्रिया का अधिकार:

  • आरोपी को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है (CrPC की धारा 57)।

3. पुलिस द्वारा एकत्र किए गए बयानों या वस्तुओं के प्रमाण मूल्य (Evidentiary Value of Statements or Articles Collected by Police)

(a) बयानों का प्रमाण मूल्य:

  • पुलिस द्वारा आरोपी या गवाह से लिए गए बयान केवल जांच के उद्देश्य से होते हैं।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act), 1872 के तहत, पुलिस द्वारा दर्ज किया गया बयान अदालत में प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं माना जाता।
  • धारा 27: यदि आरोपी के बयान से कोई महत्वपूर्ण तथ्य उजागर होता है, तो वह स्वीकार्य हो सकता है।
  • पुलिस की कस्टडी में लिए गए बयान केवल मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयानों की तुलना में कम विश्वसनीय माने जाते हैं।

(b) सामग्री/साक्ष्य का प्रमाण मूल्य:

  • अपराध स्थल से जब्त वस्तुओं (जैसे हथियार, दस्तावेज़, आदि) का न्यायालय में महत्वपूर्ण प्रमाण मूल्य होता है।
  • जब्त वस्तुओं को अदालत में प्रस्तुत करने से पहले उन्हें उचित तरीके से सील और प्रलेखित करना आवश्यक है।

4. जांच में अभियोजक और न्यायिक अधिकारी की भूमिका (Role of Prosecutor and Judicial Officer in Investigation)

(a) अभियोजक (Prosecutor):

  • अभियोजक न्यायिक प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा है और वह राज्य का प्रतिनिधित्व करता है।
  • मुख्य कार्य:
    1. पुलिस जांच की निगरानी करना।
    2. यह सुनिश्चित करना कि जांच कानूनी प्रावधानों के अनुरूप हो।
    3. सबूतों का विश्लेषण करना और अदालत में मामला प्रस्तुत करना।
    4. यह सुनिश्चित करना कि किसी निर्दोष को फंसाया न जाए।

(b) न्यायिक अधिकारी (Judicial Officer):

  • न्यायिक अधिकारी जांच प्रक्रिया में एक निष्पक्ष भूमिका निभाता है।
  • मुख्य कार्य:
    1. आरोपी को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर पेश करने के आदेश देना।
    2. आरोपी को न्यायिक हिरासत या पुलिस हिरासत में भेजने का निर्णय लेना।
    3. यह सुनिश्चित करना कि आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन न हो।
    4. सबूतों की वैधता और विश्वसनीयता की जांच करना।
    5. जांच के दौरान उत्पन्न विवादों का समाधान करना।

प्री-ट्रायल प्रक्रिया का महत्व (Significance of Pre-Trial Procedure)

  1. साक्ष्य संग्रह: यह प्रक्रिया न्यायिक प्रक्रिया में साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक आधार तैयार करती है।
  2. आरोपी के अधिकारों की सुरक्षा: आरोपी को निष्पक्षता प्रदान करना और उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा करना।
  3. न्यायिक निगरानी: जांच प्रक्रिया को निष्पक्ष और कानूनी बनाए रखने के लिए न्यायिक अधिकारी की भूमिका।
  4. संतुलन बनाए रखना: पुलिस, अभियोजन पक्ष, और न्यायालय के बीच संतुलन सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष (Conclusion):

प्री-ट्रायल प्रक्रिया का उद्देश्य न्यायपालिका और कानून-व्यवस्था को मजबूत बनाना है। यह आरोपी और समाज दोनों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण चरण है। यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और प्रभावी हो।

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