General Principle of Crime and Specific Offences

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General Principle of Crime and Specific Offences

Branch – II (Torts and Crime)
Paper – II

  1. Elements of Criminal Liability https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/08/अपराधिक-दायित्व-के-तत्व-elements-of-cri/
    a. Author of crime – natural and legal person
    b. Mens rea – evil intention
    c. Importance of mens rea
    d. Act in furtherance of guilty intent
    e. Omission
    f. Injury to another
  2. Group Liability https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/09/सामूहिक-दायित्व-group-liability/
    a. Common intention
    b. Abetment
    c. Unlawful assembly
    d. Criminal conspiracy
    e. Rioting as a specific offence
  3. Stages of a Crime https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/09/अपराध-के-चरण-stages-of-a-crime/
    a. Guilty intention – mere intention not punishable
    b. Preparation
    c. Attempt
  4. Factors Negating Guilty Intention https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/09/दोषपूर्ण-नीयत-को-निष्प्र/
    a. Minority
    b. Insanity (impairment of cognitive faculties, emotional)
    c. Intoxication – involuntary
    d. Private defence – justification and limits
    e. Necessity
    f. Mistake of fact
  5. Types of Punishment
  6. Specific Offences Against the Human Body
  7. Offences Against Women
  8. Offences Against Property
  9. Defamation, Criminal Intimidation


पाठ्यक्रम का शीर्षक: अपराध और विशिष्ट अपराधों के सामान्य सिद्धांत

शाखा – II (विवाद और अपराध)
पेपर – II

  1. आपराधिक दायित्व के तत्व http://advocatesandhyarathore.com/2025/01/08/अपराधिक-दायित्व-के-तत्व-elements-of-cri/↗ a. अपराध का कर्ता – प्राकृतिक और विधिक व्यक्ति
    b. मेन्स रिया (दोषपूर्ण मनःस्थिति) – बुरी नीयत
    c. मेन्स रिया का महत्व
    d. दोषपूर्ण नीयत के उद्देश्य से किया गया कार्य
    e. लोप (ओमिशन)
    f. अन्य व्यक्ति को चोट पहुंचाना
  2. सामूहिक दायित्व http://advocatesandhyarathore.com/2025/01/08/सामूहिक-दायित्व-group-liability/↗ a. सामान्य नीयत
    b. उकसाना (अभिप्रेरण)
    c. अवैध जमावड़ा
    d. आपराधिक साजिश
    e. दंगा (विशिष्ट अपराध के रूप में)
  3. अपराध के चरण advocatesandhyarathore.com/2025/01/08/अपराध-के-चरण-stages-of-a-crime/↗ a. दोषपूर्ण नीयत – मात्र नीयत दंडनीय नहीं
    b. तैयारी
    c. प्रयास
  4. दोषपूर्ण नीयत को नकारने वाले कारक https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/09/दोषपूर्ण-नीयत-को-निष्प्र/
    a. अल्पायु (नाबालिगता)
    b. पागलपन (संज्ञानात्मक क्षमता का ह्रास, भावनात्मक)
    c. नशा – अनैच्छिक (अस्वेच्छिक)
    d. निजी प्रतिरक्षा – औचित्य और सीमाएँ
    e. आवश्यकता
    f. तथ्य में भूल
  5. दंड के प्रकार
  6. मानव शरीर के विरुद्ध विशिष्ट अपराध
  7. महिलाओं के विरुद्ध अपराध
  8. संपत्ति के विरुद्ध अपराध
  9. मानहानि और आपराधिक धमकी

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Defamation, Criminal Intimidation

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Defamation, Criminal Intimidation मानहानि (Defamation):मानहानि एक ऐसा अपराध है जिसमें किसी व्यक्ति की छवि, प्रतिष्ठा या सम्मान को झूठे या अपमानजनक शब्दों या कार्यों के माध्यम से नुकसान पहुँचाया जाता है। यह अपराध दो प्रकार से हो सकता है:

  • लिखित मानहानि (Libel): जब किसी व्यक्ति के खिलाफ झूठे आरोप लिखित रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं, तो इसे लिखित मानहानि कहा जाता है।
  • मौखिक मानहानि (Slander): जब किसी व्यक्ति के खिलाफ झूठे आरोप मौखिक रूप से कहे जाते हैं, तो इसे मौखिक मानहानि कहते हैं।

मानहानि के अपराध के लिए यह जरूरी नहीं है कि व्यक्ति को शारीरिक रूप से नुकसान पहुँचाया जाए; इसके बजाय, यह व्यक्ति की प्रतिष्ठा और इज्जत को नुकसान पहुँचाने के बारे में होता है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है और इसे सजा दी जा सकती है, जो आम तौर पर एक साल की कैद, जुर्माना, या दोनों हो सकती है।

मानहानि का बचाव: यदि किसी व्यक्ति को मानहानि का आरोप लगा है, तो वह यह साबित कर सकता है कि:

  1. जो जानकारी दी गई थी वह सत्य थी।
  2. उसे सार्वजनिक भलाई के लिए कहा गया था।
  3. आरोप के लिए इरादा मानहानि का नहीं था।

2. आपराधिक धमकी (Criminal Intimidation):

आप‍राधिक धमकी वह अपराध है जिसमें कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को शारीरिक चोट पहुँचाने, संपत्ति को नुकसान पहुँचाने, या किसी अन्य प्रकार का नुकसान पहुँचाने की धमकी देता है, ताकि उसे डराया जा सके। यह अपराध किसी व्यक्ति को डर या मानसिक कष्ट पहुँचाने का इरादा रखता है, और इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 503 के तहत अपराध माना गया है।

यह अपराध तब घटित होता है जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को धमकी देता है कि अगर वह उसकी बात नहीं मानेगा, तो उसे शारीरिक या मानसिक नुकसान होगा। इस प्रकार की धमकियाँ आम तौर पर समाज में भय और अशांति का कारण बनती हैं।

आप‍राधिक धमकी की सजा:
अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक धमकी का आरोप साबित हो जाता है, तो उसे कानूनी सजा मिल सकती है। सजा में आमतौर पर छह माह से लेकर दो वर्ष तक की सजा हो सकती है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यदि धमकी जानलेवा है, तो सजा कड़ी हो सकती है।

आप‍राधिक धमकी का बचाव:
धमकी देने वाले व्यक्ति के लिए यह साबित करना संभव हो सकता है कि:

  1. धमकी किसी वास्तविक खतरे को महसूस कराने के लिए दी गई थी।
  2. धमकी की वजह से किसी अन्य व्यक्ति को कोई वास्तविक नुकसान नहीं हुआ है।

मानहानि और आपराधिक धमकी दोनों ही अपराधों के मामले में क़ानूनी प्रक्रिया और न्याय के माध्यम से अपराधी को दंडित किया जा सकता है।

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संपत्ति के खिलाफ अपराध (Offences Against Property)

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संपत्ति के खिलाफ अपराध (Offences Against Property) वे अपराध होते हैं जिनमें किसी व्यक्ति की संपत्ति को नुकसान पहुँचाना, चोरी करना या अनधिकृत रूप से उसे अपनाना शामिल होता है। ये अपराध व्यक्ति की व्यक्तिगत संपत्ति की सुरक्षा और अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। भारतीय दंड संहिता (IPC) में संपत्ति के खिलाफ अपराधों का विवरण दिया गया है और ऐसे अपराधों के लिए दंड का प्रावधान किया गया है। नीचे संपत्ति के खिलाफ प्रमुख अपराधों के बारे में विस्तार से बताया गया है:

1. चोरी (Theft)

चोरी तब होती है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य की संपत्ति को बिना उसकी अनुमति के चुराता है। इसमें किसी वस्तु या संपत्ति को चोरी करना शामिल है, जिसका मालिक व्यक्ति को बिना बताए उसकी अनुमति के चोरी कर लिया जाता है।

IPC की धारा 378 के तहत चोरी को परिभाषित किया गया है। यह अपराध तब साबित होता है जब:

  • कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी और की संपत्ति को चुराता है।
  • चुराई गई वस्तु का मूल्य कोई भी हो सकता है।
  • चोरी के दौरान कोई शारीरिक हिंसा नहीं होती।

सजा: चोरी के अपराध में 3 वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकती है।

2. डकैती (Dacoity)

डकैती एक गंभीर अपराध है जिसमें एक समूह (कम से कम 5 लोग) मिलकर किसी स्थान पर हमला करते हैं और संपत्ति को लूटते हैं। इसमें आमतौर पर हिंसा का प्रयोग किया जाता है।

IPC की धारा 391 के तहत डकैती की परिभाषा दी गई है। यदि कोई व्यक्ति डकैती करता है तो उसे अधिक सजा मिलती है, क्योंकि इसमें हिंसा या खतरनाक तरीके से संपत्ति की लूट की जाती है।

सजा: डकैती करने पर 10 वर्ष तक की सजा, जुर्माना या दोनों हो सकती है। अगर डकैती के दौरान कोई व्यक्ति घायल होता है या मारा जाता है, तो सजा और भी अधिक हो सकती है।

3. घर में घुसकर चोरी (House Breaking)

यह अपराध तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी घर या संपत्ति में अवैध रूप से घुसता है और वहां चोरी करता है। इसमें घर का ताला तोड़ना, खिड़की तोड़ना या किसी अन्य तरीके से घर में घुसकर चोरी करना शामिल होता है।

IPC की धारा 454 और 455 के तहत घर में घुसकर चोरी करने को अपराध माना गया है। यह अपराध व्यक्ति की व्यक्तिगत संपत्ति और गोपनीयता का उल्लंघन करता है।

सजा: इस अपराध में 2 से 7 वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकती है।

4. विनाश (Mischief)

विनाश का अपराध तब होता है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर या लापरवाही से किसी संपत्ति को नुकसान पहुँचाता है या नष्ट करता है। यह संपत्ति के मालिक के लिए वित्तीय नुकसान का कारण बनता है।

IPC की धारा 425 के तहत विनाश को परिभाषित किया गया है, और यह तब होता है जब किसी व्यक्ति की संपत्ति को नष्ट या नुकसान पहुँचाया जाता है, चाहे वह वस्तु छोटी हो या बड़ी।

सजा: इस अपराध में 1 वर्ष तक की सजा, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

5. धोखाधड़ी (Fraud)

धोखाधड़ी तब होती है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से झूठ बोलकर, छल करके या किसी तरह से उसे धोखा देकर उसकी संपत्ति पर कब्जा कर लेता है। इसमें झूठी जानकारी देकर किसी से संपत्ति प्राप्त करना या उसके अधिकारों का उल्लंघन करना शामिल है।

IPC की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी को परिभाषित किया गया है। यह अपराध किसी की संपत्ति को अवैध रूप से प्राप्त करने के लिए झूठ बोलने पर आधारित होता है।

सजा: धोखाधड़ी के अपराध में 7 वर्ष तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।

6. अवैध कब्जा (Criminal Trespass)

अवैध कब्जा वह अपराध है जब कोई व्यक्ति बिना अनुमति के किसी अन्य की संपत्ति पर घुसता है, चाहे वह भूमि, घर, या अन्य कोई संपत्ति हो। इसमें किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है और उसे परेशान किया जाता है।

IPC की धारा 441 के तहत अवैध कब्जे को परिभाषित किया गया है। यह अपराध तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य की संपत्ति पर अवैध रूप से कब्जा करता है या उसमें घुसता है।

सजा: इस अपराध में 3 महीने तक की सजा या जुर्माना हो सकता है, या दोनों।

7. संपत्ति की हानि (Damaging Property)

यह अपराध तब होता है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर या लापरवाही से किसी अन्य की संपत्ति को नष्ट कर देता है या उसे नुकसान पहुँचाता है। इसमें किसी वाहन, भवन, या अन्य संपत्ति को नुकसान पहुँचाना शामिल हो सकता है।

IPC की धारा 427 के तहत संपत्ति को नुकसान पहुँचाने को अपराध माना गया है, खासकर जब हानि का मूल्य कुछ निश्चित सीमा से अधिक हो।

सजा: इस अपराध में जुर्माना, 2 साल तक की सजा या दोनों हो सकती है।

निष्कर्ष:

संपत्ति के खिलाफ अपराध, जैसे चोरी, डकैती, धोखाधड़ी, और विनाश, समाज में असुरक्षा और अशांति पैदा करते हैं। भारतीय दंड संहिता इन अपराधों के खिलाफ कड़े कानून प्रदान करती है, ताकि समाज में संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इन अपराधों में सजा की प्रक्रिया और दंड पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाने का माध्यम बनते हैं।

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महिलाओं के खिलाफ अपराध (Offences Against Women)

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महिलाओं के खिलाफ अपराध (Offences Against Women) वे अपराध होते हैं जो महिलाओं के शारीरिक, मानसिक या यौन शोषण से संबंधित होते हैं। ये अपराध महिलाओं के सम्मान, स्वतंत्रता, और सुरक्षा के खिलाफ होते हैं। भारतीय समाज में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या चिंताजनक रही है, और इन्हें रोकने के लिए विभिन्न कानूनी प्रावधान हैं। यहां कुछ प्रमुख अपराधों का विवरण दिया गया है:

1. बलात्कार (Rape)

बलात्कार एक गंभीर अपराध है जिसमें एक व्यक्ति किसी महिला के साथ यौन हिंसा करता है, बिना उसकी सहमति के। यह अपराध महिला के शरीर और मानसिकता पर गहरा असर डालता है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के तहत बलात्कार की परिभाषा दी गई है।

सजा: बलात्कार के दोषी को 7 वर्ष से लेकर उम्रभर की सजा और जुर्माना हो सकता है, और अगर बलात्कार के दौरान महिला की मृत्यु हो जाती है, तो सजा मौत की सजा हो सकती है।

2. हर्षमंतरण (Harassment)

हर्षमंतरण, जिसे छेड़छाड़ भी कहा जाता है, तब होता है जब कोई व्यक्ति महिला को मानसिक या शारीरिक रूप से परेशान करता है। इसमें महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर अभद्र टिप्पणियां, अश्लील इशारे, या घूरने का शिकार होती हैं। इसे IPC की धारा 354 के तहत अपराध माना जाता है।

सजा: इस अपराध में 1 वर्ष की सजा, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

3. यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment)

यौन उत्पीड़न में महिलाओं को अप्रत्याशित शारीरिक या मानसिक दबाव डालकर यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है। इसमें किसी महिला को अश्लील बातें या शारीरिक रूप से छेड़छाड़ करना शामिल हो सकता है।

IPC की धारा 354A के तहत यौन उत्पीड़न को अपराध माना जाता है। इसके अंतर्गत बलात्कारी गतिविधियां, जैसे गंदे इशारे, गंदे संदेश भेजना, या किसी को जबरन छूना आदि शामिल हैं।

सजा: यौन उत्पीड़न की सजा 3 से 5 वर्ष तक की सजा हो सकती है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

4. धार्मिक या नस्लीय भेदभाव (Dowry-related Crimes)

यह अपराध तब होते हैं जब महिलाओं को दहेज के कारण शारीरिक, मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। दहेज के लिए मारपीट, अपमान या हत्या की घटनाएं होती हैं। इसे IPC की धारा 498A के तहत अपराध माना जाता है।

सजा: दहेज के कारण उत्पीड़न करने वाले को 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।

5. मानव तस्करी (Human Trafficking)

महिलाओं को जबरन वेश्यावृत्ति, श्रम, या अन्य अवैध कार्यों के लिए बेचने को मानव तस्करी कहते हैं। यह अपराध महिलाओं के शारीरिक और मानसिक शोषण का कारण बनता है।

IPC की धारा 370 के तहत मानव तस्करी को अपराध माना जाता है, और दोषी को कठोर सजा दी जाती है।

6. मादा भ्रूण हत्या (Female Foeticide)

यह अपराध तब होता है जब भ्रूण को केवल लड़की होने के कारण गर्भ में ही मार दिया जाता है। इसे रोकने के लिए भारत सरकार ने “प्रजनन पूर्व लिंग निर्धारण और भ्रूण हत्या रोकथाम” अधिनियम (PCPNDT Act) पारित किया है।

सजा: यदि दोषी पाया जाता है, तो उसे जुर्माना और 5 साल तक की सजा हो सकती है।

7. संतान उत्पीड़न (Child Marriage)

भारत में बाल विवाह एक गंभीर सामाजिक अपराध है। बालिका को विवाह के लिए मजबूर करना, खासकर जब वह नाबालिग हो, उसे शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का सामना कराता है।

सजा: बाल विवाह को रोकने के लिए “बाल विवाह निषेध अधिनियम” (Prohibition of Child Marriage Act) बनाया गया है, जिसमें दोषियों को सजा दी जाती है।

8. सामूहिक बलात्कार (Gang Rape)

सामूहिक बलात्कार तब होता है जब एक महिला के साथ एक से अधिक व्यक्ति बलात्कार करते हैं। यह अपराध विशेष रूप से क्रूर होता है और महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है।

सजा: सामूहिक बलात्कार में दोषी को उम्रभर की सजा या मृत्युदंड भी हो सकता है।

9. आत्महत्या के लिए उकसाना (Abetment to Suicide)

जब कोई व्यक्ति महिला को आत्महत्या करने के लिए उकसाता है, तो इसे आत्महत्या के लिए उकसाना कहा जाता है। इसमें मानसिक उत्पीड़न, दहेज के लिए दबाव डालना, या अन्य प्रकार की धमकियाँ देना शामिल हो सकता है।

IPC की धारा 306 के तहत इसे अपराध माना जाता है, और दोषी को सजा हो सकती है।


निष्कर्ष:

महिलाओं के खिलाफ अपराध न केवल उनके व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, बल्कि समाज में असुरक्षा और डर का माहौल भी पैदा करते हैं। भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों से निपटने के लिए सख्त कानूनी प्रावधान हैं। इन अपराधों को रोकने के लिए समाज में जागरूकता और कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि महिलाओं को सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिल सके।

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मानव शरीर के विरुद्ध विशिष्ट अपराध

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मानव शरीर के विरुद्ध विशिष्ट अपराध (Specific Offences Against the Human Body)भारतीय दंड संहिता (IPC) में मानव शरीर के विरुद्ध किए गए अपराधों को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। ये अपराध व्यक्ति के जीवन, शारीरिक अखंडता, स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। इन अपराधों को रोकने और दंडित करने के लिए IPC में कई धाराएं हैं।


1. हत्या (Murder)

  • परिभाषा:
    हत्या का अर्थ है किसी व्यक्ति को जानबूझकर मारना।
  • धारा: IPC की धारा 302 के तहत हत्या दंडनीय अपराध है।
  • दंड:
    • मृत्यु दंड
    • आजीवन कारावास
    • जुर्माना
  • उदाहरण:
    • जानबूझकर किसी को मारने के लिए चाकू से हमला करना।

2. हत्या का प्रयास (Attempt to Murder)

  • परिभाषा:
    यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य की हत्या करने का प्रयास करता है लेकिन वह सफल नहीं हो पाता, तो उसे हत्या के प्रयास के लिए दंडित किया जाएगा।
  • धारा: IPC की धारा 307।
  • दंड:
    • आजीवन कारावास या जुर्माना।
  • उदाहरण:
    • किसी पर गोली चलाना लेकिन वह बच जाए।

3. गैर-इरादतन हत्या (Culpable Homicide Not Amounting to Murder)

  • परिभाषा:
    यह हत्या का वह रूप है जिसमें किसी की मृत्यु होती है, लेकिन उसे हत्या के समान गंभीर नहीं माना जाता।
  • धारा: IPC की धारा 304।
  • दंड:
    • 10 साल का कारावास, आजीवन कारावास, या जुर्माना।
  • उदाहरण:
    • किसी व्यक्ति की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो जाना।

4. चोट पहुंचाना (Hurt and Grievous Hurt)

  • परिभाषा:
    किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति पहुंचाना चोट कहलाता है। यदि चोट गंभीर हो, तो उसे गंभीर चोट कहा जाता है।
  • धारा:
    • चोट: IPC धारा 319
    • गंभीर चोट: IPC धारा 320
  • दंड:
    • चोट के लिए 1 साल तक का कारावास।
    • गंभीर चोट के लिए 7 साल तक का कारावास।
  • उदाहरण:
    • चोट: किसी को थप्पड़ मारना।
    • गंभीर चोट: किसी की हड्डी तोड़ना।

5. बलात्कार (Rape)

  • परिभाषा:
    किसी महिला की सहमति के बिना, उसके साथ यौन संबंध बनाना।
  • धारा: IPC की धारा 375 और 376।
  • दंड:
    • न्यूनतम 10 साल का कारावास।
    • गंभीर मामलों में आजीवन कारावास।
  • उदाहरण:
    • किसी महिला पर बल प्रयोग करके यौन शोषण करना।

6. अपहरण (Kidnapping and Abduction)

  • परिभाषा:
    किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध बलपूर्वक ले जाना या बंधक बनाना।
  • धारा: IPC की धारा 359 से 374।
  • दंड:
    • 7 साल तक का कारावास।
  • उदाहरण:
    • फिरौती के लिए किसी बच्चे का अपहरण करना।

7. हमला और आपराधिक बल (Assault and Criminal Force)

  • परिभाषा:
    किसी व्यक्ति पर हमला करना या उसे बलपूर्वक नुकसान पहुंचाने की धमकी देना।
  • धारा:
    • हमला: IPC धारा 351
    • आपराधिक बल: IPC धारा 350
  • दंड:
    • 3 महीने तक का कारावास या जुर्माना।
  • उदाहरण:
    • किसी व्यक्ति को डराने-धमकाने के लिए हाथ उठाना।

8. गलत तरीके से बंधक बनाना (Wrongful Confinement and Restraint)

  • परिभाषा:
    किसी व्यक्ति को उसके अधिकारों के खिलाफ स्वतंत्र रूप से कहीं जाने से रोकना।
  • धारा: IPC की धारा 339 और 340।
  • दंड:
    • 1 साल तक का कारावास या जुर्माना।
  • उदाहरण:
    • किसी को जबरन एक कमरे में बंद कर देना।

9. आत्महत्या के लिए उकसाना (Abetment of Suicide)

  • परिभाषा:
    किसी व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसाना या प्रेरित करना।
  • धारा: IPC की धारा 306।
  • दंड:
    • 10 साल तक का कारावास।
  • उदाहरण:
    • किसी को मानसिक रूप से प्रताड़ित करना जिससे वह आत्महत्या कर ले।

10. भ्रूण हत्या (Foeticide and Infanticide)

  • परिभाषा:
    किसी अजन्मे या नवजात बच्चे की जान लेना।
  • धारा: IPC की धारा 315 और 316।
  • दंड:
    • 10 साल तक का कारावास।
  • उदाहरण:
    • गर्भ में कन्या भ्रूण की हत्या करना।

निष्कर्ष:

मानव शरीर के विरुद्ध अपराध न केवल व्यक्ति को प्रभावित करते हैं, बल्कि समाज में डर और असुरक्षा का माहौल भी पैदा करते हैं।

  1. इन अपराधों के लिए सख्त दंड यह सुनिश्चित करते हैं कि समाज में कानून और व्यवस्था बनी रहे।
  2. भारतीय कानून मानव शरीर के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रभावी उपाय प्रदान करता है।
    कानून का उद्देश्य अपराधियों को दंडित करने के साथ-साथ समाज में सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करना है।
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दंड के प्रकार (Types of Punishment)

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दंड के प्रकार (Types of Punishment)अपराध के लिए दी जाने वाली सज़ा का उद्देश्य समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखना, अपराधियों को सुधारना और भविष्य में अपराधों को रोकना है। भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत अपराधियों को विभिन्न प्रकार की सज़ा दी जा सकती है।


1. मृत्यु दंड (Capital Punishment)

  • परिभाषा:
    मृत्यु दंड अपराधी को फांसी देने का आदेश है। यह सबसे कठोर दंड है और केवल सबसे गंभीर अपराधों के लिए दिया जाता है।
  • उपयोग:
    • हत्या (धारा 302), देशद्रोह (धारा 121), आतंकवाद, और रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामलों में।
  • उद्देश्य:
    • समाज को अपराधियों से बचाना और दूसरों को ऐसा अपराध करने से रोकना।
  • उदाहरण:
    • निर्भया मामले में दोषियों को मृत्यु दंड दिया गया।

2. आजीवन कारावास (Life Imprisonment)

  • परिभाषा:
    आजीवन कारावास का मतलब है कि अपराधी को उसकी पूरी जिंदगी जेल में बितानी होगी।
  • उपयोग:
    • गंभीर अपराध जैसे हत्या, बलात्कार, अपहरण, आदि।
  • महत्व:
    • यह सज़ा समाज के लिए कम हानिकारक है और अपराधी को सुधरने का मौका देती है।
  • उदाहरण:
    • हत्या के दोषी को धारा 302 के तहत आजीवन कारावास दिया जा सकता है।

3. सश्रम कारावास (Rigorous Imprisonment)

  • परिभाषा:
    इस प्रकार के कारावास में अपराधी को जेल में कठोर शारीरिक श्रम करना पड़ता है।
  • उपयोग:
    • गंभीर अपराधों में जैसे चोरी (धारा 378), डकैती, आदि।
  • उदाहरण:
    • दोषी को जेल में पत्थर तोड़ने, खेती, या अन्य शारीरिक श्रम करने के लिए मजबूर किया जा सकता है।

4. साधारण कारावास (Simple Imprisonment)

  • परिभाषा:
    इस प्रकार की सजा में अपराधी को केवल जेल में रखा जाता है, और कोई शारीरिक श्रम नहीं करवाया जाता।
  • उपयोग:
    • कम गंभीर अपराधों जैसे मानहानि (धारा 500), झूठा आरोप लगाना, आदि।
  • उदाहरण:
    • एक व्यक्ति को मानहानि के लिए 6 महीने का साधारण कारावास दिया गया।

5. जुर्माना (Fine)

  • परिभाषा:
    अपराधी को आर्थिक दंड के रूप में एक निश्चित राशि का भुगतान करने का आदेश दिया जाता है।
  • उपयोग:
    • छोटे अपराध जैसे यातायात नियमों का उल्लंघन, सार्वजनिक स्थान पर गंदगी फैलाना।
  • संयुक्त सजा:
    • कई मामलों में जुर्माना कारावास के साथ लगाया जा सकता है।
  • उदाहरण:
    • यातायात उल्लंघन के लिए 500 रुपये का जुर्माना।

6. संपत्ति की जब्ती (Forfeiture of Property)

  • परिभाषा:
    अपराधी की संपत्ति को सरकार द्वारा जब्त कर लिया जाता है।
  • उपयोग:
    • देशद्रोह (धारा 126 और 127) जैसे मामलों में।
  • महत्व:
    • अपराधियों के आर्थिक लाभ को रोकने के लिए उपयोगी।
  • उदाहरण:
    • किसी आतंकवादी की संपत्ति जब्त करना।

7. सामाजिक बहिष्कार (Social Exclusion)

  • परिभाषा:
    अपराधी को समाज में रह रहे सामान्य लोगों से अलग रखा जाता है।
  • उपयोग:
    • कुछ पारंपरिक या विशेष सामाजिक अपराधों में।
  • उदाहरण:
    • पुराने समय में अछूत घोषित करना।

8. सुधारात्मक सजा (Reformative Punishment)

  • परिभाषा:
    इस सजा का उद्देश्य अपराधी को सुधारना और उसे समाज का एक उपयोगी नागरिक बनाना है।
  • उपयोग:
    • कम गंभीर अपराधों में।
  • उदाहरण:
    • किशोर अपराधियों को सुधार गृह भेजना।

निष्कर्ष:

दंड के प्रकार अपराध की प्रकृति, अपराधी की मानसिक स्थिति और समाज पर इसके प्रभाव के आधार पर तय किए जाते हैं।

  1. कठोर सज़ा (जैसे मृत्यु दंड, आजीवन कारावास) समाज को सुरक्षा प्रदान करती है।
  2. आर्थिक दंड (जैसे जुर्माना) अपराधी को उसके कृत्य के लिए आर्थिक रूप से जिम्मेदार बनाता है।
  3. सुधारात्मक सज़ा अपराधी को एक बेहतर व्यक्ति बनने का अवसर देती है।
    अंततः, कानून का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि समाज में न्याय और शांति स्थापित करना है।
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दोषपूर्ण नीयत को निष्प्रभावी करने वाले कारक

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दोषपूर्ण नीयत को निष्प्रभावी करने वाले कारक (Factors Negating Guilty Intention)दोषपूर्ण नीयत (Mens Rea) अपराध का एक महत्वपूर्ण तत्व है। हालांकि, कुछ परिस्थितियों में दोषपूर्ण नीयत होने के बावजूद व्यक्ति को दंडित नहीं किया जाता क्योंकि कानूनी रूप से उन परिस्थितियों को दोष को कम करने या पूरी तरह समाप्त करने के लिए मान्यता दी गई है। ऐसे कारकों को दोषपूर्ण नीयत को निष्प्रभावी करने वाले कारक कहा जाता है।


1. अल्पायु (Minority)

  • परिभाषा:
    यदि अपराध करने वाला व्यक्ति नाबालिग है (अर्थात, उसकी उम्र 18 वर्ष से कम है), तो उसे अपराध के लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता।
  • भारतीय कानून:
    • 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता (IPC की धारा 82)।
    • 7-12 वर्ष की आयु के बच्चों को तभी दंडित किया जा सकता है जब यह साबित हो कि वे सही और गलत के बीच अंतर समझ सकते थे (IPC की धारा 83)।
  • उदाहरण:
    • 6 साल का बच्चा गलती से किसी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाए, तो उसे अपराधी नहीं माना जाएगा।

2. पागलपन (Insanity)

  • परिभाषा:
    यदि अपराध करने वाले व्यक्ति की मानसिक स्थिति असामान्य है या उसकी संज्ञानात्मक क्षमताएं (cognitive faculties) और भावनात्मक नियंत्रण कमजोर हैं, तो उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
  • कानूनी सिद्धांत:
    • मैकनॉटन नियम (McNaughton Rule): व्यक्ति को अपराध करने के समय सही और गलत का अंतर समझने की क्षमता नहीं थी।
  • उदाहरण:
    • एक मानसिक रोगी गलती से किसी को चोट पहुंचा दे, तो उसे जिम्मेदार नहीं माना जाएगा।

3. नशे की स्थिति – अनैच्छिक (Intoxication – Involuntary)

  • परिभाषा:
    यदि व्यक्ति ने नशा अनजाने में किया है (जैसे किसी ने उसे धोखे से नशीला पदार्थ दे दिया), तो उसे अपराध के लिए दोषी नहीं माना जाएगा।
  • कानूनी प्रावधान (IPC धारा 85):
    यदि नशा स्वेच्छा से किया गया है, तो व्यक्ति अपराध के लिए जिम्मेदार होगा। लेकिन यदि नशा अनैच्छिक था, तो उसे दोषमुक्त किया जा सकता है।
  • उदाहरण:
    • किसी ने धोखे से एक व्यक्ति को शराब पिला दी, और वह व्यक्ति अनजाने में हिंसा कर बैठा।

4. निजी प्रतिरक्षा – औचित्य और सीमाएं (Private Defence – Justification and Limits)

  • परिभाषा:
    यदि किसी व्यक्ति ने अपने या दूसरों के जीवन, शरीर या संपत्ति की रक्षा करने के लिए अपराध किया है, तो उसे दंडित नहीं किया जाएगा।
  • सीमाएं:
    • निजी प्रतिरक्षा का अधिकार तभी मान्य है जब खतरा वास्तविक और तत्काल हो।
    • आत्मरक्षा में किए गए कार्य को अनुचित बल या अतिरेक का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • उदाहरण:
    • यदि कोई व्यक्ति अपने घर में घुसे चोर को पकड़ने के लिए उसे चोट पहुंचाता है, तो यह आत्मरक्षा मानी जाएगी।

5. आवश्यकता (Necessity)

  • परिभाषा:
    यदि कोई व्यक्ति किसी बड़ी हानि या खतरे से बचने के लिए कोई ऐसा कार्य करता है, जिसे सामान्य स्थिति में अपराध माना जाएगा, तो उसे दंडित नहीं किया जाएगा।
  • कानूनी सिद्धांत (IPC धारा 81):
    यह सिद्धांत कहता है कि यदि कोई कार्य समाज या किसी व्यक्ति के लिए अधिक लाभकारी है, तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।
  • उदाहरण:
    • किसी डॉक्टर का गंभीर स्थिति में मरीज की जान बचाने के लिए एक अनधिकृत सर्जरी करना।

6. तथ्य की गलती (Mistake of Fact)

  • परिभाषा:
    यदि किसी व्यक्ति ने किसी तथ्य की गलतफहमी के कारण अपराध किया है, और यह गलती ईमानदारी से हुई है, तो उसे अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाएगा।
  • कानूनी स्थिति (IPC धारा 76 और 79):
    • यदि व्यक्ति ने कानून के तहत अपने कर्तव्य का पालन करते हुए गलती की है, तो उसे दंडित नहीं किया जाएगा।
  • उदाहरण:
    • एक पुलिस अधिकारी किसी को कानून के तहत गिरफ्तार करता है, लेकिन बाद में पता चलता है कि वह निर्दोष था।

निष्कर्ष:

ये कारक अपराध के दौरान दोषपूर्ण नीयत को समाप्त या कम करने में मदद करते हैं।

  1. अल्पायु और पागलपन: अपराधी की क्षमता और मानसिक स्थिति पर आधारित हैं।
  2. नशा और तथ्य की गलती: परिस्थितिजन्य कारकों पर निर्भर करते हैं।
  3. निजी प्रतिरक्षा और आवश्यकता: यह परिस्थितियों के आधार पर कार्य को न्यायोचित ठहराते हैं।
    इन कारकों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्ति को केवल उसी स्थिति में दंडित किया जाए, जब वह वास्तव में दोषी हो।

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अपराध के चरण (Stages of a Crime)

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अपराध के चरण (Stages of a Crime) को एक प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है, जिसमें यह कुछ निश्चित चरणों से गुजरता है। किसी भी अपराध को पूर्ण माना जाने से पहले उसके कुछ मुख्य चरण होते हैं। ये चरण अपराध करने के इरादे से शुरू होकर उसके प्रयास और अंततः उसके पूरा होने तक पहुंचते हैं।


1. दोषपूर्ण नीयत – केवल नीयत दंडनीय नहीं (Guilty Intention – Mere Intention Not Punishable)

  • परिभाषा:
    दोषपूर्ण नीयत का मतलब है कि व्यक्ति के मन में अपराध करने का इरादा हो। लेकिन केवल इरादा रखना अपराध नहीं माना जाता, जब तक कि यह इरादा किसी कार्य में परिवर्तित न हो।
  • कानूनी स्थिति:
    • केवल अपराध के बारे में सोचना या उसकी योजना बनाना दंडनीय नहीं होता।
    • कानून केवल उन्हीं कृत्यों को दंडित करता है, जो समाज को वास्तविक रूप से नुकसान पहुंचाते हैं।
  • उदाहरण:
    • यदि कोई व्यक्ति किसी को मारने की सोचता है, लेकिन इस सोच को कार्य में परिवर्तित नहीं करता, तो उसे दंडित नहीं किया जा सकता।

2. तैयारी (Preparation)

  • परिभाषा:
    अपराध करने के लिए कोई योजना बनाना या आवश्यक साधन जुटाना “तैयारी” कहलाता है। यह अपराध के इरादे को अमल में लाने का दूसरा चरण है।
  • महत्व:
    • तैयारी दंडनीय नहीं होती जब तक कि यह किसी विशिष्ट अपराध से स्पष्ट रूप से जुड़ी न हो।
    • कुछ विशिष्ट अपराधों (जैसे युद्ध छेड़ने की तैयारी) में तैयारी को भी दंडनीय माना गया है।
  • उदाहरण:
    • किसी को मारने के लिए हथियार खरीदना।
    • चोरी के लिए मास्टर चाबी बनाना।
  • दंडनीयता का अपवाद:
    भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत कुछ विशेष मामलों में, केवल तैयारी भी दंडनीय होती है, जैसे:
    • युद्ध छेड़ने की तैयारी (धारा 122)।
    • नकली मुद्रा छापने की तैयारी।

3. प्रयास (Attempt)

  • परिभाषा:
    अपराध को पूरा करने के लिए कोई वास्तविक कार्य करना, लेकिन उसे पूरी तरह अंजाम न दे पाना “प्रयास” कहलाता है। प्रयास अपराध का तीसरा और अंतिम चरण होता है, जब तक कि वह अपराध पूर्ण न हो जाए।
  • महत्व:
    • प्रयास को दंडनीय माना जाता है क्योंकि यह अपराध को अंजाम देने का वास्तविक संकेत देता है।
    • कानून के अनुसार, प्रयास और पूर्ण अपराध के बीच बहुत कम अंतर होता है।
  • उदाहरण:
    • किसी को मारने के लिए गोली चलाना, लेकिन गोली चूक जाना।
    • चोरी करने के लिए घर में प्रवेश करना लेकिन पकड़े जाना।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC):
    • धारा 511: किसी भी अपराध के प्रयास के लिए दंड का प्रावधान करती है।
    • दंड: प्रयास करने पर दंड, पूर्ण अपराध के लिए निर्धारित दंड का आधा होता है।

अपराध का पूर्ण होना (Completion of Crime)

  • अपराध का चौथा चरण:
    जब अपराध पूरी तरह से अंजाम दिया जाता है, तो इसे पूर्ण अपराध माना जाता है।
  • उदाहरण:
    • हत्या के प्रयास के बाद वास्तव में हत्या कर देना।
    • चोरी के लिए घर में घुसने के बाद सामान चुरा लेना।

निष्कर्ष:

अपराध के चरण इस बात को स्पष्ट करते हैं कि कानून का उद्देश्य अपराध को रोकना है, न कि केवल उसे दंडित करना।

  1. दोषपूर्ण नीयत और तैयारी को केवल कुछ विशिष्ट मामलों में दंडनीय माना जाता है।
  2. प्रयास को अपराध के समान ही गंभीरता से लिया जाता है क्योंकि यह अपराध को पूरा करने की दिशा में एक वास्तविक कदम है।
  3. पूर्ण अपराध दंडनीयता का अंतिम स्तर है, और इसे गंभीरता से लिया जाता है।

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सामूहिक दायित्व (Group Liability)

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सामूहिक दायित्व (Group Liability) का अर्थ है कि जब एक से अधिक व्यक्ति मिलकर अपराध करते हैं, तो सभी को सामूहिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है। भारतीय कानून के तहत, यदि किसी समूह ने अपराध को अंजाम देने में भाग लिया है, तो प्रत्येक सदस्य को समान रूप से दोषी माना जाता है।


1. सामान्य नीयत (Common Intention)

  • परिभाषा:
    सामान्य नीयत का तात्पर्य है कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों ने एक समान उद्देश्य या अपराध को अंजाम देने के लिए आपसी सहमति और योजना बनाई।
  • महत्व:
    यदि अपराध को अंजाम देने में सभी ने सक्रिय भाग लिया हो, तो हर व्यक्ति को समान रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है, चाहे किसी ने प्रत्यक्ष रूप से अपराध किया हो या नहीं।
  • उदाहरण:
    • दो लोग मिलकर चोरी करने की योजना बनाते हैं। यदि केवल एक व्यक्ति ने चोरी की, तो दूसरा व्यक्ति भी उतना ही दोषी होगा।
    • यदि एक व्यक्ति ने किसी को पकड़े रखा और दूसरे ने हत्या की, तो दोनों को हत्या का दोषी माना जाएगा।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 34:
    यह धारा सामूहिक नीयत के लिए जिम्मेदारी तय करती है।

2. अभिप्रेरण (Abetment)

  • परिभाषा:
    अपराध करने के लिए किसी को उकसाना, सहायता देना या उसे प्रोत्साहित करना “अभिप्रेरण” कहलाता है।
  • अभिप्रेरण के प्रकार:
    • उकसाना (Instigation): किसी को अपराध करने के लिए प्रेरित करना।
    • सहायता देना (Aid): अपराध करने में किसी प्रकार की सहायता प्रदान करना।
    • षड्यंत्र (Conspiracy): अपराध को अंजाम देने के लिए योजना बनाना।
  • महत्व:
    यदि कोई व्यक्ति अपराध के लिए प्रेरित करता है, तो उसे भी उसी प्रकार का दोषी माना जाएगा, जैसे अपराध को करने वाला।
  • उदाहरण:
    • किसी को हत्या के लिए हथियार देना।
    • किसी को चोरी करने के लिए प्रोत्साहित करना।

3. अवैध जमावड़ा (Unlawful Assembly)

  • परिभाषा:
    यदि पांच या अधिक लोग किसी गैरकानूनी उद्देश्य के लिए इकट्ठा होते हैं, तो इसे “अवैध जमावड़ा” कहा जाता है।
  • गैरकानूनी उद्देश्य:
    • किसी को डराना, धमकाना।
    • कानून और व्यवस्था को तोड़ना।
    • दूसरों को चोट पहुंचाना।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 141:
    यह धारा अवैध जमावड़े को परिभाषित करती है।
  • उदाहरण:
    • यदि पांच लोग मिलकर किसी को मारने की योजना बनाते हैं और हथियार लेकर उसके घर जाते हैं।
    • दंगे के उद्देश्य से इकट्ठा होना।

4. आपराधिक साजिश (Criminal Conspiracy)

  • परिभाषा:
    दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा किसी अपराध को अंजाम देने के लिए योजना बनाना “आपराधिक साजिश” कहलाता है।
  • महत्व:
    साजिश करने वाले सभी व्यक्तियों को दोषी माना जाता है, भले ही उन्होंने अपराध में सक्रिय भाग नहीं लिया हो।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120B:
    यह धारा आपराधिक साजिश के लिए दंड का प्रावधान करती है।
  • उदाहरण:
    • बैंक लूटने की योजना बनाना।
    • किसी को जान से मारने की योजना बनाना।

5. दंगा – एक विशिष्ट अपराध के रूप में (Rioting as a Specific Offence)

  • परिभाषा:
    यदि अवैध जमावड़े में शामिल लोग हिंसा करते हैं या सार्वजनिक शांति भंग करते हैं, तो इसे “दंगा” कहा जाता है।
  • महत्व:
    जो भी व्यक्ति इस जमावड़े का हिस्सा होगा, उसे दंगे का दोषी माना जाएगा, भले ही उसने प्रत्यक्ष रूप से हिंसा न की हो।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 146 और 147:
    ये धाराएँ दंगे और उससे जुड़े अपराधों को परिभाषित करती हैं।
  • उदाहरण:
    • भीड़ द्वारा किसी दुकान को लूटना।
    • सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना।

निष्कर्ष:

सामूहिक दायित्व के तहत, यदि कोई व्यक्ति अपराध करने वाले समूह का हिस्सा है, तो वह उसी प्रकार से जिम्मेदार ठहराया जाएगा जैसे अपराध को प्रत्यक्ष रूप से करने वाले व्यक्ति। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि कानून समूह के प्रभाव और एकता से किए गए अपराधों को रोक सके।

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अपराधिक दायित्व के तत्व (Elements of Criminal Liability)

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1. अपराध का कर्ता – प्राकृतिक और विधिक व्यक्ति (Author of Crime – Natural and Legal Person)

  • प्राकृतिक व्यक्ति (Natural Person):
    अपराध का कर्ता एक प्राकृतिक व्यक्ति हो सकता है, जैसे कोई पुरुष, महिला या अन्य व्यक्ति। यह वह व्यक्ति होता है जो शारीरिक रूप से अपराध करता है।
    उदाहरण: किसी व्यक्ति द्वारा चोरी करना, हत्या करना।
  • विधिक व्यक्ति (Legal Person):
    कभी-कभी अपराध का कर्ता कोई विधिक व्यक्ति (जैसे कंपनी, संगठन या संस्था) भी हो सकता है। यदि कंपनी के किसी निर्णय या लापरवाही से कानून का उल्लंघन होता है, तो कंपनी या उसके प्रतिनिधियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
    उदाहरण: किसी कंपनी द्वारा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना या कर चोरी करना।

2. मेन्स रिया – बुरी नीयत (Mens Rea – Evil Intention)

  • परिभाषा:
    मेन्स रिया का अर्थ है “दोषपूर्ण मानसिक स्थिति” या अपराध करने का बुरा इरादा।
  • महत्व:
    अपराध को अपराध तभी माना जाता है जब अपराधी के मन में अपराध करने का इरादा हो।
    उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी को चोट पहुंचाने के इरादे से हमला करता है, तो यह अपराध होगा। लेकिन यदि वही कार्य गलती से हुआ, तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा।
  • बिना मेन्स रिया:
    कुछ मामलों में, जहां कानून स्पष्ट रूप से मेन्स रिया को अनिवार्य नहीं मानता, वहां दोषपूर्ण मानसिक स्थिति के बिना भी दायित्व बनता है।
    उदाहरण: यातायात नियमों का उल्लंघन।

3. मेन्स रिया का महत्व (Importance of Mens Rea)

  • क्यों जरूरी है?
    मेन्स रिया यह साबित करने में मदद करता है कि व्यक्ति ने जानबूझकर अपराध किया और यह गलती या दुर्घटना नहीं थी।
  • अदालती निर्णय:
    अदालतें यह देखती हैं कि अपराधी ने कार्य किस उद्देश्य से किया। यदि बुरी नीयत नहीं है, तो व्यक्ति को दोषमुक्त किया जा सकता है।
    उदाहरण: यदि किसी डॉक्टर ने ऑपरेशन करते समय गलती से किसी की जान ले ली, तो इसे हत्या नहीं माना जाएगा क्योंकि बुरी नीयत नहीं थी।

4. दोषपूर्ण नीयत के उद्देश्य से किया गया कार्य (Act in Furtherance of Guilty Intent)

  • परिभाषा:
    अपराधी के मन में दोषपूर्ण इरादा होने के साथ-साथ उस इरादे को पूरा करने के लिए किया गया कार्य भी अपराध का हिस्सा है।
  • महत्व:
    केवल सोचने या योजना बनाने से अपराध नहीं बनता; अपराध को साबित करने के लिए दोषपूर्ण इरादे के साथ किसी कार्य का होना आवश्यक है।
    उदाहरण:
    • किसी को मारने का इरादा रखने वाला व्यक्ति जब हथियार खरीदता है, तो यह “दोषपूर्ण कार्य” का संकेत है।
    • यदि वह हमला करता है, तो यह अपराध का पूरा होना कहलाता है।

5. लोप (Omission)

  • परिभाषा:
    किसी ऐसे कार्य को न करना, जिसे कानून या कर्तव्य के तहत करना अनिवार्य हो, लोप (Omission) कहलाता है।
  • उदाहरण:
    • माता-पिता का अपने बच्चों को भोजन न देना।
    • किसी व्यक्ति को डूबते हुए देखना और बचाव न करना, जबकि आप ऐसा कर सकते थे।
  • दायित्व:
    लोप भी अपराध हो सकता है, जब व्यक्ति पर उस कार्य को करने का कानूनी दायित्व हो।

6. दूसरे को चोट पहुंचाना (Injury to Another)

  • परिभाषा:
    किसी अन्य व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक या आर्थिक नुकसान पहुंचाना अपराध का महत्वपूर्ण तत्व है।
  • प्रकार:
    • शारीरिक चोट: किसी को मारपीट कर घायल करना।
    • मानसिक चोट: धमकी देकर डराना या मानसिक तनाव देना।
    • आर्थिक नुकसान: चोरी, धोखाधड़ी, या संपत्ति का नुकसान।
  • उदाहरण:
    • किसी को जानबूझकर गाड़ी से टक्कर मारना।
    • किसी के पैसे धोखाधड़ी से छीनना।

निष्कर्ष:
अपराध को साबित करने के लिए ऊपर बताए गए सभी तत्वों का होना आवश्यक है। मेन्स रिया (दोषपूर्ण मानसिक स्थिति) और एक्टस रियस (दोषपूर्ण कार्य) अपराध के सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं। इनके बिना अपराध का सिद्ध होना मुश्किल है।https://advocatesandhyarathore.com/2025/01/09/general-principle-of-crime-and-specific-offences/

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