भोपाल गैस त्रासदी (1984)
भोपाल गैस त्रासदी (1984) और “संपूर्ण उत्तरदायित्व” (Absolute Liability): विस्तृत विवरण
भोपाल गैस त्रासदी: परिचय
2-3 दिसंबर 1984 की रात को, मध्य प्रदेश के भोपाल शहर में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के कीटनाशक संयंत्र से मेथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ। इस दुर्घटना में हजारों लोग मारे गए और लाखों लोग स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं का शिकार हुए। यह घटना विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदियों में से एक है।
“संपूर्ण उत्तरदायित्व” सिद्धांत (Absolute Liability Principle)
1. परिभाषा:
संपूर्ण उत्तरदायित्व का सिद्धांत यह कहता है कि किसी खतरनाक गतिविधि में शामिल संस्थान, चाहे उन्होंने सावधानी बरती हो या नहीं, दुर्घटना के लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार होंगे।
2. आधार:
यह सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1986 में एम.सी. मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में स्थापित किया गया। इसे भोपाल गैस त्रासदी के संदर्भ में भी न्याय के लिए प्रयोग किया गया।
3. मुख्य बिंदु:
- यदि कोई संस्थान खतरनाक सामग्री का उत्पादन, उपयोग या भंडारण करता है, और उससे जनमानस को हानि होती है, तो उस संस्थान पर पूर्ण जिम्मेदारी तय होगी।
- संस्थान यह तर्क नहीं दे सकता कि उन्होंने सावधानी बरती थी या यह दुर्घटना किसी तीसरे पक्ष की गलती के कारण हुई।
- उत्तरदायित्व तय करने के लिए किसी प्रकार की लापरवाही का प्रमाण आवश्यक नहीं है।
भोपाल गैस त्रासदी और उत्तरदायित्व
(1) यूनियन कार्बाइड का दोष:
- संयंत्र में सुरक्षा मानकों की अनदेखी हुई।
- खर्च बचाने के लिए आवश्यक सुरक्षा उपकरण नहीं लगाए गए।
- गैस रिसाव को रोकने वाले उपकरण सही तरीके से काम नहीं कर रहे थे।
(2) प्रभावितों के लिए न्याय:
- भारत सरकार ने यूनियन कार्बाइड के खिलाफ 1985 में मुकदमा दायर किया।
- 1989 में समझौते के तहत यूनियन कार्बाइड ने 470 मिलियन डॉलर (लगभग ₹715 करोड़) का मुआवजा दिया।
(3) आलोचना:
- यह मुआवजा पीड़ितों की हानि की तुलना में बहुत कम था।
- यूनियन कार्बाइड और उसके तत्कालीन अध्यक्ष वारेन एंडरसन पर सख्त आपराधिक कार्यवाही नहीं हो सकी।
संपूर्ण उत्तरदायित्व बनाम पारंपरिक उत्तरदायित्व
पारंपरिक उत्तरदायित्व | संपूर्ण उत्तरदायित्व |
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लापरवाही या गलती साबित करनी होती है। | किसी भी गलती के बिना भी जिम्मेदारी तय होती है। |
बचाव के विकल्प (Defenses) उपलब्ध होते हैं। | बचाव का कोई विकल्प नहीं होता। |
भोपाल गैस त्रासदी का प्रभाव:
- कानूनी सुधार:
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986।
- खतरनाक सामग्री प्रबंधन पर सख्त नियम।
- नैतिक शिक्षा:
- औद्योगिक संयंत्रों के संचालन में मानव जीवन की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- जोखिम प्रबंधन और आपदा योजना की अनिवार्यता।
- न्याय की दिशा में प्रयास:
- इस त्रासदी ने “संपूर्ण उत्तरदायित्व” सिद्धांत को मजबूत किया, ताकि भविष्य में कोई संस्थान अपनी जिम्मेदारी से बच न सके।
निष्कर्ष:
भोपाल गैस त्रासदी ने भारत की कानूनी और सामाजिक व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाए। “संपूर्ण उत्तरदायित्व” का सिद्धांत एक स्पष्ट संदेश देता है कि खतरनाक कार्य करने वाले संस्थानों को समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी से बचने का कोई अधिकार नहीं है। यह सिद्धांत न केवल न्याय प्रदान करता है, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक निवारक के रूप में भी कार्य करता है।