मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case): Absolute Liability Principle

  • स्थान: दिल्ली, भारत।
  • संभवित कारण:
    श्रमिकों और जनता के जीवन को खतरे में डालने वाली एक उद्योगिक गतिविधि।

इस मामले में, श्री M.C. Mehta ने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया, जिसमें श्रीराम फूड एंड फर्टिलाइज़र इंडस्ट्रीज़ से गैस रिसाव के कारण हुई दुर्घटनाओं और नुकसान के लिए उत्तरदायित्व तय करने की माँग की गई थी।


मामले का मुख्य मुद्दा (Key Issues)

  1. सार्वजनिक सुरक्षा का उल्लंघन (Violation of Public Safety):
    उद्योग द्वारा की गई गतिविधियाँ सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा थीं।
  2. उत्तरदायित्व का दायरा (Scope of Liability):
    क्या उद्योग केवल “Strict Liability” के सिद्धांत के तहत जिम्मेदार होगा या इसे “Absolute Liability” के तहत उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए?

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Judgment by Supreme Court)

  1. Absolute Liability का सिद्धांत (Principle of Absolute Liability):
    सुप्रीम कोर्ट ने “Strict Liability” के पुराने सिद्धांत को बदलते हुए Absolute Liability का नया सिद्धांत लागू किया।
    • सिद्धांत का मुख्य आधार:
      यदि कोई उद्योग खतरनाक और खतरनाक गतिविधियों में लिप्त है, तो वह बिना किसी अपवाद के हुए नुकसान के लिए पूरी तरह उत्तरदायी होगा।
    • कोई अपवाद नहीं:
      Act of God, तृतीय पक्ष की गलती (Act of Third Party), या पीड़ित की सहमति जैसे बचाव (defences) स्वीकार्य नहीं होंगे।
  2. मुआवजा (Compensation):
    पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाना चाहिए ताकि उनके जीवन में स्थिरता वापस लाई जा सके।
  3. सार्वजनिक सुरक्षा (Public Welfare):
    कोर्ट ने कहा कि खतरनाक गतिविधियों में लिप्त उद्योगों को उच्चतम स्तर की सावधानी और सुरक्षा उपाय अपनाने होंगे।

Absolute Liability के सिद्धांत की मुख्य विशेषताएँ

  1. बिना अपवाद के उत्तरदायित्व (No Exceptions):
    उत्तरदायित्व के लिए “Act of God,” “Plaintiff’s Fault,” और “Third Party’s Act” जैसे किसी भी बचाव का दावा नहीं किया जा सकता।
  2. खतरनाक उद्योगों का उत्तरदायित्व (Liability of Hazardous Industries):
    खतरनाक गतिविधियों में शामिल किसी भी कंपनी को हुए नुकसान के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
  3. पार्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय (Environmental Protection and Social Justice):
    यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

Bhopal Gas Tragedy (1984): Absolute Liability का व्यावहारिक उपयोग

मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)

  • स्थान: भोपाल, मध्य प्रदेश।
  • दिनांक: 2-3 दिसंबर 1984।
  • घटना:
    यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (Union Carbide India Limited) के संयंत्र से 40 टन जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ।
  • पीड़ितों की संख्या:
    • 3,000 से अधिक लोगों की तत्काल मौत।
    • लाखों लोग प्रभावित हुए, जिनमें स्थायी विकलांगता, कैंसर, और अन्य बीमारियाँ शामिल हैं।

घटना के प्रमुख बिंदु (Key Issues in Bhopal Gas Tragedy)

  1. कंपनी की लापरवाही (Negligence of the Company):
    • सुरक्षा उपायों की कमी।
    • रिसाव को रोकने के लिए आवश्यक उपकरणों की अनुपस्थिति।
  2. प्रभावित लोगों का बड़ा पैमाना (Large-Scale Impact):
    घटना के कारण लोगों की मृत्यु, विकलांगता और आजीविका का नुकसान।

भोपाल गैस त्रासदी के लिए उत्तरदायित्व (Liability in Bhopal Gas Tragedy)

  1. Absolute Liability का सिद्धांत लागू हुआ:
    भोपाल गैस त्रासदी ने दिखाया कि पुराने “Strict Liability” के नियम पर्याप्त नहीं थे। इस त्रासदी के बाद Absolute Liability को अपनाया गया।
  2. कंपनी की पूर्ण जिम्मेदारी:
    • यूनियन कार्बाइड को घटना के लिए पूरी तरह उत्तरदायी ठहराया गया।
    • कोई भी बचाव (defence) स्वीकार्य नहीं था।

भोपाल गैस त्रासदी और M.C. Mehta केस के प्रभाव (Impact of Bhopal Gas Tragedy and M.C. Mehta Case)

  1. पर्यावरण कानूनों में सुधार (Reformation in Environmental Laws):
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 लागू हुआ।
  2. Absolute Liability का सिद्धांत:
    खतरनाक उद्योगों को सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी निभाने का बाध्य बनाया गया।
  3. सार्वजनिक सुरक्षा का महत्व (Public Safety Emphasized):
    उद्योगों को सुरक्षा उपायों का पालन करने की सख्त आवश्यकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

M.C. Mehta बनाम Union of India और भोपाल गैस त्रासदी दोनों मामलों ने भारत में Absolute Liability का सिद्धांत स्थापित किया। यह सिद्धांत सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक क्रांतिकारी कदम है। यह खतरनाक उद्योगों को अधिक उत्तरदायी बनाता है और पीड़ितों को न्याय दिलाने में सहायक होता है।