प्री-ट्रायल प्रक्रिया (Pre-Trial Procedure)प्री-ट्रायल प्रक्रिया का अर्थ है, मुकदमे के आरंभ होने से पहले की जाने वाली कानूनी प्रक्रिया। इसका उद्देश्य है अपराध के संबंध में सबूत जुटाना, आरोपी को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करना, और यह सुनिश्चित करना कि न्यायिक प्रक्रिया सुचारु रूप से आगे बढ़ सके। भारतीय कानून के तहत, यह प्रक्रिया पुलिस, अभियोजन पक्ष, और न्यायिक अधिकारियों के बीच संतुलित ढंग से संपन्न की जाती है।


1. आरोपी की गिरफ्तारी और पूछताछ (Arrest and Questioning of the Accused)

(a) गिरफ्तारी (Arrest):

  • अर्थ: गिरफ्तारी का मतलब है आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अस्थायी रूप से सीमित करना ताकि कानून के अनुसार जांच और न्यायिक प्रक्रिया संपन्न हो सके।
  • कानूनी प्रावधान:
    • गिरफ्तारी का अधिकार भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 41 से 60 में वर्णित है।
    • पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है यदि अपराध संज्ञेय (Cognizable Offense) हो।
  • गिरफ्तारी की प्रक्रिया:
    • आरोपी को उसकी गिरफ्तारी का कारण बताया जाना चाहिए।
    • आरोपी को उसके अधिकारों की जानकारी देना पुलिस की जिम्मेदारी है।

(b) पूछताछ (Questioning):

  • पुलिस आरोपी से पूछताछ कर सकती है ताकि अपराध के साक्ष्य प्राप्त हो सकें।
  • पूछताछ के दौरान किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक यातना का इस्तेमाल प्रतिबंधित है।

(c) महत्वपूर्ण प्रावधान:

  • धारा 50: गिरफ्तारी के समय आरोपी को उसके अधिकारों के बारे में सूचित करना।
  • धारा 54: आरोपी की मेडिकल जांच का अधिकार।
  • धारा 57: आरोपी को 24 घंटे के भीतर न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना।

2. आरोपी के अधिकार (Rights of the Accused)

आरोपी को प्री-ट्रायल प्रक्रिया के दौरान कुछ महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं ताकि उसके साथ न्याय हो सके और किसी भी प्रकार के दुरुपयोग को रोका जा सके।

(a) गिरफ्तारी के समय अधिकार:

  • गिरफ्तारी का कारण जानने का अधिकार (CrPC की धारा 50)।
  • किसी वकील से संपर्क करने का अधिकार।
  • गिरफ्तारी के तुरंत बाद परिवार को सूचित करने का अधिकार।

(b) पूछताछ के समय अधिकार:

  • चुप रहने का अधिकार (Right to Silence)।
  • स्वयं के खिलाफ साक्ष्य न देने का अधिकार (भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 20)।

(c) मेडिकल जांच का अधिकार:

  • आरोपी को पुलिस हिरासत के दौरान किसी प्रकार की यातना से बचाने के लिए यह अधिकार दिया गया है।

(d) न्यायिक प्रक्रिया का अधिकार:

  • आरोपी को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है (CrPC की धारा 57)।

3. पुलिस द्वारा एकत्र किए गए बयानों या वस्तुओं के प्रमाण मूल्य (Evidentiary Value of Statements or Articles Collected by Police)

(a) बयानों का प्रमाण मूल्य:

  • पुलिस द्वारा आरोपी या गवाह से लिए गए बयान केवल जांच के उद्देश्य से होते हैं।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act), 1872 के तहत, पुलिस द्वारा दर्ज किया गया बयान अदालत में प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं माना जाता।
  • धारा 27: यदि आरोपी के बयान से कोई महत्वपूर्ण तथ्य उजागर होता है, तो वह स्वीकार्य हो सकता है।
  • पुलिस की कस्टडी में लिए गए बयान केवल मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयानों की तुलना में कम विश्वसनीय माने जाते हैं।

(b) सामग्री/साक्ष्य का प्रमाण मूल्य:

  • अपराध स्थल से जब्त वस्तुओं (जैसे हथियार, दस्तावेज़, आदि) का न्यायालय में महत्वपूर्ण प्रमाण मूल्य होता है।
  • जब्त वस्तुओं को अदालत में प्रस्तुत करने से पहले उन्हें उचित तरीके से सील और प्रलेखित करना आवश्यक है।

4. जांच में अभियोजक और न्यायिक अधिकारी की भूमिका (Role of Prosecutor and Judicial Officer in Investigation)

(a) अभियोजक (Prosecutor):

  • अभियोजक न्यायिक प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा है और वह राज्य का प्रतिनिधित्व करता है।
  • मुख्य कार्य:
    1. पुलिस जांच की निगरानी करना।
    2. यह सुनिश्चित करना कि जांच कानूनी प्रावधानों के अनुरूप हो।
    3. सबूतों का विश्लेषण करना और अदालत में मामला प्रस्तुत करना।
    4. यह सुनिश्चित करना कि किसी निर्दोष को फंसाया न जाए।

(b) न्यायिक अधिकारी (Judicial Officer):

  • न्यायिक अधिकारी जांच प्रक्रिया में एक निष्पक्ष भूमिका निभाता है।
  • मुख्य कार्य:
    1. आरोपी को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर पेश करने के आदेश देना।
    2. आरोपी को न्यायिक हिरासत या पुलिस हिरासत में भेजने का निर्णय लेना।
    3. यह सुनिश्चित करना कि आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन न हो।
    4. सबूतों की वैधता और विश्वसनीयता की जांच करना।
    5. जांच के दौरान उत्पन्न विवादों का समाधान करना।

प्री-ट्रायल प्रक्रिया का महत्व (Significance of Pre-Trial Procedure)

  1. साक्ष्य संग्रह: यह प्रक्रिया न्यायिक प्रक्रिया में साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक आधार तैयार करती है।
  2. आरोपी के अधिकारों की सुरक्षा: आरोपी को निष्पक्षता प्रदान करना और उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा करना।
  3. न्यायिक निगरानी: जांच प्रक्रिया को निष्पक्ष और कानूनी बनाए रखने के लिए न्यायिक अधिकारी की भूमिका।
  4. संतुलन बनाए रखना: पुलिस, अभियोजन पक्ष, और न्यायालय के बीच संतुलन सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष (Conclusion):

प्री-ट्रायल प्रक्रिया का उद्देश्य न्यायपालिका और कानून-व्यवस्था को मजबूत बनाना है। यह आरोपी और समाज दोनों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण चरण है। यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और प्रभावी हो।

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