अपकृत्य (Tort)

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अपकृत्य (Tort) एक नागरिक अधिनियम या कृत्य है, जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति को ऐसा नुकसान या क्षति पहुँचती है जो गैर-कानूनी (unlawful) और अन्यायपूर्ण (wrongful) हो। यह एक नागरिक विधिक अपराध (civil wrong) है, जिसका उद्देश्य पीड़ित व्यक्ति को न्याय और मुआवजा प्रदान करना है।

परिभाषा:

  • सलमंड के अनुसार: “अपकृत्य एक ऐसा नागरिक गलत है, जो किसी कानूनी कर्तव्य के उल्लंघन के परिणामस्वरूप होता है, और जिसके लिए पीड़ित मुआवजे का दावा कर सकता है।”
  • विनफील्ड के अनुसार: “अपकृत्य वह कृत्य है जिससे किसी व्यक्ति को उसकी कानूनी मान्यता प्राप्त अधिकार का उल्लंघन होता है।”

अपकृत्य के तत्व (Elements of Tort):

  1. कानूनी अधिकार का उल्लंघन:
    • अपकृत्य तभी होगा जब किसी व्यक्ति के वैध कानूनी अधिकार का उल्लंघन हो।
    • उदाहरण: संपत्ति पर अवैध अतिक्रमण, शारीरिक चोट, या मानहानि।
  2. किसी का कृत्य (Act or Omission):
    • अपकृत्य एक सकारात्मक कृत्य (जैसे हमला करना) या किसी कर्तव्य का पालन न करने (जैसे लापरवाही) के कारण हो सकता है।
  3. क्षति (Damage):
    • अपकृत्य तभी माना जाएगा जब किसी व्यक्ति को उस कृत्य से वास्तविक नुकसान हुआ हो।
    • नुकसान शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या प्रतिष्ठा से जुड़ा हो सकता है।
  4. मुआवजा योग्य (Compensation):
    • पीड़ित व्यक्ति को क्षति पूर्ति के रूप में मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार होता है।

अपकृत्य के प्रकार:

  1. शारीरिक अपकृत्य (Personal Tort):
    • शारीरिक चोट, हमले (assault), या झूठे कारावास (false imprisonment) से संबंधित।
  2. संपत्ति से संबंधित अपकृत्य (Property Tort):
    • जैसे संपत्ति पर अतिक्रमण (trespass) या संपत्ति को नुकसान पहुंचाना।
  3. प्रतिष्ठा से संबंधित अपकृत्य (Reputation Tort):
    • मानहानि (defamation) के मामले।
  4. आर्थिक अपकृत्य (Economic Tort):
    • अनुबंध का उल्लंघन या व्यापार में हस्तक्षेप।

उदाहरण:

  1. लापरवाही (Negligence): यदि कोई डॉक्टर किसी मरीज का सही इलाज करने में असावधानी करता है और मरीज को नुकसान होता है।
  2. मानहानि (Defamation): किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को झूठे आरोपों से हानि पहुँचाना।
  3. संपत्ति पर अतिक्रमण (Trespass): बिना अनुमति के किसी की जमीन पर प्रवेश करना।

उद्देश्य:

  • अपकृत्य का मुख्य उद्देश्य क्षतिग्रस्त व्यक्ति को मुआवजा प्रदान करना है।
  • यह अपराधी को अनुशासन में रखने और भविष्य में ऐसी गलतियों को रोकने के लिए एक निवारक उपाय भी है।

निष्कर्ष:

अपकृत्य व्यक्तिगत अधिकारों और कर्तव्यों के संतुलन को बनाए रखने का एक कानूनी साधन है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके कानूनी अधिकारों से वंचित न किया जाए और किसी भी तरह की क्षति या अन्याय के लिए न्याय प्राप्त हो।

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मालिक और सेवक (Master and Servant)

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A. मालिक और सेवक का संबंध (Master and Servant Relationship)
मालिक और सेवक का संबंध एक विशेष प्रकार के अनुबंध द्वारा निर्धारित होता है, जिसमें सेवक मालिक के लिए कार्य करता है और उसकी दिशा-निर्देशों का पालन करता है। इस संबंध में, सेवक मालिक के निर्देशन और नियंत्रण के अधीन होता है। यदि सेवक कार्यक्षेत्र के भीतर कोई गलती करता है, तो सामान्यतः उसके कार्यों की जिम्मेदारी मालिक पर आ जाती है। इस प्रकार का दायित्व विकेरियस लायबिलिटी (Vicarious Liability) के सिद्धांत पर आधारित होता है।

B. सेवक कौन है? (Who is a Servant)
सेवक वह व्यक्ति है जो:

  1. मालिक के निर्देशानुसार कार्य करता है।
  2. उसके कार्य के तरीके और प्रक्रिया पर मालिक का नियंत्रण होता है।
  3. सेवक और मालिक के बीच का संबंध एक अनुबंध पर आधारित होता है, जो वेतन या पारिश्रमिक के रूप में सेवक को भुगतान सुनिश्चित करता है।
    उदाहरण: घरेलू नौकर, निजी ड्राइवर, फैक्ट्री कर्मचारी।

C. सेवक को उधार देना (Lending a Servant)
जब मूल मालिक अपने सेवक को अस्थायी रूप से किसी तीसरे व्यक्ति को सौंप देता है, तो सेवक की गतिविधियों के लिए दायित्व का निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि उस समय सेवक किसके नियंत्रण में था।

  1. मूल मालिक का नियंत्रण: यदि सेवक कार्य करते समय अपने मूल मालिक के आदेशों का पालन कर रहा है, तो उसके कार्यों की जिम्मेदारी मूल मालिक पर बनी रहती है।
  2. उधार लेने वाले मालिक का नियंत्रण: यदि सेवक अस्थायी रूप से उधार लेने वाले मालिक के नियंत्रण और निर्देशन में काम कर रहा है, तो उस समय के कार्यों के लिए नया मालिक जिम्मेदार होता है।
    उदाहरण: एक निर्माण कंपनी अपने क्रेन ऑपरेटर को दूसरी कंपनी के प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए भेजती है।

D. कार्यक्षेत्र के भीतर सेवक की गतिविधियां (Course of Employment)
सेवक के कार्यक्षेत्र के भीतर की गई सभी गतिविधियां मालिक की जिम्मेदारी के तहत आती हैं। मालिक सेवक की गलतियों, लापरवाहियों, या जानबूझकर किए गए कृत्यों के लिए तब जिम्मेदार होता है जब वह कृत्य सेवक के कार्यक्षेत्र के भीतर और मालिक के निर्देशानुसार किया गया हो।

  1. लापरवाही (Carelessness of Servant):
    यदि सेवक अपने कार्य में लापरवाही बरतता है और उससे किसी अन्य को नुकसान होता है, तो मालिक जिम्मेदार होगा।
    उदाहरण: एक ड्राइवर का तेज गति से गाड़ी चलाना और दुर्घटना कर देना।
  2. गलती (Mistake of Servant):
    सेवक द्वारा अनजाने में की गई गलती के लिए भी मालिक उत्तरदायी होगा, बशर्ते वह गलती कार्यक्षेत्र के अंतर्गत की गई हो।
    उदाहरण: एक डिलीवरी मैन का गलत पते पर सामान पहुंचा देना।
  3. जानबूझकर की गई गलती (Willful Act of Servant):
    यदि सेवक किसी कार्य को जानबूझकर नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से करता है, तो मालिक केवल तभी जिम्मेदार होगा जब वह कार्य मालिक के आदेश या निर्देश के अनुसार किया गया हो।
    उदाहरण: सिक्योरिटी गार्ड का मालिक के निर्देश पर किसी व्यक्ति को जबरदस्ती बाहर निकालना।

E. मालिक और सेवक के परस्पर अधिकार एवं दायित्व (Mutual Rights and Obligations of Master and Servant)

  1. मालिक के अधिकार:
    • सेवक को अनुशासन में रखना।
    • सेवक से अनुबंधित कार्य कराना।
    • कार्य की गुणवत्ता सुनिश्चित करना।
    • सेवक की लापरवाही या गलती पर उचित कार्रवाई करना।
  2. मालिक के दायित्व:
    • सेवक को वेतन या पारिश्रमिक प्रदान करना।
    • सेवक को सुरक्षित कार्यक्षेत्र देना।
    • सेवक को अत्यधिक कार्य या अवैध गतिविधियों के लिए बाध्य न करना।
  3. सेवक के अधिकार:
    • उचित वेतन प्राप्त करना।
    • सुरक्षित और स्वच्छ कार्य वातावरण की मांग।
    • अनुबंध के अनुसार कार्य की सीमा निर्धारित करना।
  4. सेवक के दायित्व:
    • मालिक के आदेशों का पालन करना।
    • कार्य में ईमानदारी और निष्ठा बनाए रखना।
    • कार्यक्षेत्र के भीतर और बाहर मालिक की प्रतिष्ठा का सम्मान करना।

स्वतंत्र ठेकेदार (Independent Contractor)
स्वतंत्र ठेकेदार और सेवक के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर होता है। स्वतंत्र ठेकेदार वह व्यक्ति है जो किसी कार्य को करने के लिए मालिक के साथ अनुबंध करता है, लेकिन कार्य करने के तरीके और प्रक्रिया पर मालिक का कोई नियंत्रण नहीं होता।

  • मालिक केवल ठेकेदार द्वारा दिए गए परिणाम के लिए जिम्मेदार होता है, न कि कार्य को करने की प्रक्रिया के लिए।
    उदाहरण: एक बिल्डिंग ठेकेदार जो निर्माण कार्य करता है।

मुख्य अंतर:

  • सेवक मालिक के निर्देश और नियंत्रण में कार्य करता है।
  • स्वतंत्र ठेकेदार कार्य की प्रक्रिया में स्वतंत्र होता है।

निष्कर्ष (Conclusion):
मालिक और सेवक के संबंध में दायित्व का निर्धारण सेवक की गतिविधियों, कार्यक्षेत्र, और नियंत्रण के आधार पर किया जाता है। यह संबंध न केवल पारस्परिक विश्वास और अनुबंध पर आधारित है, बल्कि सेवक और मालिक दोनों के अधिकारों और दायित्वों का स्पष्ट निर्धारण भी आवश्यक है।

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Statutory Liability (वैधानिक उत्तरदायित्व)

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Statutory Liability (वैधानिक उत्तरदायित्व)का अर्थ है वह कानूनी जिम्मेदारी, जो किसी व्यक्ति, संस्था, या संगठन पर कानून (Statute) द्वारा लागू की जाती है। यह उत्तरदायित्व किसी विशेष अधिनियम या कानून के प्रावधानों के तहत निर्धारित होता है, और इसका पालन करना अनिवार्य होता है। यदि कोई व्यक्ति या संगठन इस उत्तरदायित्व का उल्लंघन करता है, तो उसे कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ता है, जैसे जुर्माना, दंड, या अन्य कानूनी कार्यवाही।


वैधानिक उत्तरदायित्व की विशेषताएँ

  1. कानून द्वारा निर्धारित:
    यह उत्तरदायित्व किसी विशेष कानून, अधिनियम, या विनियम के तहत आता है। उदाहरण के लिए, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत उद्योगों पर प्रदूषण नियंत्रण का उत्तरदायित्व होता है।
  2. अनिवार्य पालन:
    वैधानिक उत्तरदायित्व का पालन करना सभी व्यक्तियों और संगठनों के लिए आवश्यक होता है। इसका उल्लंघन कानूनी कार्रवाई को आमंत्रित करता है।
  3. बचाव की सीमित गुंजाइश:
    इसमें बचाव के बहुत कम अवसर होते हैं, क्योंकि यह उत्तरदायित्व कानून के स्पष्ट प्रावधानों पर आधारित होता है।
  4. सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में लागू:
    यह उत्तरदायित्व न केवल निजी व्यक्तियों पर बल्कि सरकार और संगठनों पर भी लागू हो सकता है।

उदाहरण

  1. श्रम कानूनों के तहत उत्तरदायित्व:
    • श्रम कानूनों (Labour Laws) के तहत नियोक्ता को अपने कर्मचारियों को उचित वेतन, काम करने के सुरक्षित वातावरण और अन्य सुविधाएँ प्रदान करनी होती हैं।
    • यदि नियोक्ता इन प्रावधानों का उल्लंघन करता है, तो वह कानूनी कार्यवाही के लिए जिम्मेदार होगा।
  2. पर्यावरण कानून:
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण के उपाय अपनाने होते हैं।
    • यदि कोई उद्योग इन नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसे दंड का सामना करना पड़ेगा।
  3. कर कानून:
    • आयकर अधिनियम, 1961 के तहत हर व्यक्ति को अपनी आय का सही-सही विवरण देना और समय पर कर का भुगतान करना आवश्यक है।
    • कर का भुगतान न करने पर व्यक्ति को जुर्माने या दंड का सामना करना पड़ सकता है।
  4. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम:
    • यदि कोई व्यवसाय उपभोक्ता को खराब उत्पाद या सेवा प्रदान करता है, तो वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत जिम्मेदार होगा।

महत्व

  1. कानून का पालन सुनिश्चित करना:
    वैधानिक उत्तरदायित्व व्यक्तियों और संगठनों को कानून का पालन करने के लिए बाध्य करता है।
  2. सामाजिक और सार्वजनिक सुरक्षा:
    यह उत्तरदायित्व समाज के कमजोर वर्गों और पर्यावरण जैसे सार्वजनिक संसाधनों की रक्षा करता है।
  3. अनुशासन और पारदर्शिता:
    यह संस्थाओं और व्यक्तियों के कार्यों में अनुशासन और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।

निष्कर्ष

Statutory Liability (वैधानिक उत्तरदायित्व) कानूनी व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति और संगठन अपने कार्यों और गतिविधियों में कानूनी प्रावधानों का पालन करें। इसका मुख्य उद्देश्य समाज के हितों की रक्षा करना और कानून के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना है।

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Absolute Liability (पूर्ण उत्तरदायित्व)

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Absolute Liability (पूर्ण उत्तरदायित्व) उत्तरदायित्व का सिद्धांत भारत में पर्यावरण कानून और औद्योगिक दुर्घटनाओं से जुड़े मामलों में लागू किया जाता है। यह सिद्धांत विशेष रूप से M.C. Mehta बनाम भारत संघ (1987) के ऐतिहासिक मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार, यदि कोई उद्योग या व्यक्ति खतरनाक गतिविधियों में संलग्न होता है और इससे लोगों को नुकसान पहुंचता है, तो वह बिना किसी बचाव के जिम्मेदार होगा।

M.C. Mehta बनाम भारत संघ का मामला

यह मामला 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद हुआ था, जब पर्यावरण और लोगों के जीवन की सुरक्षा के लिए औद्योगिक खतरों को रोकने का प्रयास किया गया। इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने “श्रीराम फर्टिलाइज़र एंड केमिकल्स” नामक एक उद्योग से गैस रिसाव को लेकर फैसला दिया। इस रिसाव के कारण लोगों की जान-माल को भारी नुकसान हुआ।

कोर्ट ने इस मामले में कहा कि खतरनाक पदार्थों का निर्माण या उपयोग करने वाली कंपनियां किसी भी दुर्घटना के लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार होंगी, भले ही उन्होंने सावधानी बरती हो या नहीं।


सिद्धांत के मुख्य बिंदु:

  1. Strict Liability से अलग:
    • Strict Liability के सिद्धांत में कुछ बचाव (defenses) की अनुमति दी जाती है, जैसे “Act of God” (प्राकृतिक आपदा), तीसरे पक्ष की गलती, या पीड़ित की सहमति।
    • लेकिन Absolute Liability के सिद्धांत में कोई बचाव मान्य नहीं है। यदि खतरनाक गतिविधियों से नुकसान होता है, तो उद्योग या व्यक्ति पूर्ण रूप से उत्तरदायी होगा।
  2. सार्वजनिक हित की सुरक्षा:
    यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि यदि कोई औद्योगिक गतिविधि समाज के लिए खतरा उत्पन्न करती है, तो उसे बिना शर्त मुआवजा देना होगा। यह सिद्धांत कमजोर और असुरक्षित वर्गों की रक्षा करता है।
  3. खतरनाक उद्योगों की जिम्मेदारी:
    यदि कोई उद्योग खतरनाक रसायनों, गैस, या अन्य हानिकारक वस्तुओं का उत्पादन या उपयोग करता है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई दुर्घटना न हो। यदि कोई दुर्घटना होती है, तो वह किसी भी प्रकार के बहाने से बच नहीं सकता।

न्यायालय का निर्णय:

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा:

  • यदि कोई खतरनाक गतिविधि का संचालन करता है और इससे नुकसान होता है, तो वह किसी भी प्रकार की गलती या लापरवाही के बावजूद जिम्मेदार होगा।
  • खतरनाक उद्योगों को इस तरह के नुकसान के लिए मुआवजा देने के लिए पर्याप्त संसाधन रखना होगा।

सिद्धांत का महत्व:

  1. पर्यावरण सुरक्षा: यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि खतरनाक उद्योग पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाएँ।
  2. औद्योगिक जिम्मेदारी: उद्योगों को अपनी प्रक्रियाओं में अधिक सतर्क और सुरक्षित बनाता है।
  3. पीड़ितों के अधिकार: यह प्रभावित व्यक्तियों को तुरंत और उचित मुआवजा प्राप्त करने की गारंटी देता है।

निष्कर्ष:
M.C. Mehta बनाम भारत संघ के मामले ने भारतीय न्यायिक प्रणाली में एक ऐतिहासिक मोड़ लाया। इसने यह स्पष्ट कर दिया कि खतरनाक औद्योगिक गतिविधियाँ करने वाले लोग और कंपनियां किसी भी दुर्घटना के लिए पूर्ण उत्तरदायी होंगी। इस सिद्धांत ने पर्यावरण संरक्षण और औद्योगिक सुरक्षा के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया।

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Strict Liability (कठोर उत्तरदायित्व)

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Strict Liability(कठोर उत्तरदायित्व) एक कानूनी सिद्धांत है, जो विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति या संगठन को उन नुकसानों के लिए जिम्मेदार ठहराता है जो उसके द्वारा नियंत्रित या संचालित किसी गतिविधि के कारण होते हैं, भले ही उस व्यक्ति ने कोई लापरवाही या दुर्भावना से काम न किया हो। इस सिद्धांत का प्रमुख उदाहरण Rylands v. Fletcher का मामला है, जिसमें कोर्ट ने यह सिद्धांत स्थापित किया।

1.1 Dangerous things, Escape, Non-natural use of land (खतरनाक चीजें, पलायन, भूमि का अस्वाभाविक उपयोग)

  • खतरनाक चीजें: जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति पर ऐसी चीजें या गतिविधियाँ रखता है जो स्वाभाविक रूप से खतरनाक होती हैं, तो वह व्यक्ति उन चीजों से होने वाले किसी भी नुकसान के लिए जिम्मेदार होता है। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई व्यक्ति अपने क्षेत्र में विस्फोटक, गैस, या विषाक्त पदार्थ रखता है और वे किसी कारण से बाहर निकल जाते हैं और दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं, तो उस व्यक्ति को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
  • पलायन (Escape): इस सिद्धांत के अनुसार, जब कोई खतरनाक वस्तु या पदार्थ किसी स्थान से बाहर निकलता है और दूसरों को नुकसान पहुँचाता है, तो इसका उत्तरदायित्व उस व्यक्ति पर होता है जो उस खतरनाक वस्तु को नियंत्रित कर रहा था। अगर वस्तु या पदार्थ पलायन कर जाता है और नुकसान पहुँचाता है, तो यह व्यक्ति के खिलाफ कठोर उत्तरदायित्व का आधार बनता है।
  • भूमि का अस्वाभाविक उपयोग: जब कोई व्यक्ति अपनी भूमि का उपयोग सामान्य तरीके से नहीं करता, बल्कि किसी अस्वाभाविक या अनुकूल गतिविधि में करता है, जो अन्य लोगों के लिए खतरनाक हो सकती है, तो उसे इसके परिणामस्वरूप होने वाले नुकसान के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है। उदाहरण के लिए, किसी स्थान पर खतरनाक रसायन डालना या बड़ी मशीनों का उपयोग करना।

1.2 The Rule of Rylands v. Fletcher (रायलैंड्स बनाम फ्लेचर का सिद्धांत)

Rylands v. Fletcher का मामला 1868 में इंग्लैंड के एक अदालत में आया, जिसमें यह सिद्धांत स्थापित किया गया कि जब कोई व्यक्ति अपनी भूमि पर ऐसी चीजें रखता है जो अन्य लोगों के लिए खतरनाक होती हैं, तो वह व्यक्ति यदि उन चीजों से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार होता है, भले ही उसने लापरवाही न की हो।

इस मामले में, एक व्यक्ति ने अपनी संपत्ति पर एक जलाशय का निर्माण किया, लेकिन जलाशय की निर्माण प्रक्रिया में एक पुरानी खदान की भूमिगत गुफा को नज़रअंदाज किया गया। जब जलाशय से पानी बहकर फ्लेचर की खदान में चला गया, तो यह उसे नुकसान पहुँचाया। अदालत ने फैसला सुनाया कि रायलैंड्स को नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा, क्योंकि उसने अपनी भूमि का अस्वाभाविक उपयोग किया था (जलाशय का निर्माण) और यह नुकसान हो गया।

1.3 Defenses to the Rule (सिद्धांत के खिलाफ बचाव)

कठोर उत्तरदायित्व के खिलाफ कुछ बचाव (defenses) हो सकते हैं, जिनका उपयोग किसी व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी से बचाने के लिए किया जा सकता है:

  1. अन्य व्यक्ति की कार्रवाई (Act of God): अगर नुकसान प्राकृतिक कारणों से हुआ है, जैसे तूफान, भूकंप, बाढ़ या अन्य प्राकृतिक घटनाएँ, तो यह बचाव माना जा सकता है। ऐसे मामलों में व्यक्ति को इस नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
  2. अन्य व्यक्ति की लापरवाही (Act of a Third Party): यदि कोई तीसरा व्यक्ति नुकसान का कारण बना और यह नुकसान उस व्यक्ति की उम्मीद के बाहर था, तो उसे बचाव के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  3. स्वीकृति (Consent): अगर पीड़ित व्यक्ति को इस गतिविधि से संबंधित खतरे के बारे में जानकारी थी और उसने सहमति दी थी, तो वह व्यक्ति उत्तरदायी नहीं होगा।
  4. नुकसान का परिणाम सीधे नहीं होना (Non-Natural Use): अगर किसी व्यक्ति ने अपनी भूमि का प्राकृतिक उपयोग किया है और वह कोई खतरनाक वस्तु नहीं रखी है, तो वह जिम्मेदार नहीं होगा।

इस प्रकार, Rylands v. Fletcher के सिद्धांत में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति अस्वाभाविक रूप से अपनी संपत्ति का उपयोग करता है और इससे दूसरों को नुकसान होता है, तो वह व्यक्ति कठोर उत्तरदायित्व के अंतर्गत आता है, लेकिन कुछ स्थितियाँ ऐसी हैं जिनमें बचाव का अधिकार हो सकता है।

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अपकृत्य की अवधारणा Concept of Tortious Liability

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1. Tortious Liability की अवधारणा (Concept of Tortious Liability)

  • a. Tort की परिभाषा (Definition of Tort)
  • b. संविदात्मक दायित्व से भेद (Distinction from Contractual Liability)
  • c. आपराधिक दायित्व से भेद (Distinction from Criminal Liability)
  • d. Damnum Sine Injuria (हानि बिना चोट के)
  • e. Injuria Sine Damno (चोट बिना हानि के)

1. Tortious Liability की अवधारणा (Concept of Tortious Liability)

Tortious Liability तब उत्पन्न होती है जब कोई व्यक्ति अपने कृत्य या लापरवाही के कारण दूसरे व्यक्ति को नुकसान पहुंचाता है। यह दायित्व निम्नलिखित तत्वों पर आधारित होता है:

  1. कानूनी अधिकार का उल्लंघन (Violation of Legal Right):
    • किसी व्यक्ति के वैध अधिकारों का उल्लंघन होना चाहिए।
    • जैसे: किसी की संपत्ति पर अवैध कब्जा।
  2. गैर-कानूनी कृत्य (Unlawful Act):
    • यह कृत्य जानबूझकर या लापरवाही से किया गया हो सकता है।
  3. क्षति (Damage):
    • पीड़ित को वास्तविक या संभावित क्षति होनी चाहिए।
  4. उद्देश्य (Purpose):
    • इसका उद्देश्य पीड़ित को न्याय और मुआवजा देना है।

a. Tort की परिभाषा (Definition of Tort)

कई विद्वानों ने Tort को परिभाषित किया है:

  1. सालमंड (Salmond):
    “Tort वह नागरिक गलत कृत्य है, जिसके लिए कानून क्षतिपूर्ति प्रदान करता है।”
  2. विनफील्ड (Winfield):
    “Tort वह कृत्य है, जो एक कानूनी कर्तव्य का उल्लंघन करता है और जिसके कारण किसी व्यक्ति को क्षति होती है।”

महत्वपूर्ण विशेषताएँ:

  • सिविल अधिकार: यह निजी अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • मुआवजा: इसका उद्देश्य पीड़ित को हुए नुकसान की भरपाई करना है।
  • अनुबंध से अलग: इसमें अनुबंध का उल्लंघन शामिल नहीं है।

b. संविदात्मक दायित्व से भेद (Distinction from Contractual Liability)

बिंदुTortious LiabilityContractual Liability
आधारकानून द्वारा निर्धारित कर्तव्य का उल्लंघन।अनुबंध के शर्तों का उल्लंघन।
सहमतिपक्षकारों के बीच कोई पूर्व सहमति नहीं होती।पक्षकारों के बीच पूर्व सहमति होती है।
मुआवजागैर-कानूनी कृत्य से हुए नुकसान के लिए।अनुबंध के उल्लंघन से हुए नुकसान के लिए।
उदाहरणकिसी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना।किसी सेवा को समय पर पूरा न करना।

c. आपराधिक दायित्व से भेद (Distinction from Criminal Liability)

बिंदुTortious LiabilityCriminal Liability
प्रकृतिनिजी अधिकारों का उल्लंघन।सार्वजनिक अधिकारों का उल्लंघन।
उद्देश्यपीड़ित को मुआवजा देना।समाज में व्यवस्था बनाए रखने के लिए सजा देना।
प्रक्रियासिविल अदालत में।आपराधिक अदालत में।
पक्षकारनिजी व्यक्ति बनाम निजी व्यक्ति।राज्य बनाम आरोपी।
उदाहरणगलत तरीके से किसी की संपत्ति को नुकसान।चोरी, हत्या, धोखाधड़ी।

d. Damnum Sine Injuria (हानि बिना चोट के)

इस सिद्धांत के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति को आर्थिक या अन्य नुकसान होता है, लेकिन उसके किसी कानूनी अधिकार का उल्लंघन नहीं होता, तो वह मुआवजे का दावा नहीं कर सकता।

उदाहरण:

  1. व्यापार में प्रतिस्पर्धा:
    • एक व्यापारी ने अपने उत्पाद सस्ते में बेच दिए, जिससे दूसरे व्यापारी को नुकसान हुआ। लेकिन यह कानून के तहत गलत नहीं है।
  2. सार्वजनिक सेवाएँ:
    • किसी व्यक्ति को सरकारी निविदा में सफल नहीं होने से नुकसान होता है, लेकिन यह कानूनी अधिकार का उल्लंघन नहीं है।

e. Injuria Sine Damno (चोट बिना हानि के)

इस सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी के कानूनी अधिकार का उल्लंघन होता है, भले ही उसे कोई आर्थिक हानि न हुई हो, तो भी वह मुआवजे का दावा कर सकता है।

उदाहरण:

  1. संपत्ति का अधिकार:
    • किसी को उसके निजी खेत में प्रवेश से रोकना, भले ही उसे कोई आर्थिक नुकसान न हो।
  2. अवरोध (Obstruction):
    • किसी व्यक्ति को मतदान करने से रोकना।

महत्व:
यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि हर व्यक्ति के कानूनी अधिकारों की सुरक्षा हो।


निष्कर्ष

Tortious Liability एक महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत है, जो नागरिक अधिकारों और जिम्मेदारियों की रक्षा करता है। इसमें Damnum Sine Injuria और Injuria Sine Damno जैसे सिद्धांत यह स्पष्ट करते हैं कि हर कानूनी उल्लंघन और क्षति का ध्यान कानून द्वारा रखा जाता है।

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अपकृत्य (Tort)

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अपकृत्य (Tort) एक कानूनी शब्द है, जिसका अर्थ है किसी व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन करना या उसे हानि पहुँचाना। यह एक ऐसा गलत कार्य है जो नागरिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में आता है और इसके लिए कानून में क्षतिपूर्ति का प्रावधान होता है।

विशेषताएँ:

  1. निजीअधिकारकाउल्लंघन: अपकृत्य तब होता है जब किसी व्यक्ति के निजी अधिकार का उल्लंघन होता है।
  2. नुकसान: इसके परिणामस्वरूप भौतिक, मानसिक, या आर्थिक नुकसान हो सकता है।
  3. क्षतिपूर्ति: पीड़ित व्यक्ति को न्यायालय में क्षतिपूर्ति (damages) प्राप्त करने का अधिकार होता है।
  4. नैतिकजिम्मेदारी: यह व्यक्ति के नैतिक और कानूनी कर्तव्यों का उल्लंघन दर्शाता है।

उदाहरण:

  1. किसी की संपत्ति को बिना अनुमति नुकसान पहुँचाना।
  2. मानहानि (Defamation) करना।
  3. किसी व्यक्ति को बिना कारण बाधित करना (False Imprisonment)।
  4. किसी की निजी जानकारी का अनधिकृत उपयोग करना।

नोट: अपकृत्य आपराधिक कानून (Criminal Law) से अलग होता है क्योंकि इसका उद्देश्य क्षतिपूर्ति प्रदान करना होता है, न कि दंड देना।

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