उच्च न्यायालय (High Court)

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उच्च न्यायालय (High Court) उच्च न्यायालय भारत के न्यायिक प्रणाली में राज्य स्तर पर सर्वोच्च न्यायालय है। यह राज्य, संघ राज्य क्षेत्र, या दोनों के लिए स्थापित किया जाता है। उच्च न्यायालय भारतीय न्यायिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके अधिकार क्षेत्र, शक्तियां, और कार्य भारतीय संविधान के तहत परिभाषित हैं।


संविधान में प्रावधान

  • उच्च न्यायालय से संबंधित प्रावधान भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य के लिए) और अनुच्छेद 214 से 231 में दिए गए हैं।
  • उच्च न्यायालय का मुख्यालय राज्य की राजधानी में होता है।

संरचना (Composition)

1. मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice):

  • उच्च न्यायालय का प्रमुख होता है।
  • मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

2. अन्य न्यायाधीश (Other Judges):

  • न्यायाधीशों की संख्या राज्यों की कार्यभार के आधार पर तय की जाती है।
  • न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद की जाती है।

न्यायाधीशों की योग्यता (Qualifications of Judges)

  1. भारत का नागरिक होना चाहिए।
  2. किसी उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में कम से कम 10 वर्षों तक कार्य किया हो।
  3. या किसी न्यायिक पद पर कम से कम 10 वर्षों तक सेवा की हो।

कार्यक्षेत्र (Jurisdiction)

1. मूल क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction):

  • उच्च न्यायालय को मूल क्षेत्राधिकार कुछ विशेष मामलों में होता है।
  • यह नागरिक और आपराधिक मामलों में सुनवाई करता है।
  • उदाहरण:
    • मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में रिट जारी करना।
    • राजस्व और संपत्ति संबंधी विवाद।

2. अपील क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction):

  • उच्च न्यायालय निचली अदालतों (जैसे जिला न्यायालय) के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनता है।
  • इसमें सिविल और आपराधिक दोनों प्रकार के मामले शामिल होते हैं।

3. सलाहकार क्षेत्राधिकार (Advisory Jurisdiction):

  • राज्यपाल, उच्च न्यायालय से विधिक राय मांग सकता है।
  • यह सलाह बाध्यकारी नहीं होती।

4. नियंत्रण और पर्यवेक्षण (Supervisory Jurisdiction):

  • उच्च न्यायालय के पास निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों पर नियंत्रण और पर्यवेक्षण का अधिकार है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि निचली अदालतें संविधान और कानून के अनुसार कार्य करें।

5. रिट अधिकार (Writ Jurisdiction):

  • अनुच्छेद 226 के तहत, उच्च न्यायालय को किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण के खिलाफ रिट जारी करने का अधिकार है।
  • रिट के प्रकार:
    1. हैबियस कॉर्पस (Habeas Corpus): किसी व्यक्ति की अवैध हिरासत से मुक्ति।
    2. मैंडमस (Mandamus): किसी लोक सेवक को कर्तव्य पालन के लिए आदेश।
    3. क्वो वारंटो (Quo Warranto): किसी पद पर अधिकार की जांच।
    4. प्रोहिबिशन (Prohibition): निचली अदालत को उसकी सीमाओं से बाहर जाने से रोकना।
    5. सर्टियोरारी (Certiorari): निचली अदालत के निर्णय को उच्च न्यायालय द्वारा निरस्त करना।

शक्तियां और कार्य (Powers and Functions of High Court)

  1. संविधान की व्याख्या (Interpretation of Constitution):
    • उच्च न्यायालय राज्य स्तर पर संविधान के प्रावधानों की व्याख्या करता है।
  2. मौलिक अधिकारों की रक्षा (Protection of Fundamental Rights):
    • उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए रिट जारी कर सकता है।
  3. न्यायिक समीक्षा (Judicial Review):
    • उच्च न्यायालय को राज्य विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों की न्यायिक समीक्षा का अधिकार है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि कानून और नीतियां संविधान के अनुरूप हों।
  4. आपराधिक और सिविल मामलों का निपटारा:
    • यह आपराधिक मामलों में अभियुक्तों की अपील सुनता है।
    • सिविल मामलों में विवादों का निपटारा करता है।
  5. निचली अदालतों की निगरानी:
    • उच्च न्यायालय निचली अदालतों की कार्यप्रणाली पर नजर रखता है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि न्याय उचित रूप से किया जाए।
  6. विशेष न्यायालयों की स्थापना:
    • उच्च न्यायालय विशेष मामलों (जैसे आतंकवाद, भ्रष्टाचार) के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना कर सकता है।
  7. अधिवक्ताओं की नियुक्ति और अधिवेशन:
    • उच्च न्यायालय वकीलों का पंजीकरण और उन्हें न्यायालय में प्रैक्टिस करने की अनुमति देता है।

स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के उपाय (Safeguards for Independence)

  1. न्यायाधीशों की पद की सुरक्षा:
    • न्यायाधीश को कार्यकाल के दौरान केवल महाभियोग (Impeachment) द्वारा हटाया जा सकता है।
  2. वेतन और सुविधाएं:
    • न्यायाधीशों का वेतन और भत्ते संसद द्वारा निर्धारित होते हैं और ये उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हैं।
  3. राजनीतिक हस्तक्षेप का निषेध:
    • न्यायालय के कार्य में किसी भी प्रकार का राजनीतिक हस्तक्षेप निषिद्ध है।

महत्व (Significance of High Court)

  1. न्याय की उपलब्धता:
    • उच्च न्यायालय राज्य स्तर पर नागरिकों को न्याय उपलब्ध कराता है।
  2. मौलिक अधिकारों की रक्षा:
    • यह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है।
  3. संवैधानिक संतुलन:
    • यह कार्यपालिका और विधायिका की शक्तियों पर नजर रखता है।
  4. निचली अदालतों का पर्यवेक्षण:
    • यह निचली अदालतों की त्रुटियों को ठीक करता है।

भारत में उच्च न्यायालयों की सूची (List of High Courts in India)

भारत में कुल 25 उच्च न्यायालय हैं।

  1. इलाहाबाद उच्च न्यायालय (1866): भारत का सबसे पुराना उच्च न्यायालय।
  2. बॉम्बे उच्च न्यायालय
  3. दिल्ली उच्च न्यायालय
  4. मद्रास उच्च न्यायालय
  5. कलकत्ता उच्च न्यायालय
    … और अन्य।

निष्कर्ष (Conclusion)

उच्च न्यायालय राज्य स्तर पर न्यायपालिका का महत्वपूर्ण अंग है। यह न केवल न्याय प्रदान करता है, बल्कि संविधान और कानूनों की रक्षा भी करता है। उच्च न्यायालय का कार्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनाए रखना है।

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)

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भारत का Supreme Court सुप्रीम कोर्ट कोर्ट देश का सर्वोच्च न्यायिक निकाय है। इसे “संविधान का संरक्षक” और “न्याय का अंतिम अपीलीय न्यायालय” माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट भारत के न्यायपालिका के शीर्ष पर स्थित है और इसका अधिकार क्षेत्र पूरे देश में फैला हुआ है।


संविधान में प्रावधान

सुप्रीम कोर्ट की स्थापना भारतीय संविधान के भाग V (संघ के न्यायपालिका) के तहत की गई है।

  • अनुच्छेद 124 से 147 में सुप्रीम कोर्ट से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

संरचना (Composition)

  • मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India – CJI):
    • सुप्रीम कोर्ट का प्रमुख होता है।
    • राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • अन्य न्यायाधीश (Judges):
    • अधिकतम 34 न्यायाधीश (CJI सहित) की नियुक्ति का प्रावधान है।
    • न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश और वरिष्ठ न्यायाधीशों से परामर्श के आधार पर की जाती है।

न्यायाधीशों की योग्यता (Qualifications of Judges)

सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनने के लिए व्यक्ति को निम्नलिखित योग्यताएं पूरी करनी होती हैं:

  1. भारत का नागरिक होना चाहिए।
  2. किसी उच्च न्यायालय में या उच्च न्यायालयों में संयुक्त रूप से कम से कम 5 वर्षों तक न्यायाधीश रहा हो।
  3. एक अधिवक्ता के रूप में उच्च न्यायालय में कम से कम 10 वर्षों तक प्रैक्टिस की हो।
  4. राष्ट्रपति के विचार में व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जिसने कानून के क्षेत्र में उत्कृष्ट ज्ञान प्रदर्शित किया हो।

कार्यक्षेत्र (Jurisdiction)

1. मूल क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction):

  • सुप्रीम कोर्ट का मूल क्षेत्राधिकार संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत आता है।
  • यह क्षेत्राधिकार मुख्यतः संघ और राज्यों के बीच या राज्यों के आपसी विवादों से संबंधित है।
  • उदाहरण:
    • संघ और राज्य के बीच विवाद।
    • दो या अधिक राज्यों के बीच विवाद।

2. अपील क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction):

  • सुप्रीम कोर्ट भारत का सबसे ऊँचा अपीलीय न्यायालय है।
  • यह आपराधिक, सिविल, या संवैधानिक मामलों में उच्च न्यायालयों के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनता है।
  • अनुच्छेद 132, 133, और 134 इसके तहत आते हैं।

3. सलाहकार क्षेत्राधिकार (Advisory Jurisdiction):

  • अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट से किसी भी विधिक या संवैधानिक प्रश्न पर राय मांग सकते हैं।
  • यह राय बाध्यकारी नहीं होती।

4. संवैधानिक क्षेत्राधिकार (Constitutional Jurisdiction):

  • अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट को मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए विशेष क्षेत्राधिकार दिया गया है।
  • सुप्रीम कोर्ट मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर रिट जारी कर सकता है।

5. विशेष अनुमति क्षेत्राधिकार (Special Leave Jurisdiction):

  • अनुच्छेद 136 के तहत सुप्रीम कोर्ट को किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण से संबंधित मामलों को सुनने का विशेष अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां और कार्य (Powers and Functions of Supreme Court)

1. संविधान का संरक्षक (Guardian of the Constitution):

  • सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेदों की व्याख्या करता है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि संसद और कार्यपालिका संविधान के अनुरूप कार्य करें।

2. मौलिक अधिकारों की रक्षा (Protection of Fundamental Rights):

  • अनुच्छेद 32 के तहत, सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए रिट जारी करता है।
  • रिट के प्रकार:
    • हैबियस कॉर्पस, मैंडमस, प्रोहिबिशन, क्वो वारंटो, और सर्टियोरारी

3. विधायी और कार्यकारी कार्यों की वैधता की जांच:

  • सुप्रीम कोर्ट विधायी या कार्यकारी निर्णयों को न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) के तहत चुनौती दे सकता है।

4. संधियों और समझौतों की व्याख्या:

  • सुप्रीम कोर्ट भारत सरकार द्वारा किए गए अंतरराष्ट्रीय समझौतों की वैधता की व्याख्या करता है।

5. अपील सुनवाई:

  • सुप्रीम कोर्ट निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनता है।

6. चुनावी विवाद:

  • राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी विवाद सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के उपाय (Safeguards for Independence):

  1. न्यायाधीशों की सुरक्षा:
    • न्यायाधीशों को कार्यकाल के दौरान निष्कासित नहीं किया जा सकता, सिवाय महाभियोग (Impeachment) प्रक्रिया के।
  2. वेतन और भत्ते:
    • न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते संसद द्वारा तय किए जाते हैं और यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए संरक्षित हैं।
  3. पद पर रहते हुए आलोचना का प्रतिबंध:
    • पद पर रहते हुए न्यायाधीशों की कार्रवाई पर संसद या किसी अन्य संस्था में चर्चा नहीं की जा सकती।

महत्व (Significance of Supreme Court)

  1. न्याय की गारंटी: यह देश के हर नागरिक को न्याय की गारंटी देता है।
  2. संवैधानिक संतुलन: यह कार्यपालिका, विधायिका, और न्यायपालिका के बीच संतुलन बनाए रखने का कार्य करता है।
  3. मौलिक अधिकारों की रक्षा: यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का संरक्षक है।
  4. कानूनी प्रावधानों की व्याख्या: कानून और संविधान की व्याख्या में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका निर्णायक होती है।

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अदालतों और अभियोजन एजेंसियों का संगठन

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अदालतों और अभियोजन एजेंसियों का संगठन Organization of Courts and Prosecuting Agencies

1. अपराध न्यायालयों की संरचना और उनका क्षेत्राधिकार (Hierarchy of Criminal Courts and Their Jurisdiction):

भारत में आपराधिक न्यायालयों की संरचना को सीआरपीसी (Criminal Procedure Code) के तहत निम्नानुसार व्यवस्थित किया गया है:

  • सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court):
    • देश का सर्वोच्च न्यायालय, जिसका क्षेत्राधिकार पूरे भारत पर होता है।
    • आपराधिक मामलों में संवैधानिक व्याख्या और विशेष अनुमति याचिकाओं (Special Leave Petitions) पर निर्णय लेता है।
  • उच्च न्यायालय (High Court):
    • राज्य स्तर पर आपराधिक मामलों की अपील और पुनरीक्षण सुनवाई करता है।
    • इसकी अंतर्निहित शक्तियां प्रक्रिया के दौरान न्याय सुनिश्चित करने के लिए उपयोग की जाती हैं।
  • सत्र न्यायालय (Sessions Court):
    • यह जिले का उच्चतम न्यायालय है जो गंभीर अपराधों (जैसे हत्या, बलात्कार आदि) पर विचार करता है।
    • सत्र न्यायालय को मृत्युदंड और आजीवन कारावास जैसी कठोर सजा देने का अधिकार है।
  • मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate):
    • मामूली और मध्यम गंभीरता वाले मामलों की सुनवाई करता है।
    • अधिकतम 7 साल की सजा देने का अधिकार।
  • प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate First Class):
    • छोटे अपराधों की सुनवाई करता है।
    • अधिकतम 3 साल की सजा या 10,000 रुपये तक का जुर्माना लगा सकता है।
  • द्वितीय श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate Second Class):
    • मामूली अपराधों पर विचार करता है।
    • अधिकतम 1 साल की सजा या 5,000 रुपये तक का जुर्माना दे सकता है।
  • कार्यकारी मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate):
    • मुख्यतः लोक व्यवस्था बनाए रखने और शांति भंग रोकने जैसे मामलों में कार्य करता है।

2. अभियोजन एजेंसियों का संगठन (Organization of Prosecuting Agencies):

  • पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (Public Prosecutor):
    • यह अभियोजन पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है।
    • मुख्य रूप से सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय में कार्य करता है।
  • अतिरिक्त पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (Additional Public Prosecutor):
    • पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की सहायता करता है और कार्यभार बांटता है।
  • विशेष अभियोजक (Special Prosecutor):
    • विशेष अधिनियमों (जैसे एनडीपीएस, पोक्सो आदि) के तहत मामलों में कार्य करता है।
    • इन्हें विशेष रूप से नियुक्त किया जाता है।
  • पुलिस अभियोजन अधिकारी (Police Prosecutor):
    • निचली अदालतों में पुलिस की ओर से मामलों का प्रतिनिधित्व करता है।
    • मुख्यतः मजिस्ट्रेट न्यायालय में काम करता है।
  • राज्य अभियोजन निदेशक (Director of Prosecution):
    • राज्य स्तर पर अभियोजन एजेंसियों का नेतृत्व करता है।
    • अभियोजन नीति का निर्माण और निगरानी करता है।

3. अभियोजन की वापसी (Withdrawal of Prosecution):

  • अभियोजन की वापसी का प्रावधान सीआरपीसी की धारा 321 के तहत है।
  • उद्देश्य:
    • यदि न्याय के हित में अभियोजन को वापस लेना आवश्यक हो।
    • यदि सामाजिक शांति और सामंजस्य बनाए रखने के लिए अभियोजन को रोकना उचित हो।
  • प्रक्रिया:
    • अभियोजन की वापसी केवल सरकारी वकील (Public Prosecutor) द्वारा की जा सकती है।
    • सरकारी वकील को अदालत में उचित कारण प्रस्तुत करना होता है।
    • न्यायालय अभियोजन वापसी के कारणों की जांच करता है और यदि वह न्यायसंगत है, तो अनुमति देता है।
  • उदाहरण:
    • राजनीतिक मामलों में जहां अभियोजन से सामाजिक या सामुदायिक तनाव बढ़ सकता है।
    • ऐसी स्थिति में जहां साक्ष्य अपर्याप्त हों और मामले को आगे बढ़ाना न्यायसंगत न हो।

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