दोषपूर्ण नीयत को निष्प्रभावी करने वाले कारक (Factors Negating Guilty Intention)दोषपूर्ण नीयत (Mens Rea) अपराध का एक महत्वपूर्ण तत्व है। हालांकि, कुछ परिस्थितियों में दोषपूर्ण नीयत होने के बावजूद व्यक्ति को दंडित नहीं किया जाता क्योंकि कानूनी रूप से उन परिस्थितियों को दोष को कम करने या पूरी तरह समाप्त करने के लिए मान्यता दी गई है। ऐसे कारकों को दोषपूर्ण नीयत को निष्प्रभावी करने वाले कारक कहा जाता है।


1. अल्पायु (Minority)

  • परिभाषा:
    यदि अपराध करने वाला व्यक्ति नाबालिग है (अर्थात, उसकी उम्र 18 वर्ष से कम है), तो उसे अपराध के लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता।
  • भारतीय कानून:
    • 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता (IPC की धारा 82)।
    • 7-12 वर्ष की आयु के बच्चों को तभी दंडित किया जा सकता है जब यह साबित हो कि वे सही और गलत के बीच अंतर समझ सकते थे (IPC की धारा 83)।
  • उदाहरण:
    • 6 साल का बच्चा गलती से किसी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाए, तो उसे अपराधी नहीं माना जाएगा।

2. पागलपन (Insanity)

  • परिभाषा:
    यदि अपराध करने वाले व्यक्ति की मानसिक स्थिति असामान्य है या उसकी संज्ञानात्मक क्षमताएं (cognitive faculties) और भावनात्मक नियंत्रण कमजोर हैं, तो उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
  • कानूनी सिद्धांत:
    • मैकनॉटन नियम (McNaughton Rule): व्यक्ति को अपराध करने के समय सही और गलत का अंतर समझने की क्षमता नहीं थी।
  • उदाहरण:
    • एक मानसिक रोगी गलती से किसी को चोट पहुंचा दे, तो उसे जिम्मेदार नहीं माना जाएगा।

3. नशे की स्थिति – अनैच्छिक (Intoxication – Involuntary)

  • परिभाषा:
    यदि व्यक्ति ने नशा अनजाने में किया है (जैसे किसी ने उसे धोखे से नशीला पदार्थ दे दिया), तो उसे अपराध के लिए दोषी नहीं माना जाएगा।
  • कानूनी प्रावधान (IPC धारा 85):
    यदि नशा स्वेच्छा से किया गया है, तो व्यक्ति अपराध के लिए जिम्मेदार होगा। लेकिन यदि नशा अनैच्छिक था, तो उसे दोषमुक्त किया जा सकता है।
  • उदाहरण:
    • किसी ने धोखे से एक व्यक्ति को शराब पिला दी, और वह व्यक्ति अनजाने में हिंसा कर बैठा।

4. निजी प्रतिरक्षा – औचित्य और सीमाएं (Private Defence – Justification and Limits)

  • परिभाषा:
    यदि किसी व्यक्ति ने अपने या दूसरों के जीवन, शरीर या संपत्ति की रक्षा करने के लिए अपराध किया है, तो उसे दंडित नहीं किया जाएगा।
  • सीमाएं:
    • निजी प्रतिरक्षा का अधिकार तभी मान्य है जब खतरा वास्तविक और तत्काल हो।
    • आत्मरक्षा में किए गए कार्य को अनुचित बल या अतिरेक का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • उदाहरण:
    • यदि कोई व्यक्ति अपने घर में घुसे चोर को पकड़ने के लिए उसे चोट पहुंचाता है, तो यह आत्मरक्षा मानी जाएगी।

5. आवश्यकता (Necessity)

  • परिभाषा:
    यदि कोई व्यक्ति किसी बड़ी हानि या खतरे से बचने के लिए कोई ऐसा कार्य करता है, जिसे सामान्य स्थिति में अपराध माना जाएगा, तो उसे दंडित नहीं किया जाएगा।
  • कानूनी सिद्धांत (IPC धारा 81):
    यह सिद्धांत कहता है कि यदि कोई कार्य समाज या किसी व्यक्ति के लिए अधिक लाभकारी है, तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।
  • उदाहरण:
    • किसी डॉक्टर का गंभीर स्थिति में मरीज की जान बचाने के लिए एक अनधिकृत सर्जरी करना।

6. तथ्य की गलती (Mistake of Fact)

  • परिभाषा:
    यदि किसी व्यक्ति ने किसी तथ्य की गलतफहमी के कारण अपराध किया है, और यह गलती ईमानदारी से हुई है, तो उसे अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाएगा।
  • कानूनी स्थिति (IPC धारा 76 और 79):
    • यदि व्यक्ति ने कानून के तहत अपने कर्तव्य का पालन करते हुए गलती की है, तो उसे दंडित नहीं किया जाएगा।
  • उदाहरण:
    • एक पुलिस अधिकारी किसी को कानून के तहत गिरफ्तार करता है, लेकिन बाद में पता चलता है कि वह निर्दोष था।

निष्कर्ष:

ये कारक अपराध के दौरान दोषपूर्ण नीयत को समाप्त या कम करने में मदद करते हैं।

  1. अल्पायु और पागलपन: अपराधी की क्षमता और मानसिक स्थिति पर आधारित हैं।
  2. नशा और तथ्य की गलती: परिस्थितिजन्य कारकों पर निर्भर करते हैं।
  3. निजी प्रतिरक्षा और आवश्यकता: यह परिस्थितियों के आधार पर कार्य को न्यायोचित ठहराते हैं।
    इन कारकों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्ति को केवल उसी स्थिति में दंडित किया जाए, जब वह वास्तव में दोषी हो।