किसी कार्यवाही के विरुद्ध बचाव (Defences to Actions) किसी व्यक्ति के खिलाफ दायर मुकदमों में, प्रतिवादी (Defendant) के पास कुछ वैध बचाव होते हैं। ये बचाव यह साबित करने में मदद करते हैं कि प्रतिवादी द्वारा किया गया कार्य अवैध नहीं था, या वह कुछ परिस्थितियों के तहत उचित था। नीचे दी गई प्रत्येक रक्षा को विस्तार से समझाया गया है:


1. सहमति (Consent) या Volenti Non-Fit Injuria

सिद्धांत:

  • इस सिद्धांत का अर्थ है, “जिसे जोखिम का ज्ञान हो और जो स्वेच्छा से उसे स्वीकार करे, उसे हानि का दावा करने का अधिकार नहीं।”
  • यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किसी जोखिम में शामिल होता है, तो वह किसी चोट या हानि के लिए जिम्मेदार पक्ष से मुआवजे का दावा नहीं कर सकता।

उदाहरण:

  • एक व्यक्ति खेल के मैदान में स्वेच्छा से प्रवेश करता है और खेल के दौरान उसे चोट लगती है। वह चोट के लिए आयोजकों पर मुकदमा नहीं कर सकता।

2. सार्वजनिक नीति (Public Policy)

सिद्धांत:

  • सार्वजनिक नीति के तहत, कुछ कार्य या दावे इस आधार पर रद्द किए जा सकते हैं कि वे समाज के हित के खिलाफ हैं।
  • यदि किसी कार्रवाई से समाज का सामूहिक नुकसान हो सकता है, तो इसे बचाव के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

उदाहरण:

  • किसी व्यक्ति ने यह अनुबंध किया कि वह समाज विरोधी कार्य करेगा। यह अनुबंध सार्वजनिक नीति के खिलाफ होगा और अवैध माना जाएगा।

3. गलती (Mistake)

सिद्धांत:

  • गलती, चाहे तथ्य की हो या कानून की, एक बचाव के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है।
  • हालांकि, कानून की गलती अक्सर स्वीकार्य नहीं होती। केवल तथ्य की गलती पर बचाव किया जा सकता है।

उदाहरण:

  • यदि किसी ने किसी और की संपत्ति को गलती से अपनी संपत्ति समझकर उपयोग किया, तो यह एक तथ्य की गलती हो सकती है।

4. अनिवार्य दुर्घटना (Inevitable Accident)

सिद्धांत:

  • यदि किसी दुर्घटना को रोकने के लिए सभी सावधानियों का पालन किया गया था और फिर भी दुर्घटना हुई, तो यह “अनिवार्य दुर्घटना” कहलाएगी।
  • इसमें प्रतिवादी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

उदाहरण:

  • एक ड्राइवर ने सभी यातायात नियमों का पालन किया, फिर भी अचानक ब्रेक फेल हो गया और दुर्घटना हो गई। यह अनिवार्य दुर्घटना होगी।

5. ईश्वर का कार्य (Act of God)

सिद्धांत:

  • यदि कोई घटना प्राकृतिक कारणों जैसे भूकंप, बाढ़, तूफान आदि के कारण होती है और उस पर मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं होता, तो इसे “ईश्वर का कार्य” माना जाता है।
  • ऐसे मामलों में प्रतिवादी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

उदाहरण:

  • भारी बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ से किसी की संपत्ति को नुकसान पहुंचा। यह ईश्वर का कार्य माना जाएगा।

6. निजी बचाव (Private Defence)

सिद्धांत:

  • यदि किसी व्यक्ति ने अपने या अपने परिवार की रक्षा के लिए किसी पर हमला किया या हानि पहुंचाई, तो इसे बचाव के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • यह बचाव तभी वैध है जब कोई व्यक्ति आवश्यक सीमा तक ही बल का प्रयोग करे।

उदाहरण:

  • यदि कोई चोर रात में घर में घुसने की कोशिश करता है और घर के मालिक ने उसकी पिटाई की, तो यह निजी बचाव होगा।

7. आवश्यकता (Necessity)

सिद्धांत:

  • यदि किसी कार्य को किसी बड़े नुकसान को रोकने के लिए किया गया हो, तो इसे “आवश्यकता” के तहत वैध माना जा सकता है।
  • इसमें यह साबित करना जरूरी है कि कार्य करना अनिवार्य था।

उदाहरण:

  • यदि डॉक्टर ने मरीज की जान बचाने के लिए बिना अनुमति के सर्जरी की, तो यह आवश्यकता के तहत उचित होगा।

8. वैधानिक अधिकार (Statutory Authority)

सिद्धांत:

  • यदि कोई व्यक्ति वैधानिक प्राधिकरण (Statutory Authority) के तहत कार्य कर रहा हो और इसके कारण किसी को नुकसान हो, तो इसे बचाव के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • इसमें कार्य करने वाला व्यक्ति कानून के अनुसार कार्य कर रहा होता है।

उदाहरण:

  • यदि नगरपालिका ने ड्रेनेज सिस्टम के लिए खुदाई की, जिससे किसी की संपत्ति को अस्थायी नुकसान हुआ, तो यह वैधानिक अधिकार के तहत होगा।

निष्कर्ष (Conclusion):

उपरोक्त बचाव यह साबित करते हैं कि हर परिस्थिति में प्रतिवादी को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है। इनमें से प्रत्येक बचाव उस विशेष परिस्थिति पर निर्भर करता है, जिसमें कार्य किया गया हो। यह कानून का महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि दोष तभी तय किया जाए जब उचित प्रक्रिया और बचाव पर विचार कर लिया जाए।

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