समाजिक न्याय से जुड़ी विधियाँ उन कानूनी, नीतिगत और संस्थागत उपायों को संदर्भित करती हैं, जिनका उद्देश्य समाज में समानता, निष्पक्षता, और समान अवसरों को सुनिश्चित करना है। ये विधियाँ समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से कमजोर और हाशिए पर रहने वाले समूहों के अधिकारों की रक्षा करती हैं। समाजिक न्याय की दिशा में कुछ प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. संविधान: भारतीय संविधान समाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधानों को शामिल करता है। उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव न करने का अधिकार), और अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) समाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों को स्थापित करते हैं।
  2. आरक्षण प्रणाली: भारत में दलितों, आदिवासियों, और पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था समाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करने का एक उपाय है।
  3. कानूनों का निर्माण: समाज में लैंगिक समानता, बाल अधिकार, श्रमिक अधिकार, और अनुसूचित जाति/जनजाति के अधिकारों की रक्षा के लिए कई विशेष कानून बनाए गए हैं। जैसे:
  • महिला सुरक्षा कानून (जैसे घरेलू हिंसा विरोधी कानून, महिला उत्पीड़न निषेध कानून)
  • बाल श्रम निषेध कानून
  • श्रमिक अधिकार कानून
  • संविधानिक संरक्षण (जैसे अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम)

4. सामाजिक अधिकार: समाजिक न्याय का एक अन्य पहलू यह है कि सभी नागरिकों को समाज में समान अवसर और संसाधन प्राप्त हों। इसके लिए कई योजनाएँ और कार्यक्रम सरकार द्वारा चलाए जाते हैं, जैसे:

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम
  • महत्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA)
  • जन धन योजना

5 न्यायपालिका और सामाजिक न्याय: भारतीय न्यायपालिका ने समाजिक न्याय को प्रोत्साहित करने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। अदालतों ने यह सुनिश्चित किया है कि कमजोर वर्गों को उनके अधिकार मिलें और उनके खिलाफ भेदभाव न हो

समाजिक न्याय की इन विधियों का उद्देश्य समाज के हर वर्ग के लिए समान अवसर और सम्मान की स्थिति सुनिश्चित करना है, ताकि कोई भी व्यक्ति जाति, लिंग, या सामाजिक स्थिति के आधार पर उपेक्षित या वंचित न हो।