क्षेत्रीयता (Regionalism) एक ऐसी भावना है, जिसमें व्यक्ति अपने क्षेत्र, प्रांत या राज्य के प्रति विशेष लगाव और निष्ठा महसूस करता है। यह भावना सकारात्मक हो सकती है, जब यह क्षेत्रीय विकास और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने में सहायक हो, लेकिन जब यह अतिरेकी रूप ले लेती है, तो यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विभाजन का कारण बन जाती है। इस संदर्भ में, क्षेत्रीयता के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं का आलोचनात्मक परीक्षण आवश्यक है।


क्षेत्रीयता: सकारात्मक पक्ष

  1. संस्कृति और पहचान का संरक्षण
    • क्षेत्रीयता स्थानीय भाषा, परंपरा, और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में मदद करती है।
    • यह क्षेत्र विशेष की अद्वितीय पहचान को बचाए रखने में सहायक हो सकती है।
  2. क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा
    • क्षेत्रीयता के कारण लोग अपने क्षेत्र के विकास के लिए अधिक प्रयास करते हैं।
    • यह क्षेत्र विशेष में सामाजिक और आर्थिक विकास लाने के लिए प्रेरणा देती है।
  3. राजनीतिक विकेंद्रीकरण
    • क्षेत्रीयता, लोकतंत्र में विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देती है, जिससे स्थानीय समस्याओं का स्थानीय स्तर पर समाधान संभव होता है।
    • यह स्थानीय प्रशासन को मजबूत करने में सहायक है।

क्षेत्रीयता: नकारात्मक पक्ष

  1. राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा
    • जब क्षेत्रीयता अतिरेकी रूप ले लेती है, तो यह राष्ट्रवाद को कमजोर कर सकती है।
    • लोग अपने क्षेत्र को राष्ट्र से ऊपर रखने लगते हैं, जिससे देश की एकता और अखंडता पर खतरा उत्पन्न होता है।
  2. भेदभाव और हिंसा
    • क्षेत्रीयता कभी-कभी अन्य क्षेत्रों के लोगों के प्रति भेदभाव और घृणा को जन्म देती है।
    • यह सांप्रदायिक हिंसा और जातीय संघर्षों को बढ़ावा देती है, जैसे कि महाराष्ट्र में “मराठी बनाम बाहरी” आंदोलन
  3. संसाधनों पर संघर्ष
    • क्षेत्रीयता के कारण संसाधनों के असमान वितरण की भावना प्रबल हो सकती है।
    • जैसे, राज्यों के बीच पानी के बंटवारे या बजट आवंटन को लेकर विवाद।
  4. अलगाववादी आंदोलनों का उदय
    • जब क्षेत्रीयता चरम पर पहुंचती है, तो यह अलगाववादी आंदोलनों को जन्म देती है, जैसे:
      • पूर्वोत्तर भारत में अलग राज्य की मांग
      • जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद।
    • इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा होता है।
  5. राजनीतिक स्वार्थ
    • क्षेत्रीयता का उपयोग कई बार राजनीतिक दल अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए करते हैं।
    • वे जनता की भावनाओं को भड़काकर क्षेत्रीय भावनाओं का दुरुपयोग करते हैं, जिससे विकास के बजाय विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा मिलता है।

क्षेत्रीयता: भारत के संदर्भ में आलोचना

(i) भारतीय संविधान और क्षेत्रीयता

  • भारत का संविधान एकता और अखंडता के सिद्धांत पर आधारित है।
  • अनुच्छेद 1 कहता है कि भारत एक संघात्मक राज्य है, जिसमें राज्यों की स्वतंत्रता सीमित है।
  • क्षेत्रीयता, संघीय ढांचे के लिए चुनौती बन सकती है, जब यह क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग को अतिरेकी रूप देती है।

(ii) राजनीतिक क्षेत्रीयता

  • भारत में कई क्षेत्रीय दल अपने राजनीतिक एजेंडे के तहत क्षेत्रीयता को बढ़ावा देते हैं।
  • इसका परिणाम अक्सर क्षेत्रीय असंतुलन और केंद्र-राज्य संबंधों में खटास के रूप में सामने आता है।

(iii) विकास पर प्रभाव

  • क्षेत्रीयता के कारण कई बार राष्ट्रीय योजनाओं को बाधित किया जाता है।
  • क्षेत्रीय आंदोलन जैसे कि तेलंगाना या गोरखालैंड की मांग, विकास कार्यों को धीमा कर देते हैं।

क्षेत्रीयता से संबंधित प्रमुख उदाहरण

  1. तमिलनाडु में हिंदी विरोध आंदोलन (1960 के दशक)
    • क्षेत्रीय भाषा को बचाने के नाम पर हिंदी के प्रति विरोध ने सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता पैदा की।
  2. महाराष्ट्र में “मराठी मानुस” आंदोलन
    • इस आंदोलन ने गैर-मराठी लोगों के खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा दिया।
  3. पंजाब में खालिस्तान आंदोलन
    • क्षेत्रीयता के चरम रूप ने अलगाववादी आंदोलन को जन्म दिया, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर खतरा हुआ।
  4. कावेरी जल विवाद
    • तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच पानी के बंटवारे को लेकर क्षेत्रीयता ने विवाद को और गहरा किया।

क्षेत्रीयता के समाधान के लिए सुझाव

  1. समान विकास पर ध्यान
    • केंद्र और राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी क्षेत्रों का समान विकास हो।
  2. राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन
    • नागरिकों में राष्ट्रवाद और क्षेत्रवाद के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
  3. संघीय ढांचे का सुदृढ़ीकरण
    • राज्यों को पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान करते हुए, राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना चाहिए।
  4. राजनीतिक जिम्मेदारी
    • क्षेत्रीयता को राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस्तेमाल करने से बचा जाना चाहिए।
  5. विवादों का शांतिपूर्ण समाधान
    • क्षेत्रीय विवादों को बातचीत और न्याय के माध्यम से सुलझाना चाहिए।

निष्कर्ष

क्षेत्रीयता एक दोधारी तलवार की तरह है। जहां यह क्षेत्रीय विकास और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में सहायक हो सकती है, वहीं इसके अतिरेकी रूप से सामाजिक और राष्ट्रीय एकता को खतरा हो सकता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, क्षेत्रीयता को राष्ट्रीय एकता के साथ संतुलित करना आवश्यक है। यह तभी संभव है जब क्षेत्रीयता को सकारात्मक दिशा में उपयोग किया जाए और इसके नकारात्मक प्रभावों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।