अदालतों और अभियोजन एजेंसियों का संगठन Organization of Courts and Prosecuting Agencies

1. अपराध न्यायालयों की संरचना और उनका क्षेत्राधिकार (Hierarchy of Criminal Courts and Their Jurisdiction):

भारत में आपराधिक न्यायालयों की संरचना को सीआरपीसी (Criminal Procedure Code) के तहत निम्नानुसार व्यवस्थित किया गया है:

  • सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court):
    • देश का सर्वोच्च न्यायालय, जिसका क्षेत्राधिकार पूरे भारत पर होता है।
    • आपराधिक मामलों में संवैधानिक व्याख्या और विशेष अनुमति याचिकाओं (Special Leave Petitions) पर निर्णय लेता है।
  • उच्च न्यायालय (High Court):
    • राज्य स्तर पर आपराधिक मामलों की अपील और पुनरीक्षण सुनवाई करता है।
    • इसकी अंतर्निहित शक्तियां प्रक्रिया के दौरान न्याय सुनिश्चित करने के लिए उपयोग की जाती हैं।
  • सत्र न्यायालय (Sessions Court):
    • यह जिले का उच्चतम न्यायालय है जो गंभीर अपराधों (जैसे हत्या, बलात्कार आदि) पर विचार करता है।
    • सत्र न्यायालय को मृत्युदंड और आजीवन कारावास जैसी कठोर सजा देने का अधिकार है।
  • मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate):
    • मामूली और मध्यम गंभीरता वाले मामलों की सुनवाई करता है।
    • अधिकतम 7 साल की सजा देने का अधिकार।
  • प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate First Class):
    • छोटे अपराधों की सुनवाई करता है।
    • अधिकतम 3 साल की सजा या 10,000 रुपये तक का जुर्माना लगा सकता है।
  • द्वितीय श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate Second Class):
    • मामूली अपराधों पर विचार करता है।
    • अधिकतम 1 साल की सजा या 5,000 रुपये तक का जुर्माना दे सकता है।
  • कार्यकारी मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate):
    • मुख्यतः लोक व्यवस्था बनाए रखने और शांति भंग रोकने जैसे मामलों में कार्य करता है।

2. अभियोजन एजेंसियों का संगठन (Organization of Prosecuting Agencies):

  • पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (Public Prosecutor):
    • यह अभियोजन पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है।
    • मुख्य रूप से सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय में कार्य करता है।
  • अतिरिक्त पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (Additional Public Prosecutor):
    • पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की सहायता करता है और कार्यभार बांटता है।
  • विशेष अभियोजक (Special Prosecutor):
    • विशेष अधिनियमों (जैसे एनडीपीएस, पोक्सो आदि) के तहत मामलों में कार्य करता है।
    • इन्हें विशेष रूप से नियुक्त किया जाता है।
  • पुलिस अभियोजन अधिकारी (Police Prosecutor):
    • निचली अदालतों में पुलिस की ओर से मामलों का प्रतिनिधित्व करता है।
    • मुख्यतः मजिस्ट्रेट न्यायालय में काम करता है।
  • राज्य अभियोजन निदेशक (Director of Prosecution):
    • राज्य स्तर पर अभियोजन एजेंसियों का नेतृत्व करता है।
    • अभियोजन नीति का निर्माण और निगरानी करता है।

3. अभियोजन की वापसी (Withdrawal of Prosecution):

  • अभियोजन की वापसी का प्रावधान सीआरपीसी की धारा 321 के तहत है।
  • उद्देश्य:
    • यदि न्याय के हित में अभियोजन को वापस लेना आवश्यक हो।
    • यदि सामाजिक शांति और सामंजस्य बनाए रखने के लिए अभियोजन को रोकना उचित हो।
  • प्रक्रिया:
    • अभियोजन की वापसी केवल सरकारी वकील (Public Prosecutor) द्वारा की जा सकती है।
    • सरकारी वकील को अदालत में उचित कारण प्रस्तुत करना होता है।
    • न्यायालय अभियोजन वापसी के कारणों की जांच करता है और यदि वह न्यायसंगत है, तो अनुमति देता है।
  • उदाहरण:
    • राजनीतिक मामलों में जहां अभियोजन से सामाजिक या सामुदायिक तनाव बढ़ सकता है।
    • ऐसी स्थिति में जहां साक्ष्य अपर्याप्त हों और मामले को आगे बढ़ाना न्यायसंगत न हो।

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