Absolute Liability (पूर्ण उत्तरदायित्व) उत्तरदायित्व का सिद्धांत भारत में पर्यावरण कानून और औद्योगिक दुर्घटनाओं से जुड़े मामलों में लागू किया जाता है। यह सिद्धांत विशेष रूप से M.C. Mehta बनाम भारत संघ (1987) के ऐतिहासिक मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार, यदि कोई उद्योग या व्यक्ति खतरनाक गतिविधियों में संलग्न होता है और इससे लोगों को नुकसान पहुंचता है, तो वह बिना किसी बचाव के जिम्मेदार होगा।
M.C. Mehta बनाम भारत संघ का मामला
यह मामला 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद हुआ था, जब पर्यावरण और लोगों के जीवन की सुरक्षा के लिए औद्योगिक खतरों को रोकने का प्रयास किया गया। इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने “श्रीराम फर्टिलाइज़र एंड केमिकल्स” नामक एक उद्योग से गैस रिसाव को लेकर फैसला दिया। इस रिसाव के कारण लोगों की जान-माल को भारी नुकसान हुआ।
कोर्ट ने इस मामले में कहा कि खतरनाक पदार्थों का निर्माण या उपयोग करने वाली कंपनियां किसी भी दुर्घटना के लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार होंगी, भले ही उन्होंने सावधानी बरती हो या नहीं।
सिद्धांत के मुख्य बिंदु:
- Strict Liability से अलग:
- Strict Liability के सिद्धांत में कुछ बचाव (defenses) की अनुमति दी जाती है, जैसे “Act of God” (प्राकृतिक आपदा), तीसरे पक्ष की गलती, या पीड़ित की सहमति।
- लेकिन Absolute Liability के सिद्धांत में कोई बचाव मान्य नहीं है। यदि खतरनाक गतिविधियों से नुकसान होता है, तो उद्योग या व्यक्ति पूर्ण रूप से उत्तरदायी होगा।
- सार्वजनिक हित की सुरक्षा:
यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि यदि कोई औद्योगिक गतिविधि समाज के लिए खतरा उत्पन्न करती है, तो उसे बिना शर्त मुआवजा देना होगा। यह सिद्धांत कमजोर और असुरक्षित वर्गों की रक्षा करता है। - खतरनाक उद्योगों की जिम्मेदारी:
यदि कोई उद्योग खतरनाक रसायनों, गैस, या अन्य हानिकारक वस्तुओं का उत्पादन या उपयोग करता है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई दुर्घटना न हो। यदि कोई दुर्घटना होती है, तो वह किसी भी प्रकार के बहाने से बच नहीं सकता।
न्यायालय का निर्णय:
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा:
- यदि कोई खतरनाक गतिविधि का संचालन करता है और इससे नुकसान होता है, तो वह किसी भी प्रकार की गलती या लापरवाही के बावजूद जिम्मेदार होगा।
- खतरनाक उद्योगों को इस तरह के नुकसान के लिए मुआवजा देने के लिए पर्याप्त संसाधन रखना होगा।
सिद्धांत का महत्व:
- पर्यावरण सुरक्षा: यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि खतरनाक उद्योग पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाएँ।
- औद्योगिक जिम्मेदारी: उद्योगों को अपनी प्रक्रियाओं में अधिक सतर्क और सुरक्षित बनाता है।
- पीड़ितों के अधिकार: यह प्रभावित व्यक्तियों को तुरंत और उचित मुआवजा प्राप्त करने की गारंटी देता है।
निष्कर्ष:
M.C. Mehta बनाम भारत संघ के मामले ने भारतीय न्यायिक प्रणाली में एक ऐतिहासिक मोड़ लाया। इसने यह स्पष्ट कर दिया कि खतरनाक औद्योगिक गतिविधियाँ करने वाले लोग और कंपनियां किसी भी दुर्घटना के लिए पूर्ण उत्तरदायी होंगी। इस सिद्धांत ने पर्यावरण संरक्षण और औद्योगिक सुरक्षा के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया।