भारत में बालक के मूल अधिकार के रूप में शिक्षा का अधिकार
शिक्षा का अधिकार (Right to Education) भारत में एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह अधिकार प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने और शिक्षा तक पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा गारंटीकृत किया गया है।
शिक्षा का अधिकार: संवैधानिक प्रावधान
1. अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार)
- संविधान (86वां संशोधन), 2002 के माध्यम से अनुच्छेद 21A जोड़ा गया।
- यह कहता है: “राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करेगा।”
- यह अधिकार मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है और जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) के अंतर्गत आता है।
2. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act)
- यह अधिनियम 1 अप्रैल, 2010 से लागू हुआ और शिक्षा के अधिकार को लागू करने का कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
- मुख्य प्रावधान:
- 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा।
- सभी स्कूलों में भौतिक और शैक्षणिक ढांचे को सुनिश्चित करना।
- 25% सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के बच्चों के लिए निजी स्कूलों में आरक्षित करना।
- बच्चों को स्कूल में दाखिले के लिए आयु प्रमाण की आवश्यकता नहीं।
- मिड-डे मील योजना के माध्यम से बच्चों को पौष्टिक भोजन प्रदान करना।
3. अनुच्छेद 45 (राज्य की नीति निर्देशक तत्व)
- यह कहता है: “राज्य 6 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रयास करेगा।”
- यह शिक्षा को मूलभूत विकास का हिस्सा मानता है।
4. अनुच्छेद 51A (नागरिकों के मूल कर्तव्य)
- यह हर नागरिक का कर्तव्य बनाता है कि वह 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करने में सहयोग करें।
राज्य द्वारा शिक्षा के अधिकार को लागू करने के प्रयास
1. मिड-डे मील योजना
- यह योजना छात्रों को स्कूल में नामांकित करने और उनकी पोषण स्थिति में सुधार के लिए शुरू की गई।
- उद्देश्य: गरीब वर्ग के बच्चों को स्कूल में बनाए रखना।
2. सर्व शिक्षा अभियान (SSA)
- 2001 में शुरू किया गया एक प्रमुख कार्यक्रम, जिसका उद्देश्य 6-14 वर्ष के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना था।
- उद्देश्य:
- सार्वभौमिक नामांकन (Universal Enrollment)।
- सामाजिक बराबरी सुनिश्चित करना।
3. राष्ट्रीय बालिका शिक्षा कार्यक्रम (NPEGEL)
- लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए इस योजना को शुरू किया गया।
- खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और अल्पसंख्यक समुदायों पर केंद्रित।
4. समग्र शिक्षा अभियान (Samagra Shiksha Abhiyan)
- 2018 में शुरू किया गया, यह कार्यक्रम प्रारंभिक शिक्षा से माध्यमिक शिक्षा तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए है।
- डिजिटल शिक्षा, स्कूली आधारभूत संरचना, और समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देना।
शिक्षा के अधिकार के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ
- आर्थिक असमानता: गरीब तबके के बच्चे अभी भी उचित शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते।
- स्कूल ड्रॉपआउट: ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में अभी भी स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या अधिक है।
- स्कूलों की कमी: कई क्षेत्रों में शिक्षण संस्थानों की कमी और बुनियादी ढांचा कमजोर है।
- शिक्षकों की गुणवत्ता: सरकारी स्कूलों में प्रशिक्षित शिक्षकों और उचित छात्र-शिक्षक अनुपात का अभाव।
- बाल श्रम: कई बच्चे स्कूल के बजाय मजदूरी में लगे रहते हैं।
उपलब्धियाँ और प्रभाव
- साक्षरता दर में वृद्धि: शिक्षा के अधिकार ने भारत की साक्षरता दर में सुधार किया।
- लिंग समानता: लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा मिला।
- बाल श्रम में कमी: मुफ्त शिक्षा ने गरीब वर्गों के बच्चों को शिक्षा की ओर आकर्षित किया।
- शिक्षा तक पहुंच: गरीब और वंचित वर्गों के बच्चों के लिए शिक्षा अधिक सुलभ हुई।
निष्कर्ष
भारत में शिक्षा का अधिकार एक ऐतिहासिक कदम है, जो बच्चों को जीवन की गुणवत्ता में सुधार और भविष्य के बेहतर अवसर प्रदान करता है। हालाँकि, इसे पूरी तरह लागू करने के लिए राज्य को संरचनात्मक और सामाजिक बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के साथ सरकारी योजनाओं ने बच्चों के मौलिक अधिकार को मजबूत किया है, लेकिन इसके पूर्ण कार्यान्वयन के लिए समाज और सरकार दोनों को समन्वित प्रयास करने होंगे।