संविधान में जाति के आधार पर विभेद का निषेध

भारतीय संविधान एक ऐसा सामाजिक दस्तावेज है, जिसका उद्देश्य समानता, सामाजिक न्याय, और समान अवसर को सुनिश्चित करना है। इसमें जाति के आधार पर भेदभाव का निषेध किया गया है और सभी को समान अधिकार प्रदान करने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।


जाति के आधार पर भेदभाव के निषेध के लिए संवैधानिक प्रावधान

1. अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता

  • यह प्रावधान कहता है कि: “राज्य सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता प्रदान करेगा और विधियों के समान संरक्षण का अधिकार देगा।”
  • यह प्रावधान जाति, धर्म, लिंग, और स्थान के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव का निषेध करता है।

2. अनुच्छेद 15: भेदभाव का निषेध

  • अनुच्छेद 15(1) के अनुसार: “राज्य किसी भी नागरिक के विरुद्ध जाति, धर्म, लिंग, वंश, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।”
  • अनुच्छेद 15(4):
    • यह विशेष प्रावधान बनाता है कि समाज के कमजोर वर्गों (जैसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) की उन्नति के लिए राज्य विशेष योजनाएँ और आरक्षण प्रदान कर सकता है।

3. अनुच्छेद 16: रोजगार में समान अवसर

  • अनुच्छेद 16(1) और 16(2):
    • यह प्रावधान सरकारी नौकरियों में सभी को समान अवसर प्रदान करता है और जाति, धर्म, वंश, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को निषेध करता है।
  • अनुच्छेद 16(4):
    • राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है।

4. अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत

  • यह प्रावधान अस्पृश्यता (Untouchability) का पूर्णतः निषेध करता है।
  • अस्पृश्यता का पालन किसी भी रूप में दंडनीय अपराध है।
  • महत्वपूर्ण कानून:
    • अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 (SC/ST Act): अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अत्याचार रोकने के लिए इस अधिनियम को लागू किया गया।

5. अनुच्छेद 46: राज्य की जिम्मेदारी

  • यह राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में आता है।
  • राज्य को अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों की शिक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा करनी चाहिए।

6. आरक्षण प्रणाली (Reservation System)

  • संविधान ने जातीय असमानता को दूर करने और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की।
    • अनुच्छेद 330 और 332: अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए संसद और विधानसभाओं में आरक्षित सीटें।
    • अनुच्छेद 335: अनुसूचित जातियों और जनजातियों को सरकारी सेवाओं में प्राथमिकता।

संवैधानिक उपबंधों का सामाजिक प्रभाव

1. समानता और सामाजिक न्याय

  • ये प्रावधान समाज में समानता और सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए किए गए हैं।

2. आरक्षण का प्रभाव

  • पिछड़े वर्गों को शिक्षा और रोजगार में अवसर प्रदान किए गए, जिससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।

3. अस्पृश्यता का उन्मूलन

  • अस्पृश्यता और जातीय भेदभाव को समाप्त करने के लिए कानूनों का सख्ती से पालन किया गया।

4. शिक्षा में सुधार

  • अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण ने उनके शैक्षणिक स्तर को बढ़ाने में मदद की।

जातीय भेदभाव से संरक्षण के लिए बनाए गए कानून

  1. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989
    • अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव को रोकने के लिए।
  2. समान वेतन अधिनियम, 1976 (Equal Remuneration Act)
    • समान कार्य के लिए समान वेतन को सुनिश्चित करना।
  3. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और जनजाति आयोग
    • यह आयोग इन वर्गों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य करता है।
  4. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009
    • कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा।

जातीय भेदभाव से जुड़ी न्यायालय की टिप्पणियाँ

  1. इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992):
    • सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा को 50% तक सीमित किया।
    • सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को न्याय दिलाने का समर्थन किया।
  2. चम्पकम दोराईराजन बनाम स्टेट ऑफ मद्रास (1951):
    • सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मौलिक अधिकार समानता के सिद्धांत को प्राथमिकता देते हैं।
  3. मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980):
    • न्यायालय ने कहा कि समानता और न्याय के सिद्धांत संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने और सामाजिक समानता स्थापित करने के लिए प्रभावी प्रावधान करता है।

  • अनुच्छेद 14 से 17 के माध्यम से मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।
  • आरक्षण प्रणाली और कानूनों ने कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    हालाँकि, जातीय भेदभाव को पूरी तरह समाप्त करने के लिए सामाजिक जागरूकता और कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता है।

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